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    पुण्यतिथि पर याद आईं स्मिता पाटिल, जानिये क्या पूरी हो सकी उनकी 'अंतिम इच्छा'

    By Hirendra JEdited By:
    Updated: Fri, 14 Dec 2018 05:05 AM (IST)

    राज बब्बर के साथ स्मिता का रिश्ता भी कुछ बहुत सहज नहीं रह गया था। स्मिता अपने आखिरी दिनों में बहुत अकेला महसूस करती थीं।

    पुण्यतिथि पर याद आईं स्मिता पाटिल, जानिये क्या पूरी हो सकी उनकी 'अंतिम इच्छा'

    मुंबई। 13 दिसंबर 1986 को महज 31 साल की उम्र में ही अभिनेत्री स्मिता पाटिल के निधन से बॉलीवुड चौंक सा गया था! आज स्मिता पाटिल की पुण्यतिथि है। क्या आप जानते हैं स्मिता की मौत के बाद उनकी 10 फ़िल्में रिलीज हुईं थीं। 'गलियों का बादशाह' उनकी आखिरी फ़िल्म थी।

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    आज भी जब कभी बॉलीवुड के संवेदनशील कलाकारों का ज़िक्र होता है तो उनमें स्मिता पाटिल का नाम बड़े ही सम्मान के साथ लिया जाता है। सिनेमा के आकाश पर स्मिता एक ऐसे सितारे की तरह रहीं जिन्होंने अपनी सहज और सशक्त अभिनय से कमर्शियल सिनेमा के साथ-साथ समानांतर सिनेमा में भी अपनी एक ख़ास पहचान बनायी।

    17 अक्टूबर 1955 को महाराष्ट्र के पुणे शहर में जन्मीं स्मिता के पिता शिवाजी राय पाटिल राज्य सरकार में मंत्री थे, जबकि उनकी मां एक समाज सेविका थी। स्मिता जब महज 16 साल की थीं तभी वो न्यूज़रीडर की नौकरी करने लगी थीं। आपको बता दें, न्यूज़ पढने के लिए स्मिता दूरदर्शन में जींस पहन कर जाया करती थीं लेकिन, जब उन्हें न्यूज़ पढ़ना होता तो वो जींस के ऊपर से ही साड़ी लपेट लिया करतीं। क्योंकि तब टीवी पर न्यूज़रीडर साड़ी पहनकर ही ख़बरें पढ़ती थीं!

    उसी दौरान उनकी मुलाकात जाने माने निर्माता-निर्देशक श्याम बेनेगल से हुई और बेनेगल ने स्मिता की प्रतिभा को पहचान कर उन्हें अपनी फ़िल्म 'चरण दास चोर' में एक छोटी सी भूमिका निभाने को कहा। वहां से स्मिता का फ़िल्मी सफ़र शुरू हो गया! अस्सी के दशक में स्मिता ने समानांतर सिनेमा के साथ व्यावसायिक सिनेमा की ओर अपना रूख कर लिया। इस दौरान उन्हें तब के सुपरस्टार अमिताभ बच्चन के साथ 'नमक हलाल' और 'शक्ति' में काम करने का मौका मिला। यह फ़िल्में कामयाब रहीं। 

    एक दशक से भी छोटे फ़िल्मी सफ़र में स्मिता पाटिल ने अस्सी से ज्यादा हिंदी और मराठी फ़िल्मों में अभिनय कर अपनी एक अलग पहचान बनाई। उनकी चर्चित फ़िल्मों में - 'निशान्त', 'चक्र', 'मंथन', 'भूमिका', 'गमन', 'आक्रोश', 'अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है', 'अर्थ', 'बाज़ार', 'मंडी', 'मिर्च मसाला', 'अर्धसत्य', 'शक्ति', 'नमक हलाल', 'अनोखा रिश्ता' आदि शामिल हैं।

    व्यवस्था के बीच पिसती एक औरत के संघर्ष पर आधारित केतन मेहता की फ़िल्म 'मिर्च-मसाला' ने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाई। फ़िल्म 'भूमिका' और 'चक्र' में श्रेष्ठ अभिनय के लिए दो बार वो नेशनल अवार्ड्स जीत चुकी हैं! साथ ही उन्हें चार फिल्मफेयर अवार्ड भी मिले। साल 1985 में भारतीय सिनेमा में उनके अमूल्य योगदान को देखते हुये उन्हें 'पदमश्री' से सम्मानित किया गया।

    स्मिता पाटिल की पर्सनल लाइफ की बात करें तो वो शोहरत के साथ-साथ विवादों की वजह से भी वो चर्चा में रहीं। गौरतलब है कि जब राज बब्बर के साथ उनकी नजदीकियां कुछ ज्यादा ही बढ़ गई थीं तब मीडिया ने उनकी आलोचना करनी शुरू कर दी थी, क्योंकि राज पहले से ही शादीशुदा थे।

    स्मिता की जीवनी लिखने वाली लेखिका मैथिली राव अपनी किताब में कहती हैं, "स्मिता पाटिल की मां स्मिता और राज बब्बर के रिश्ते के ख़िलाफ़ थीं। वो कहती थीं कि महिलाओं के अधिकार के लिए लड़ने वाली स्मिता किसी और का घर कैसे तोड़ सकती है? लेकिन, राज बब्बर से अपने रिश्ते को लेकर स्मिता ने मां की भी नहीं सुनी।"

    आपको बता दें, 1986 में राज बब्बर और स्मिता एक हो गए। राज से स्मिता को एक बेटा भी हुआ- प्रतीक। प्रतीक के जन्म के कुछ घंटों बाद ही 13 दिसंबर 1986 को स्मिता का निधन हो गया। कहा जाता है कि राज बब्बर के साथ स्मिता का रिश्ता भी तब तक कुछ बहुत ज्यादा अच्छा नहीं रह गया था। स्मिता अपने आखिरी दिनों में बहुत अकेला महसूस करती थीं।

    स्मिता पाटिल की एक आखिरी इच्छा थी। उनके मेकअप आर्टिस्ट दीपक सावंत के मुताबिक, "स्मिता कहा करती थीं कि दीपक जब मैं मर जाउंगी तो मुझे सुहागन की तरह तैयार करना।" मरने के बाद उनकी अंतिम इच्छा के मुताबिक़, स्मिता के शव का सुहागन की तरह मेकअप किया गया।