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अपना पहला नेशनल अवॉर्ड लेने रिक्शे में गए थे Manoj Bajpayee, कहा- आज भी बीवी मुझसे सब्जियां मंगाती है

हिंदी सिनेमा के सबसे बेहतरीन कलाकारों में से एक मनोज बाजपेयी की फिल्म गुलमोहर को 70वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में स्पेशल मेंशन अवॉर्ड से सम्मानित किया जा रहा है। वह अक्टूबर के महीने में अपने इस अवॉर्ड को रिसीव करने वाले हैं। इस खुशी को दैनिक जागरण के साथ साझा करते उन्होंने अपने संघर्ष के दिनों के बारे में बातचीत की।

By Priyanka singh Edited By: Tanya Arora Updated: Tue, 01 Oct 2024 12:14 PM (IST)
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मनोज बाजपेयी ने बताए अपने संघर्ष के दिन/ फोटो- Instagram

एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। किसी विशेष अवॉर्ड समारोह में खास तरह के कपड़ों में जाना तो बनता ही है। 70 वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में मनोज बाजपेयी को ‘गुलमोहर’ फिल्म के लिए स्पेशल मेंशन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है। अक्टूबर में वह इसे लेने के लिए पुरस्कार समारोह में शामिल होंगे। इस खास दिन के लिए मनोज जो भी पहनकर जाएंगे, उसके लिए उनकी पत्नी शबाना रजा की सहमति बेहद जरूरी है।

मनोज कहते हैं, ‘कपड़ों को लेकर मेरी समझ खास नहीं है। मेरी पत्नी को इसकी बहुत अच्छी समझ है। वह मॉडल भी रह चुकी हैं। मेरे कुछ डिजाइनर दोस्त हैं, वह भी सलाह देते हैं। दिल्ली के एक बड़े डिजाइनर हैं, जिनका फोन उसी दिन आ गया था, जिस दिन राष्ट्रीय पुरस्कार की घोषणा हुई थी। उन्होंने कहा कि तुम केवल मेरे डिजाइन किए हुए कपड़े पहनोगे।

खैर, मैं जो भी पहनूंगा उन कपड़ों को लेकर शबाना की सहमति जरूरी है। जब घर की साज-सजावट भी होती है, तो मुझे बातचीत में इसलिए शामिल किया जाता है, ताकि अगर कल को कुछ गड़बड़ हो तो यह कहा जा सके कि आप भी इसका हिस्सा थे। नहीं तो उन्हें मेरी जरूरत नहीं होती है। मैं कुछ भी राय देता हूं, तो मुझे चुप करा दिया जाता है कि तुम्हें कुछ नहीं पता है।’

जब ‘सत्या’ फिल्म के दौरान मनोज को पहली बार बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था, तो उन्होंने कपड़ों को लेकर क्या जुगाड़ लगाया था?

इस पर वह हंसते हुए बताते हैं, ‘मैंने एक डिजाइनर को फोन किया था, तब उन्होंने कपड़े दिए थे। फिर उन्होंने मेरी एक-दो फिल्मों में काम भी किया था।’

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मनोज को जब पहला राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था, उन दिनों वह इंटरव्यू देने के लिए ऑटो रिक्शा से सफर करते थे। आज उनके पास बड़ा घर और गाड़ी है। उन दिनों को वह कैसे याद करते हैं?

काम और जीवन को देखने का नजरिया क्या है, इस पर बहुत सी चीजें निर्भर करती हैं। आज जो मेरे पास सुख-सुविधाएं हैं, वह केवल मेरे काम की वजह से मिल रही हैं। मेरी बड़ी गाड़ी की वजह से मुझे काम नहीं मिलता है। मेरे काम की वजह से मेरे पास बड़ी गाड़ी और घर है। अगर इस नजरिए के साथ आप रहेंगे, तो फिर ऑटो-रिक्शा में भी आसानी से बैठ सकते हैं, सब्जियां खरीदने के लिए बाजार जा सकते हैं।

मेरी पत्नी कभी-कभार मुझे फोन पर यह कहने से हिचकती नहीं हैं कि आ रहे हो, तो चार बंगला (मुंबई का एक इलाका) के पास के सब्जीवाले से फलां सब्जियां ले आना। मैं लेकर आता हूं। यह मेरे घर का काम है। मैं कोई बड़ा काम नहीं कर रहा हूं। मेरे घर का काम अगर मैं नहीं करूंगा, तो कौन करेगा।

अगर मैं बड़ी गाड़ी के बावजूद रिक्शा से जा रहा हूं, तो इसलिए जाऊंगा कि मेरे पास कोई और चारा नहीं होगा। जब मेरे ड्राइवर समय पर नहीं आते हैं और मुझे मीटिंग या नरेशन के लिए जाना होता है, तो मैं रिक्शा लेकर निकल जाता हूं। मेरे ड्राइवर के पास देरी से आने के ढेरों कारण हो सकते हैं। मेरे पास देर करने का एक भी कारण नहीं है। मेरे गुरु बैरी जॉन सर ने मुझे कहा था कि नेवर वेट फॉर द कार यानी कार के लिए कभी प्रतीक्षा मत करना। इसका एक मतलब यह भी है कि मटेरियलिस्टिक सुख-सुविधाओं पर निर्भर मत रहना!’

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