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दलितों की दास्तान है फिल्म शूद्र द राइजिंग

सिनेमा के माध्यम से खामोश क्रांति लाने का सपना देखने वाले फिल्म निर्माता निर्देशक संजीव जायसवाल की आने वाली फिल्म शूद्र द राइजिंग को लेकर काफी उत्साहित है। शूद्र देश के उन पच्चीस करोड़ लोगो की कहानी है जो मनुस्मृति से लेकर आज के समय तक आती है और दलितों को उनके मूलभूत अधिकारों से वंचित किए जाने की समस्या को प्रभावी ढंग से उठाती है।

By Edited By: Published: Mon, 19 Mar 2012 01:48 PM (IST)Updated: Mon, 19 Mar 2012 01:48 PM (IST)

कानपुर। सिनेमा के माध्यम से खामोश क्रांति लाने का सपना देखने वाले फिल्म निर्माता निर्देशक संजीव जायसवाल की आने वाली फिल्म शूद्र द राइजिंग को लेकर काफी उत्साहित है। शूद्र देश के उन पच्चीस करोड़ लोगो की कहानी है जो मनुस्मृति से लेकर आज के समय तक आती है और दलितों को उनके मूलभूत अधिकारों से वंचित किए जाने की समस्या को प्रभावी ढंग से उठाती है।

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समाज के काले पन्ने को को सेल्लयूलाइड के पर्दे पर उतारने वाले मुंबई के फिल्म निर्माता निदेशक संजीव जायसवाल एक निजी कार्यक्रम में भाग लेने कानपुर आए थे। जायसवाल इससे पहले वर्ष 2005 में बतौर निर्माता फरेब फिल्म बना चुके है जिसमे शिल्पा शेट्टी, शमिता शे्टटी ओर मनोज वाजपेई जैसे नामचीन फिल्मी कलाकार थे। फरेब के सात साल बाद जायसवाल शूद्र दि राइजिंग फिल्म लेकर आए हैं।

इस फिल्म को गोवा फिल्म फेस्टिवल में काफी सराहना मिल चुकी है तथा कांस फिल्म फेस्टिवल में शामिल करने के लिए भेजी गई है। गोवा में इस फिल्म को गोविंद निहलानी, शेखर कपूर और विशाल भारद्वाज ने इस फिल्म को देखा और उनके इस प्रयास की सराहना की।

जायसवाल ने कहा, प्राचीन काल में हिन्दू समाज ने खुद को ब्राहमण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ग में बांट रखा था और शूद्रों के साथ भेदभाव किया जाता था, उन्हें न तो गांव के कुंए और तालाब से पानी पीने की इजाजत थी ओर न ही किसी भी कार्यक्रम में हिस्सा लेने की। जायसवाल ने कहा, तब मैने इस विषय पर फिल्म बनाने का निर्णय किया और इस सिलसिले में दलित साहित्य का तो अध्ययन किया ही साथ साथ ही तमाम दलित लेखकों और रिसर्च स्कालरों से मिल कर इस बारे में दो वर्ष तक गहन अध्ययन किया। तब मुझे पता चला कि वर्षो से फैली हिंसा की जड़ में जाति व्यवस्था है।

लगभग दो साल में तैयार हुई और सेंसर से सार्टिफिकेट का इंतजार कर रही फिल्म शूद्र के निर्माता निर्देशक लेखक कहते हैं, डा अंबेडकर ने कहा था कि जिस समाज को मिटाना है उसका इतिहास मिटा दो समाज स्वंय मिट जाएगा। वह कहते है कि कहने को हम एक हैं लेकिन दलितो की स्थिति में कुछ खास परिवर्तन नही आया है और दलितों की प्राचीन समाज में क्या स्थिति थी इसी को हमने पर्दे पर उतारने का प्रयास किया है।

वह कहते हैं फिल्म को सेंसर बोर्ड के पास भेजा गया है और एक महीने में सेंसर प्रमाणपत्र मिलने की उम्मीद है। बोर्ड के सदस्यों ने इस फिल्म और इसके विषय की काफी सराहना की है। शूद्र के निर्देशक, निर्माता और लेखक जायसवाल से जब पूछा गया कि आपने इस फिल्म में केवल थिएटर के कलाकारों को क्यों लिया है इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि हमने अपनी फिल्म में नामी कलाकारों को इस लिए नही लिया, क्योंकि नामी कलाकारों के बोझ के तले फिल्म की कहानी दब जाती।

जायसवाल कहते हैं कि एक बार जब फिल्म की कहानी की आत्मा ही मर जाती तो फिर हम जो दलितों के उूपर हुए जुल्म और अत्याचार की कहानी दिखाना चाहते थे उसके साथ इंसाफ नही हो पाता। वह कहते है कि अगले माह तक सेंसर से प्रमाणपत्र मिलने के बाद ही हम शूद्र दि राइजिंग फिल्म की रीलीज की तारीख की घोषणा करेंगे।

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