Sheila Ramani: एक्ट्रेस जिसकी खूबसूरती के फिल्म इंडस्ट्री में थे चर्चे, आखिरी दिनों में मिली गुमनाम मौत
पहले के दौर में जब फिल्मों में महिलाओं के काम करने को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता था और उनके लिए रोल वैसे नहीं गढ़े जाते थे जैसे मेल एक्टर्स के लिए तब ...और पढ़ें

एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। Actress Sheila Ramani: एक वक्त था जब बॉलीवुड में महिलाओं का काम करना गलत माना जाता था। उसे दौर में काम ही महिलाएं सिनेमा की जादुई दुनिया में अपना दमखम दिखा पाती थीं। धीरे-धीरे वक्त बदला और आज न सिर्फ फीमेल फिल्म इंडस्ट्री का अहम हिस्सा मानी जाती हैं, बल्कि सिर्फ उन्हें ही लेकर कई महिला प्रधान फिल्में भी बनती हैं।
50 के दशक में था इस अभिनेत्री का दबदबा
बॉलीवुड में महिलाओं की अहमियत और उन्हें ध्यान में रखते हुए लिखने वाले रोल जैसी बातों पर अब ज्यादा महत्व दिया जाता है, लेकिन इतिहास के पन्नों को पलटें, तो पाएंगे कि 50 के दशक में एक अभिनेत्री ऐसी थी, जिसने जब बॉलीवुड में कदम रखा, तो एक्ट्रेस तो क्या एक्टर्स तक का स्टारडम फीका लगने लगा था। यह एक्ट्रेस थीं शीला रमानी।

अनकहे किस्से में आज हम इस एक्ट्रेस की बात करेंगे, जिन्होंने सारी जिंदगी नाम और पैसा कमाने के बावजूद गुमनामी में दुनिया को अलविदा कह दिया।
सड़कों पर चलना हो गया था मुश्किल
2 मार्च, 1932 को पकिस्तान के सिंध में जन्मीं शीला रमानी का असल नाम शीला केवलरमानी था। वह बेहद खूबसूरत थीं। जब-जब उन्होंने अपनी अदाओं का जादू पर्दे पर बिखेरा, तब-तब उनके चाहने वालों की कमी नहीं रही। 'चढ़ती जवानी के दिन हैं, फिर ऐसा समां मिलेगा कहां...', यह पुराने जमाने का वह गाना है, जिसके जरिए शीला रमानी ने अपनी अदाओं से पर्दे पर आग लगा दी थी।

शीला रमानी न सिर्फ बॉलीवुड की बेहतरीन अदाकारा थीं, बल्कि उन्होंने कई ऐतिहासिक काम भी किए थे। हर किसी ने शीला रमानी की बोलती आंखों का जादू और रंगीन मिजाज देखा था। उनका औरा ही कुछ ऐसा था की देव आनंद और राजेश खन्ना जैसे सितारों का चार्म भी उनके आगे फीका लगता था।
पाकिस्तानी फिल्मों में भी किया काम
शीला रमानी बॉलीवुड की पहली एक्ट्रेस रही थीं, जिन्होंने बंटवारे के बाद पाकिस्तान की फिल्मों में भी काम किया था। लेकिन वहां के माहौल के कारण वह भारत लौट आईं।
'लक्स' के विज्ञापन में आई थीं नजर
मुंबई लौटने के बाद उन्होंने कुछ फिल्में कीं। उस दौर में शीला रमानी ने 'लक्स' का विज्ञापन भी किया था, जिसमें तब किसी भी एक्ट्रेस का फीचर होना बड़ी बात मानी जाती थी। शीला की लोकप्रियता धीरे-धीरे इस कदर बढ़ने लगी कि उनका बाहर निकलना तक मुश्किल हो गया था।
देव आनंद की फिल्म में लूटी थी वाहवाही
दरअसल, 1954 में फिल्म आई थी, जिसका नाम था 'टैक्सी ड्राइवर।' फिल्म के लीड स्टार्स थे देव आनंद और कल्पना कार्तिक। मूवी में दोनों स्टार्स पर एक सोलो सांग फिल्माया गया था, जिसके बोल थे, 'जाए तो जाए कहां...' जबकि क्लब की डांसर 'लिली' पर चार गाने फिल्माए गए थे। 'लीली' का रोल शीला रमानी ने प्ले किया था। इसके साथ ही उनके कुछ सीन भी थे, जिसमें उन्होंने एक्टिंग की थी।

जब फिल्म रिलीज हुई, तो शीला रमानी रातों-रात स्टार बन गईं। इस मूवी से उन्हें ऐसा स्टारडम मिला कि उनका सड़कों पर चलना मुश्किल हो गया था। कहां जाता है कि वह जहां जातीं, फैंस की भीड़ उन्हें घेर लेती थी। उनके स्टारडम के आगे देव आनंद तक फीके नजर आने लगे थे।
शोहरत कमाने के बावजूद आखिरी वक्त में थीं अकेले
कहते हैं कि वक्त एक जैसा नहीं रहता और सब का वक्त भी एक सा नहीं रहता। शीला रमानी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। अपनी जिंदगी के आखिरी दिनों में वह अकेलेपन से जूझ रही थीं। दरअसल, शीला अपनी जिंदगी के आखिरी समय में कोमा में चली गई थीं। वह लंबे वक्त से अल्जाइमर की बीमारी से जूझ रही थीं। 15 जुलाई, 2015 को मध्य प्रदेश के इंदौर में उन्होंने आखिरी सांस ली थी।

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