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    Oscar 2025 की दौड़ में शामिल Santosh, निर्देशक संध्या सूरी ने बताया डॉक्यूमेंट्री के बजाय क्यों बनाई फिल्म?

    Updated: Sun, 05 Jan 2025 08:25 AM (IST)

    ब्रिटिश एकेडमी ने यूनाइटेड किंगडम (UK) की ओर से संध्या सुरी के निर्देशन में बनी हिंदी फिल्म ‘संतोष’ को ऑस्कर्स में भेजी गई है। ‘संतोष’ ग्रामीण उत्तर भारत में सेट की गई हिंदी भाषा की मूवी है। इस बीच जागरण के साथ बातचीत में फिल्म की निर्देशक संध्या सूरी ने संतोष को बनाने से लेकर उसके शॉर्टलिस्ट होने पर खुलकर बात की। आइए जानते हैं...

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    फिल्म संतोष की निर्देशक संध्या सूरी से खास बातचीत (Photo Credit-X)

    एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। इस साल ऑस्कर अवॉर्ड  में विदेशी भाषा की श्रेणी में ब्रिटेन की तरफ से फिल्म ‘संतोष’ को भेजा गया है। भारतीय मूल की ब्रिटिश निर्देशक संध्या सूरी की बतौर निर्देशक यह पहली फिल्म है। फिल्म में शहाना गोस्वामी ने पुलिस कांस्टेबल की भूमिका निभाई है। 10 जनवरी को सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली ‘संतोष’ को लेकर संध्या और शहाना से जागरण संवाददाता स्मिता श्रीवास्तव की खास बातचीत में उन्होंने कई मजेदार किस्से सुनाए।

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    कब पता लगा फिल्म ऑस्कर में हुई सेलेक्ट

    शहाना ने बताया कि जब ये खबर आई तब वो अपने दोस्तों के साथ होटल के कमरे में थीं। उस वक्त सब सो गए मगर वो जगी थीं। शहाना की एक दोस्त अमेरिका में रहती हैं जिन्होंने उन्हें इस बारें में बताया। फिल्म के शॉर्टलिस्ट होने पर वो बोलीं, 'जिन्होंने फिल्म देखी है, उन्होंने वोट किया है, सब एकेडमी के सदस्य हैं, तभी शीर्ष 15 में चुना। उसकी बहुत खुशी है।' आगे संध्या ने कहा, 'मैं लंदन में थी। उस समय लास एंजेलिस में लिस्ट आ रही थी। 9 बज चुके थे। मुझे लगा कि नहीं हुआ। मैं डिनर कर रही थी। फिर फोन की घंटियां बजने लगीं तो मैं समझ गई कि हमारी फिल्म को शॉर्टलिस्ट कर लिया गया है।'

    डॉक्यूमेंट्री के तौर पर न बनाकर फिल्म की तरह बनाने का फैसला

    बातचीत में उनसे सवाल किया गया कि पहले वो इसे एक डॉक्यूमेंट्री की तरह बनाने वाली थीं मगर बाद में ये एक फिल्म की तरह बनाई गई। इस पर संध्या ने बताया कि वो टॉपिक को देखते हुए इसे डाक्यूमेंट्री की तरह बनाना चाहती थी। निर्देशक ने कहा, 'मेरी दिलचस्पी पुलिस कांस्टेबल के नजरिए से हिंसा को दिखाने में थी क्योंकि उसके पास सीमित क्षमता होती है। उसकी वर्दी का बहुत महत्व होता है, लेकिन वह हिंसा का अनुभव करती है तो मुझे लगा कि वह कहानी का बेहतरीन नजरिया बनेगी। निश्चित रूप से पुलिस फोर्स पर डाक्यूमेंट्री बनाना मुश्किल है तो मैंने इस पर फिक्शन फिल्म बनाने का निर्णय लिया।'

    Photo Credit- IMDb

    वास्तविक नाम न रखकर चिराग प्रदेश की वजह?

