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    'मिर्जापुर' वाले 'मुन्ना भैया' चकाचौंध भरी दुनिया से दूर करना चाहते हैं ये काम, जानकर फैंस हो सकते हैं खुश

    मैं दिल्ली मे पला-बढ़ा लड़का हूं बहुत ज्यादा गांव नहीं गया हूं। फिल्म की शूटिंग के दौरान हम करीब डेढ़ माह तक भोपाल के पास सीहोर जिले के एक गांव में रहे। शूटिंग के दौरान खेती-किसानी के बारे में कुछ संशय होने पर गांव वालों से बेहिचक पूछ लेते थे।

    By Priti KushwahaEdited By: Updated: Sat, 07 May 2022 07:07 AM (IST)
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    Photo Credit : Divyenndu Sharma Instagram Photos Screenshot

    दीपेश पांडेय, मुंबई। 'प्यार का पंचनामा' और 'चश्मे बद्दूर' फिल्मों में कामेडी करने बाद दिव्येंदु शर्मा वेब सीरीज 'मिर्जापुर' में दबंग मुन्ना भइया के किरदार में नजर आए। हालिया रिलीज शार्ट फिल्म '1800 लाइफ' में स्टैंड अप कामेडियन का किरदार निभाने के बाद, अब वह फिल्म 'मेरे देश की धरती' में खेती-किसानी और रोमांस करते नजर आएंगे। उनसे बातचीत के अंश:

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    किस कारण से यह फिल्म आपको अच्छी लगी?

    इस फिल्म में शहरी युवाओं और गांव के किसानों की मुद्दों की बात की गई है। इसकी कहानी सुनकर मुझे लगा कि अगर युवा और किसान दोनों मिल जाएं, तो दोनों की समस्याओं का समाधान निकल सकता है। इस फिल्म में समस्या और उसके समाधान दोनों के बारे में बातें की गई हैं। हर फिल्म फायदे या नुकसान के लिए नहीं बनाई जाती है। इस फिल्म और इसके विषय को लोगों तक पहुंचना बहुत जरूरी है। इस फिल्म में बेरोजगारी और किसानों की समस्याओं जैसे मुद्दे को बड़े मनोरंजक और सहज तरीके से दिखाया गया है।

    गांवों से कितना लगाव कैसा रहा है?

    मैं दिल्ली मे पला-बढ़ा लड़का हूं, बहुत ज्यादा गांव नहीं गया हूं। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान हम करीब डेढ़ माह तक भोपाल के पास सीहोर जिले के एक गांव में रहे। शूटिंग के दौरान खेती-किसानी के बारे में कुछ संशय होने पर हम गांव वालों से बेहिचक पूछ लेते थे। जब हम विशेषज्ञों की मदद से फिल्म में किसानों की समस्याओं के समाधान की बात करते, तो उन्हें भी वे बातें सही लगती। मैं तो उनके घर में जाकर खूब खाना खाता था। कई लोग मेरे लिए अपने घर से मिठाइयां, साग, बाजरे और जौ की रोटियां बनाकर लाते थे। हम उनका खाना खाते थे और उन्हें अपना खाता खिलाते थे।

    मुंबई की व्यस्त जिंदगी के बीच किसी गांव में जाकर वक्त बिताने का मन करता है?

    बिल्कुल, वक्त मिलने पर मैं पहाड़ों के बीच गांवों में चला जाता हूं। महामारी के दौरान तो मैं करीब दो महीने हिमाचल प्रदेश में रहकर आया। इसके अलावा पेड़-पौधे लगाने में भी मेरी बड़ी रुचि है। मेरे घर की एक बालकनी

    पूरी पौधों से भरी है, मैं खुद उनकी देखरेख करता हूं। अगर मेरा बस चलेगा, तो भविष्य में मैं किसी गांव में अपना एक आर्गेनिक फार्म बनाउंगा और किसानी का आनंद लूंगा।

    मुन्ना के किरदार से जो एंग्री यंगमैन की छवि बनी, कभी करियर में उसे ब्रांड के तौर पर भुनाने का विचार नहीं आया?

    मैं उन लोगों में से हूं, जो अपना ब्रांड बनाकर उसे कैश नहीं करते हैं। 'प्यार का पंचनामा' के बाद डेविड धवन सर के साथ 'चश्मे बद्दूर' फिल्म की। तब लगा कि कामेडी बहुत कर ली, अब इससे ब्रेक लेते हैं। हर कलाकार की अपनी प्राथमिकता होती है। अपनी कामेडी, एक्शन और निगेटिव छवि या ब्रांड को भुनाने वाले कलाकारों को मैं बिल्कुल भी गलत नहीं कहता हूं। कुछ लोग मेरे जैसे भी होते हैं, जिन्हें अलग-अलग काम करने में ज्यादा मजा आता है। यही मेरे जीवन की किक है।

    क्या कभी ऐसा लगा कि 'मिर्जापुर' के बाद करियर में जो असर दिखना चाहिए था, उसमें वक्त लग रहा है?

    (सोचकर) जो असर दिखना चाहिए था, वो हो चुका है। मैं इंडस्ट्री के सबसे बेहतरीन प्रोडक्शन हाउस और कलाकारों के साथ काम कर रहा हूं। हर इंसान के लिए सफलता के मायने एक नहीं हो सकते हैं। कुछ लोग भौतिक चीजों प्राप्त करने को सफलता मानते हैं, कुछ लोग मानसिक संतुष्टि को। मैं इंडस्ट्री में एक आउटसाइडर हूं, पहले किसी को जानता नहीं था। कई साल पहले फिल्म 'प्यार का पंचनामा' की थी, जिससे काफी तारीफ मिली। वहां से शुरू हुआ मेरा सफर अब यहां तक पहुंच गया है, जहां पर मैं अपने नाम और काम से जाना जाता हूं। मेरे लिए यही सफलता है। हिट पर हिट देते रहना या ज्यादा पैसे कमाना मेरे लिए सफलता नहीं है। मैं एक कलाकार हूं, सड़क पर नाच दिखाने वाला मदारी नहीं, जो रोज एक ही कलाबाजी करके कमाता है।

    'मिर्जापुर 2' में आपका मर चुका था, क्या तीसरे सीजन में उसकी वापसी की उम्मीद कर सकते हैं?

    (हंसते हुए) उम्मीद पर तो दुनिया कायम है। 'मिर्जापुर 3' की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। तीसरे सीजन में क्या होगा, यह बताकर मैं लोगों का मजा किरकिरा नहीं करना चाहता हूं। जून-जुलाई से हम इसकी शूटिंग शुरू करेंगे।