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    श्रद्धांजलि: किरदार बूढ़े हुए, 'शम्मी आंटी' नहीं, स्क्रीन टेस्ट के बिना मिली पहली फ़िल्म

    By Manoj VashisthEdited By:
    Updated: Tue, 06 Mar 2018 03:41 PM (IST)

    शम्मी के एक पारिवारिक मित्र महबूब ख़ान के साथ काम किया करते थे। एक दिन वही पारिवारिक मित्र घर आये और उन्होंने शम्मी से पूछा कि क्या वह फ़िल्मों में काम करेंगी।

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    श्रद्धांजलि: किरदार बूढ़े हुए, 'शम्मी आंटी' नहीं, स्क्रीन टेस्ट के बिना मिली पहली फ़िल्म

    अनुप्रिया वर्मा, मुंबई। वेटरन एक्ट्रेस शम्मी का निधन सोमवार की रात 1 बजे उनके मुंबई आवास पर हो गया। शम्मी का असली नाम नर्गिस था, मगर उन्हें इंडस्ट्री में प्यार से शम्मी आंटी बुलाया जाता था। आइए, एक नज़र डालते हैं, शम्मी के अभिनय के सफ़र पर... 

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    अचानक हुई फ़िल्मों में एंट्री

    ऐसा नहीं था कि बचपन से ही फ़िल्मों में आने में उनकी दिलचस्पी रही हो और उन्होंने इसके लिए बाकायदा एक्टिंग की ट्रेनिंग ली हो। वह तो एक दवा कंपनी में सेक्रेटरी के रूप में कार्यरत थीं। शम्मी के एक पारिवारिक मित्र महबूब ख़ान के साथ काम किया करते थे। एक दिन वही पारिवारिक मित्र घर आये और उन्होंने शम्मी से पूछा कि क्या वह फ़िल्मों में काम करेंगी। शम्मी ने हाँ कह दिया तो उन्होंने कहा कि चलो हमें अभी चलना है। फ़िल्ममेकर शेख मुख़्तार एक नयी लड़की ढूंढ रहे हैं।

    उस दिन खूब बारिश हो रही थी। शेख मुख़्तार से मिलने जाते वक़्त शम्मी रास्ते में गिर गयीं, लेकिन उसी हालत में मिलने पहुंचीं। उन्होंने दो-तीन सवाल पूछे। शम्मी की परीक्षा ली गई। उस वक़्त स्क्रीन टेस्ट का दौर नहीं था। उनसे पूछा गया कि हिंदी में बात कर सकती हैं क्या? उन्होंने ओके कर दिया और इस तरह शम्मी का फ़िल्मी करियर शुरू हुआ।

    ऐसे मिला 'शम्मी' नाम

    शम्मी का असली नाम नर्गिस रबाड़ी है, लेकिन उस दौर के जाने-माने निर्देशक तारा हरीश की सलाह पर उन्होंने अपना नाम शम्मी कर लिया। उन दिनों स्क्रीन नेम असली नाम से अलग रखने की परंपरा हिंदी सिनेमा में थी।  शम्मी के फ़िल्मी करियर की शुरुआत 500 रूपये महीने के वेतन से हुई थी। साथ ही उस दौर में उन्होंने तीन साल का कॉन्ट्रेक्ट साइन किया कि वह किसी बाहरी प्रोडक्शन हाउस में काम नहीं करेंगी। शम्मी तब 18 साल की थीं, जब उन्होंने पहली फ़िल्म उस्ताद पेड्रो में काम करना शुरू किया था। साल था 1949। फ़िल्म कामयाब रही। कांट्रेक्ट के बाहर शम्मी की पहली फ़िल्म मल्हार थी, जिसमें वो प्रधान नायिका थीं। फ़िल्म में उनके नायक अर्जुन थे। ख़ास बात ये कि इस फ़िल्म को गायक मुकेश ने प्रोड्यूस किया था, जो पहले शम्मी के नायक बनने वाले थे। 

    बुड्ढी अब और बुड्ढी हो गयी है

    क़रीब 200 फिल्मों में अभिनय करने के साथ ही शम्मी ने विज्ञापनों में भी अभिनय किया था। एक दौर में उन्हें सपोर्टिंग एक्ट्रेस में रूप में ख्याति हासिल हो गई थी। ख़ास बात यह थी कि वह गंभीर फिल्मों के साथ कॉमिक किरदारों में बिल्कुल फिट बैठती थीं। उन्होंने कई कॉमिक किरदारों के लिए अभिनय किया। बाद के दौर में जब कोई उनसे मिलता और पूछता कैसी हैं आप तो वह यही कहतीं कि बुड्ढी अब और बुड्ढी हो गयी है। उन्होंने कंगन, भाई-बहन, दिल अपना और प्रीत पराई, आज़ाद, हलाकू, सन ऑफ़ सिंदबाद, राज तिलक, घर संसार, खजांची, हाफ़ टिकट, जब-जब फूल खिले, प्रीत न जाने रीत, उपकार, इत्तेफ़ाक़, सजन में काम किया। बाद के दौर में हम साथ-साथ हैं और शीरीन फरहाद की तो निकल पड़ी जैसी फिल्मों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज की। नायक-नायिकाओं की मां के किरदार के साथ उन्होंने अलग-अलग रोल निभाये। शम्मी जी ने भले ही बड़े-बूढ़ों के किरदार निभाए हों, मगर उनका जज़्बा कभी बूढ़ा नहीं हुआ। गोपी किशन, कुली नंबर वन, गुरुदेव जैसी फिल्मों में भी शम्मी के अभिनय की यात्रा जारी रही।

