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    दरअसल: जब रात रात भर रोते थे आमिर खान...

    By Manoj VashisthEdited By:
    Updated: Mon, 06 Aug 2018 10:41 AM (IST)

    एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में बतौर लेखक संघर्ष कर रही उस लेखिका की समस्या थी कि उन्होंने किसी प्रोडक्शन हाउस के लिए जो स्क्रिप्ट जमा की थी, उसमें उनके न चाहने के बावजूद...

    दरअसल: जब रात रात भर रोते थे आमिर खान...

    -अजय ब्रह्मात्मज

    ऐसा माना जाता है और यह सच भी है कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में लोकप्रिय फिल्म स्टार की तूती बोलती है। इन दिनों आमिर खान एक ऐसे ही लोकप्रिय फिल्म स्टार हैं। अपनी निरंतर कामयाबी से उन्होंने खास मुकाम हासिल कर लिया है। इस मुकाम तक उनके पहुंचने का सफर आसान नहीं रहा है। आज यकीन नहीं होगा कि कभी आमिर खान की कोई नहीं सुनता था और निराशा में आमिर खान रात-रात भर रोते रहे हैं... हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में जगह बनाना मुश्किल और कठिन काम है। लोकप्रिय हो बड़े स्टारों के भी आरंभिक दिन संघर्ष से भरे होते हैं।

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    मुंबई में चल रहे हैं स्क्रीनराइटर्स एसोसिएशन की पांचवी कॉन्फ्रेंस में एक सवाल का जवाब देते हुए आमिर खान ने अपने अनुभवों को शेयर करते हुए अपनी निराशा और रोने की बात कही और बहुत ही महत्वपूर्ण सलाह दी... कॉन्फ्रेंस के खास मेहमान आमिर खान से अंजुम रजबअली बातचीत कर रहे थे। आमिर खान खुले दिल से बेहिचक उनके सवालों के जवाब दे रहे थे। मुख्य बातचीत के बाद जब श्रोताओं से सवाल आमंत्रित किए गए तो एक लेखिका ने अपनी समस्या रखी।

    एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में बतौर लेखक संघर्ष कर रही उस लेखिका की समस्या थी कि उन्होंने किसी प्रोडक्शन हाउस के लिए जो स्क्रिप्ट जमा की थी, उसमें उनके न चाहने के बावजूद कुछ परिवर्तन किए जा रहे थे। उनका सवाल था कि मुझे क्या करना चाहिए? क्या मुझे अपनी स्क्रिप्ट वापस ले लेनी चाहिए या प्रोडक्शन हाउस के मर्जी के अनुसार अपनी स्क्रिप्ट में बदलाव की सहमति दे देनी चाहिए?

    इस आम से सवाल को अंजुम ने अधिक महत्व ना देकर टालने की कोशिश की, लेकिन आमिर खान ने इस सवाल की गंभीरता समझी और उचित सलाह दी। उन्होंने अपने अनुभव शेयर किए। उन्होंने बताया कि आरंभिक दिनों में फिल्मों के सेट पर जाकर वह दुखी रहते थे, क्योंकि उनका दिल और मिजाज किसी से नहीं मिलता था। कोई भी उनकी बात नहीं समझता था।वे बेमन से अपना काम करते थे।

    घर लौट कर रात रात भर रोते थे। उन्हें लगता था कि वे कुछ गलत लोगों के बीच फंस गए हैं। फिर भी, इस अपमान और घुटन के बावजूद उन्होंने अपना काम जारी रखा। सफल-असफल फिल्में की और धीरे-धीरे आज की पोजीशन में पहुंचे, जब वे सारी चीजों को अपनी मर्जी से नियंत्रित कर पाते हैं। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि फिल्म इंडस्ट्री में प्रवेश करने के आरंभिक दिनों में हमें अपनी ईगो और अहंकार को किनारे रख देना चाहिए। जब आप को मौके दिए जा रहे हों, उन दिनों आप टकराने की कोशिश करेंगे तो कोई भी आपको फ़िल्म से निकाल बाहर करेगा।

    सिंपल सी वजह है कि अभी आपकी योग्यता, क्षमता और मूल्य से कोई वाकिफ नहीं है। लोग नहीं जानते कि आप की कीमत और कंट्रीब्यूशन क्या है? जाहिर सी बात है कि खुद को साबित करने के लिए आप को मौके चाहिए।फिल्म के किसी भी फील्ड में काम करने के बाद ही आप कुछ बता पाएंगे। साबित कर पाएंगे। पिछले दो दशकों के निजी अनुभव में मैंने भी पाया है कि फिल्म इंडस्ट्री में बाहर से आई प्रतिभाएं खासकर उत्तर भारत से आए लेखक और कलाकार थोड़े ज्यादा भावुक और ज्यादा टची होते हैं। ईगो, ठूस और हठ को अपने कंधे पर लेकर चलते हैं। छोटी-छोटी बातों पर अड़ और लड़ जाते हैं।

    नतीजा यह होता है कि मौका दे रहा व्यक्ति अगले ही दिन उनके लिए दरवाजे बंद कर देता है। आमिर खान ने बहुत सही कहा कि पहले मन मसोसकर ही सही आप काम करें। खुद को साबित करें। तरीके और दांव सीखें और फिर धीरे धीरे अपनी मर्जी जाहिर करें। अगर आपका योगदान मूल्यवान और लाभदायक होगा तो यकीन मानिए फिल्म इंडस्ट्री आपके लिए रेड कारपेट बिछा देगी। हर बैनर और प्रोडक्शन हाउस आप को बुलाएगा।

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