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दरअसल: किफायती और कामयाब अजय देवगन... जन्म दिवस विशेष

रात में अजय देवगन के एक सहयोगी का फोन आया...क्‍या यह सच है कि अजय देवगन को सर्वश्रेष्‍ठ अभिनेता का पुरस्‍कार मिल रहा है?

By Manoj VashisthEdited By: Published: Thu, 29 Mar 2018 03:52 PM (IST)Updated: Mon, 02 Apr 2018 11:21 AM (IST)
दरअसल: किफायती और कामयाब अजय देवगन... जन्म दिवस विशेष
दरअसल: किफायती और कामयाब अजय देवगन... जन्म दिवस विशेष

-अजय ब्रह्मात्‍मज

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संयोग कुछ ऐसा बना था कि 2003 के राष्‍ट्रीय फिल्‍म पुरस्‍कारों की दिल्‍ली के एक पत्रकार मित्र से एक दिन पहले अग्रिम जानकारी मिल गई थी। यह पता चल गया था कि ‘द लिजेंड ऑफ भगत सिह’ में भगत सिंह की ओजपूर्ण भूमिका निभाने के लिए अजय देवगन को सर्वश्रेष्‍ठ अभिनेता का पुरस्‍कार मिलने जा रहा है। उन दिनों मैं महेश भट्ट के सान्निध्‍य में एक दैनिक का मनोरंजन परिशिष्‍ट संभाल रहा था। रहा नहीं गया तो मैंने महेश भट्ट को बता दिया। संभवत: उनसे अजय देवगन को पता चला। रात में अजय देवगन के एक सहयोगी का फोन आया...क्‍या यह सच है कि अजय देवगन को सर्वश्रेष्‍ठ अभिनेता का पुरस्‍कार मिल रहा है? ठोस जानकारी के बावजूद मैंने टालमटोल के अंदाज में कहा कि हां सुना तो है, लेकिन कल तक इंतजार करें।

अगले दिन आधिकारिक जानकारी मिलने पर उनके उसी सहयोगी का फिर से फोन आया...अरे आप कल ही कंफर्म कर दिए होते। बहरहाल,’जख्‍म’ के बाद दूसरी बार राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार मिलने से महेश भट्ट, अजय देवगन और उनके प्रशंसक सभी खुश हुए। महेश भट्ट की सिफारिश से अजय देवगन से मिलने और इंटरव्‍यू करने की कोशिश में मैं सफल रहा। तब उनकी ‘भूत’ रिलीज हो रही थी। तय हुआ कि ऑफिस में मिलते हैं। अचानक तबियत ढीली होने से यह मुलाकात उनके आवास के टेरेस पर शिफ्ट हो गई। पत्रकार मित्रों ने पहले से बता रखा था कि अजय मितभाषी हैं। बहुत मुश्किल से जवाब देते हैं। तब मीडिया जगत में ख्‍याति थी कि आमिर खान और अजय देवगन ने पत्रकारों को दूर रखने के लिए ही पीआरओ रखा है। दोनों के पीआरओ राजेन्‍द्र राव थे। और वे इस कला में माहिर थे।

 

खैर, आदतन मैं पूरी तैयारी के साथ यह ठान कर पहुंचा था कि अच्‍छा, लंबा और गहरा (इन डेफ्थ) लेकर ही आना है। पूरे इंटरव्‍यू के चौथाई समय तक अजय देवगन चंद शब्‍दों और छोटे वाक्‍यों में जवाब देते रहे। फिर कुछ हुआ। मेरे एक सवाल ने तार जोड़ दिया और उनके जवाबों में प्रवाह आ गया। फिर तो हमारे बीच परस्‍पर विश्‍वास और सम्‍मान का एक रिश्‍ता बना, वह आज भी जारी है। दो हफ्ते पहले राज कुमार गुप्‍ता के निर्देशन में उनकी ‘रेड’ आई है। इस फिल्‍म में भी वे ईमानदार, कर्तव्‍यनिष्‍ठ और धुनी नायक के किरदार में हैं। ऐसे किरदारों को निभाने में वे पारंगत हो चुके हैं। ‘गोलमाल’ जैसी कॉमिक सीरीज के बावजूद दर्शक उन्‍हें ऐसी भूमिकाओं में खूब पसंद करते हैं।

