Sanjay Mishra से एक खास मुलाकात, कहा- करना चाहते है सुभाष घई के लिखे गाने पर डांस
बाकी सेट पर ज्यादा खयाल रखना पड़ता है। कर्फ्यू की वजह से रात में शूटिंग नहीं हो पाती है। किसी एक्टर की तबीयत खराब होने पर कई बार काम रोकना पड़ जाता है। इन अनिश्चितताओं की वजह से सब मिक्स हो जा रहा है।
प्रियंका सिंह, मुंबई। अभिनेता संजय मिश्रा की आगामी फिल्म ‘36 फार्महाउस’ 21 जनवरी को जी5 पर रिलीज होगी। इस फिल्म में सुभाष घई के साथ काम करने को लेकर उत्साहित संजय मिश्रा से प्रियंका सिंह ने की खास मुलाकात।
आप इन दिनों में लखनऊ में हैं। कैसा लग रहा है?
हां, इन दिनों लखनऊ में अपनी एक फिल्म की शूटिंग कर रहा हूं। सबसे अलग एक फार्महाउस में हूं। अब आदत बन गई है इस मुश्किल हालात में काम करने की। बड़े प्रोडक्शन हाउस की फिल्म है। उत्तर प्रदेश में जब भी शूटिंग होती है तो लगता है कि घर में ही हूं।
कोरोना के बढ़े हुए मामलों की वजह से क्या फिर से काम करने में कोई दिक्कत हो रही है?
बस काम रुका नहीं है। बाकी सेट पर ज्यादा खयाल रखना पड़ता है। कर्फ्यू की वजह से रात में शूटिंग नहीं हो पाती है। किसी एक्टर की तबीयत खराब होने पर कई बार काम रोकना पड़ जाता है। इन अनिश्चितताओं की वजह से सब मिक्स हो जा रहा है। अब जिसे डेट दे रखी है, उनको नुकसान भी नहीं होना चाहिए। इस साल मेरी कई बड़ी फिल्में आएंगी। अब लग रहा है कि बस इस महामारी से राहत मिले।
आप बहुत सारा काम डिजिटल प्लेटफार्म के लिए कर रहे हैं। क्या यह आपको अधिक आकर्षित कर रहा है?
कोरोना की वजह से सिनेमाघरों का माहौल ठंडा पड़ा है। कहीं न कहीं से तो आगे बढ़ना पड़ेगा। इस फिल्म में मुझे सुभाष घई के लिखे गाने पर डांस करने का मौका भी मिल रहा है। उनकी फिल्मों के गाने ‘नायक नहीं खलनायक हूं मैं...’ वगैरह पर, जब युवा थे, तब डांस करते थे। वे गाने अब मेरे लिए लिखे गए हैं तो उत्सुकता है।
हर कलाकार उनके साथ काम करना चाहता है। उन्होंने हिंदी सिनेमा को बड़े स्टार्स दिए हैं। एक ऐसे मेकर के साथ काम करना, जिनके बारे में हम सोचा करते थे कि उनकी फिल्म में छोटा-मोटा रोल भी मिल जाए या किसी सीन में खड़े होने को ही मिल जाए तो बहुत है। अब उन्होंने मेरे लिए किरदार लिखा है, इससे बड़ी बात क्या होगी। (हंसते हुए) टनाटन, मजेदार एहसास है।
अब जिस तरह के किरदार आपको ध्यान में रखकर लिखे जा रहे हैं, उससे कोई बदलाव महसूस कर रहे हैं?
हां, मुझे लगता है कि दर्शक भी अब जागरूक हो गए हैं। वह कहते हैं कि बास, अब मुझे अच्छे कंटेंट वाली फिल्में दिखाओ। जिसमें हीरो-हीरोइन के प्यार के अलावा भी देखने के लिए कुछ हो कि गुरु इस फिल्म में कोई बात है। हिंदी सिनेमा में इसकी जरूरत भी है। हमारे उत्तर प्रदेश व बिहार की पृष्ठभूमि व हिंदी साहित्य में इतनी सारी कहानियां हैं, जिन्हें अब तक एक्सप्लोर नहीं किया गया है।
आप बातचीत में गुरु शब्द का प्रयोग काफी करते हैं। क्या यह बनारस में रहने की वजह से बातचीत में आ जाता है?
हां, बिल्कुल सही कहा, यह बनारस से ही आता है। अब कहां किसी को हैलो सर या मिस्टर कहें, गुरु कहो, यह सही लगता है। जहां बचपन बीतता है, वहां के संस्कार आपके भीतर आ जाते हैं। उन्हें हमेशा भीतर रखना चाहिए। अगर आप उन जड़ों से कट जाएं तो फिर गड़बड़ हो जाएगी।
क्या आप वह कहानियां लाना चाहेंगे, जो एक्सप्लोर नहीं हो पा रही हैं?
हां, मैं अपनी तरफ से कोशिश कर ही रहा हूं। ‘कड़वी हवा’, ‘टर्टल’ सामाजिक संदेश देने वाली फिल्में हैं। मैं अपने तरीके से काम कर रहा हूं।
इस फिल्म के ट्रेलर में तो आप जलेबियां छानते दिखाई दे रहे हैं। वास्तविक जीवन में खाना बना लेते हैं?
(हंसते हुए) मैं बेवकूफ बना लेता हूं। खैर, यह तो मजाक था। मैं खाना अच्छा बना लेता हूं। खाना बनाने का शौकीन भी हूं। गोभी की सब्जी अच्छी बना लेता हूं। मैं बाहर का खाना अवाइड करता हूं। लखनऊ में भी अपना खाना खुद बना रहा हूं। सरसों का मौसम है। इन दिनों सरसों का साग खूब बना रहा हूं। वेज और नान वेज दोनों ही पकाना अच्छा लगता है