    फ़िल्मों में आने से परिवार हुआ नाराज़

     

    शम्मी का परिवार पारसी था और फ़िल्मों में उस दौर में आना सम्मान की बात नहीं समझी जाती थी। उनके परिवार वाले भी खुश नहीं थे, लेकिन उनके मामा चिन्नू ने उन्हें हमेशा प्रोत्साहित किया। शुरुआती दौर में ही बिना किसी अभिनय की ट्रेनिंग के उनका काम जब दर्शकों को पसंद आने लगा तो उन्हें भी काम करने की लालसा बढ़ गयी। उन्हें अपने करियर की तीसरी फ़िल्म में ही मधुबाला और दिलीप कुमार के साथ करने का मौका मिल गया।फ़िल्म थी संगदिल। फिर इस तरह उन्हें कई सुपरस्टार के साथ काम करने के मौके मिलते गये। शम्मी स्वाभाविक एक्टिंग करती थीं। ख़ास तौर से कॉमिक टाइमिंग में उनका कोई सानी नहीं था। कॉमिक एक्सप्रेशन देने में भी वह कमाल करती थीं। उन्होंने अपने करियर में केवल कॉमिक ही नहीं वैम्प के भी किदार निभाए हैं। माइथोलॉजिकल फ़िल्मों का भी वह हिस्सा रहीं। वह कभी अपने किरदार की लेंथ पर नहीं बल्कि किरदार के अंदाज़ पर ध्यान देती थीं और अपना बेस्ट ही देती थीं।

    नर्गिस से हुई गहरी दोस्ती

    मल्हार की शूटिंग के दौरान उनकी मुलाक़ात सुपरस्टार नर्गिस से हुई। नर्गिस की मां जद्दन बाई ख़ुद भी फ़िल्में प्रोड्यूस करती थीं। शम्मी का नाम भी नर्गिस था और अपनी हमनाम से उनकी दोस्ती गाढ़ी होती चली गयी। नर्गिस और शम्मी जब भी मिलतीं खूब गप्प लड़ाया करती थीं और दोनों चुटकुले बोल-बोल के एक दूसरे को हंसाया करती थीं। जद्दनबाई और बाद में सुनील दत्त यह समझ नहीं पाते थे कि ये दोनों जब मिलती हैं तो दोनों को ऐसा क्या हो जाता है कि हंसती ही रहती हैं। शम्मी और नर्गिस न केवल साथ में आइसक्रीम का मज़ा लेती थीं, बल्कि कई बार वह ग़लती से ग़लत पार्टियों में भी पहुंच जाया करती थीं। एक बार तो दोनों को किसी के फ्यूनरल में जाना था और दोनों जल्दबाजी में कहीं और ही पहुंच गई थीं। नर्गिस और शम्मी की दोस्ती नर्गिस की मृत्यु के बाद भी उनके परिवार वालों से बनी रही। दोनों साथ में जब भी फ़िल्में करतीं तो एक-दूसरे के साथ लंच शेयर करती थीं।नर्गिस की बेटी प्रिया दत्त ने श्रद्धांजलि देते हुए लिखा भी है कि शम्मी उनकी मां नर्गिस की सबसे क़रीबी मित्र थीं और उन्होंने दोनों की एक प्यारी सी तस्वीर भी शेयर की है।

    देव आनंद की भी लाड़ली

    शम्मी ने हमेशा ही अपने हंसमुख अंदाज़ से सबका दिल जीता। उनकी यही ख़ासियत थी कि उन्होंने देव आनंद के साथ केवल एक ही फ़िल्म में साथ काम किया, लेकिन वह देव आनंद की लाड़ली बन गई थीं।

    आशा पारेख के साथ प्रोडक्शन

    आशा पारेख के साथ क़रीबी कॉमन मित्रों के कारण और कुछ फ़िल्मों में साथ में अभिनय करने के कारण अच्छी जमने लगी। नतीजतन जब आशा पारेख प्रोडक्शन के काम से जुड़ीं तो उन्होंने शम्मी को भी अपने साथ टीम बनाने को कहा। फिर दोनों ने मिलकर कई धारावाहिकों का निर्माण किया जिनमें कोरा काग़ज़ जैसे कई शो रहे, लेकिन एक वक़्त के बाद शम्मी ने आशा से कहा कि काफी हैक्टिक वर्क है प्रोडक्शन का, सो फिर इससे दूरी बना ली।लेकिन इससे दोनों की दोस्ती में कोई दरार नहीं आयी, बल्कि दोनों का रिश्ता और पुख्ता होता गया। फिर तो शम्मी कपूर, हेलेन, सलमा, वहीदा रहमान और शम्मी पक्के दोस्तों की तरह आये दिन मिलते जुलते थे। इसके साथ ही उन्हें धारावाहिकों में भी अभिनय करने के ऑफ़र मिलने लगे थे। शम्मी ने देख भाई देख, जुबान संभाल के, कभी ये कभी वो, श्रीमान श्रीमती जैसे शोज़ में काम किया। सायरा बानो और साधना भी उनकी क़रीबी मित्र रहीं।