 

‘जख्‍म’ के बाद प्रकाश झा की मेनस्‍ट्रीम की रियलिस्‍ट फिल्‍मों में उन्‍होंने अपने अभिनेता के इस आयाम को खूब मांजा है। दर्शकों को किरदार की ईमानदारी का विश्‍वास दिलाने के लिए उन्‍हें संवादों और दृश्‍यों की अधिक जरूरत नहीं पड़ी। उनकी मौजूदगी ही दर्शकों को भरोसा देती है कि उनका नायक दृढ़प्रतिज्ञ है। वह हार नहीं मानेगा। खलनायक से वह सीधी भिडंत करेगा। रोहित शेट्टी ने उनके इसी व्‍यक्तित्‍व को लाउड और नाटकीय बना कर ‘सिंघम’ में पेश किया। अभिनेता अजय देवगन के बारे में महेश भट्ट, प्रकाश झा और राज कुमार गुप्‍ता की राय एक सी है। अजय देवगन किफायती (इकोनॉमिकल) अभिनेता हैं। वे शॉट्स की बर्बादी नहीं करते।

राज कुमार गुप्‍ता ने हाल की मुलाकात में बताया कि अपने किरदार और फिल्‍म के बारे में स्‍पष्‍ट हो जाने के बाद वे हर मुमकिन सहयोग के लिए तैयार रहते हैं। कागज पर लिखे गए किरदार शब्‍दों में होते हैं। अच्‍छा अभिनेता उन्‍हें ‘फ्लेश और ब्‍लड’ देकर पर्दे पर जीवंत करता है। अजय के अभिनय की प्रक्रिया में मेहनत नहीं दिखाई पड़ती। दरअसल वे ‘इंटेलिजेंट एक्‍टर’ हैं। वे किरदार का टोन पकड़ लेते हैं। ‘रेड’ में उन्‍होंने न तो कहीं हाथ उठाया है और न आवाज ऊंची की है। फिर भी अपने तेवर से वे सौरभ शुक्‍ला पर भारी ठहरते हैं। आप कह सकते हैं कि स्क्रिप्‍ट में ऐसा लिखा गया होगा...लिखा तो हर फिल्‍म में जाता है। केवल समर्थ अभिनेता ही उन्‍हें अपनी अदा और अंदाज से विश्‍वसनीय बना पाता है।

 

राजकुमार गुप्‍ता ने पाया कि अजय देवगन बेहद ‘सेक्‍योर’ अभिनेता हैं। सहयोगी कलाकारों की मदद करते हैं। उनके लिए जरूरी नहीं है कि हर दृश्‍य के केंद्र में वे रहें। वे दूसरों के सीन नहीं छीनते। इस प्रक्रिया से उम्‍दा फिल्‍म बनती हैं। अजय देवगन नैचुरल अभिनेता हैं। शॉट के पहले सीन समझ लेते हैं और सहज ही निभा जाते हैं। मुश्किल से मुश्किल दृश्‍यों को भी वे अधिकतम दो से तीन टेक में कर ही लेते हैं। ज्‍यादातर शॉट तो सिंगल टेक में ही पूरे हो जाते हैं। मैंने देखा है कि अजय देवगन सेट पर मौज-मस्‍ती के मूड में रहते हैं। और हंसी-मजाक के बीच ही काम करते हैं। उन्‍हें कभी अपने सीन को मथते हुए नहीं देखा।

 

अनुभव और अभ्‍यास से उन्‍होंने खुद के अंदर अभिनय की ऐसी वायरिंग कर ली है कि स्‍वीच दबाते ही वे कॉमिक, एक्‍शन, सीरियस और ईमानदार किरदारों के लिए झट से तैयार हो जाते हैं। अभी तक किसी फिल्‍म में क्रॉस वायरिंग से उनके परफारमेंस में कंफ्यूजन नहीं दिखा। उनके समकालीन कुछ अभिनेताओं में यह कंफ्यूजन दिखता है।


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