    संध्या : इंटरनेट मीडिया बांटने का काम करता है कि यह उस जगह के बारे में बात कर रहा है। यह किसी विशेष प्रदेश के बारे में नहीं है। यह साहसिक कहानी के बारे में है, कई जगहों के बारे में है। जातिवाद सिर्फ उत्तर भारत में नहीं है। जातिवाद विदेश में प्रवासी समुदाय में भी व्याप्त है। अगर मैं किसी एक जगह को बताती तो उसकी तरफ विकर्षण हो जाता।

    Photo Credit- IMDb

    जहां भी फिल्म की स्क्रीनिंग हुई, लोगों को लगा कि यह मुद्दा यूनिवर्सल है। यही वजह है कि हमने किसी एक जगह का नाम नहीं लिया। शहाना: मेरे लिए यह कहानी बहुत खास है। यह मानवीय कहानी है। बतौर इंसान आप असमानता और असंतुलन पर प्रतिक्रिया देते हैं। हम उसे दर्शा रहे है। यह फिल्म समाज को आईना दिखाने की बात कर रही है।

    फिल्म में एक सीन पर खुलकर बात

    फिल्म में एक सीन है जिसमें एक आदमी शहाना के पात्र को घूर रहा है तो वो ठूंस कर खाती है, फिर उसे उगल देती है। इस सीन पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि लंदन से अलग भारत में जब कोई टीनेजर या युवती सड़कों पर जाती है तो वह कई घूरती निगाहें महसूस करती है। वह नजर बहुत गंदी होती है। मैं तो हैरान हो गई थी कि लोग मेरी तरफ ऐसे कैसे देख रहे हैं। समझ नहीं आ रहा था कि कैसे रिएक्शन दें। ऐसा लंदन में नहीं होता है। मुझे लगा कि एक दिन महिलाओं के अंदर का यह आक्रोश बाहर आ जाएगा। इसलिए मैंने यह सीन सोचा। यह सीन बहुत दिल से मैंने लिखा है।

    Photo Credit- Instagram

    शहाना ने बताया, 'मैं तो दिल्ली में पली-बढ़ी हूं। बचपन से ही हम गुस्सा अंदर रखते आए हैं कि बहुत सारी घूरती नजरों का सामना करना पड़ता था। कई बार लगता था कि मैं घूरकर देखूंगी तो उन्हें शर्म आ जाएगी तो वह और बेशर्मी से घूरते थे। मेरे दोस्त तो कुछ-कुछ अलग शक्ल बना देते थे। वह सीन बचपन की यादों को लेकर आया कि आप कुछ ऐसा करो कि वो लोग निराश हो जाएं। शर्म तो है नहीं तो कम से कम उन्हें ऐसा घिनौना रूप दिखा दें। वह फिल्म में मेरा पसंदीदा सीन है।'

    इंडिपेंडेंट फिल्में बनाना टेढ़ी खीर ?

    संध्या ने कहा कि वैश्विक स्तर पर कमोबेश हालात एक जैसे हैं। खास तौर पर डिस्ट्रीब्यूशन के मामले में। पूरी दुनिया में किसी भी फिल्ममेकर के लिए यह काफी कठिन है। मैं खुश हूं कि फिल्म सिनेमाघरों में आ रही है, लेकिन सामान्यत: कमाई करना कठिन होता है। लोग सोचते हैं कि आप तो ऑस्कर में जा रहे हैं, लेकिन मेरी चिंताएं अलग हैं कि पैसे कैसे कमाऊं? कैसे अपना खर्चा चलाऊं? यह उन फिल्ममेकर के लिए और भी मुश्किल है जो समझौता नहीं करना चाहते। मैं ऐसी फिल्में बनाना चाहती हूं जो कुछ कहें। मुझे पता है कि अगले प्रोजेक्ट में समय लगेगा। हम लगातार संघर्ष कर रहे हैं।