ये उन दिनों की बात है: शर्मीला टैगोर से सुनाया सत्यजीत रे का ये अनोखा किस्सा
शर्मीला टैगोर - "रे दा कभी भी बच्चों को बच्चों की तरह ट्रीट नहीं करते थे l"
मुंबई l अपने ज़माने की मशहूर अभिनेत्री शर्मीला टैगोर की माने तो भारतीय सिनेमा के बेहतरीन फिल्मकार सत्यजीत रे कभी भी अपने बाल कलाकारों से डायलॉग्स को रट्टा मार कर याद करने पर जोर नहीं देते थे l
दिल्ली में नेहरु मेमोरियल लाइब्रेरी में ‘री-विसिटिंग रे’ कांफ्रेंस-सेमीनार के दौरान सत्यजीत रे के दौर को याद करते हुए शर्मीला ने उस दौर की कई बातें बताई l साल 1959 में सत्यजीत रे की बांग्ला फिल्म अपुर संसार से अपना फिल्मी करियर शुरू करने वाली शर्मीला ने बताया – “मैंने 13 साल की उम्र में अपना करियर शुरू किया थाl वो हमें ज़्यादा इंस्ट्रक्शन नहीं देते थे l तब मुझे स्क्रिप्ट मिलती थी लेकिन कभी डायलॉग याद करने के लिए नहीं l सत्यजीत रे धीरे से आ कर कान में फुसफुसाते, ये सब जल्द से जल्द ख़त्म करना है l हमें उनका रौब मालूम था लेकिन हम कभी भी नर्वस नहीं हुए”l शर्मीला कहती हैं उनका साफ़ साफ़ निर्देश होता था और उसका पालन करना भी बड़ा ही आसन था l रे दा कभी भी बच्चों को बच्चों की तरह ट्रीट नहीं करते थे l वो नए नए विचारों के धनी थे l कभी भी बाजार परक दुनिया से प्रभावित नहीं हुए l शर्मीला टैगोर ने बताया कि वो सत्यजीत रे के समर्पण और काम के प्रति लगन से बेहद प्रभावित हुई हैं l वो आज भी (उनका काम) देश और दुनिया के सबसे विश्वसनीय फिल्ममेकर माने जाते हैं l उनके अप्पु ट्रायोलॉजी आज भी दुनिया की 100 सर्वकालिक श्रेष्ठ फिल्मों में मानी जाती है l भारत के महान फिल्मकार सत्यजीत रे की पहली ही फिल्म पाथेर पांचाली को कान फिल्म फेस्टिवल सहित 11 जगहों से पुरस्कार मिले थे l सत्यजीत रे अपनी फिल्मों की स्क्रिप्ट ख़ुद लिखते l कास्टिंग और एडिटिंग भी करते l अपनी फिल्म के क्रेडिट टाइटल भी ख़ुद डिजाइन करते और प्रचार की सामग्री भी ख़ुद तैयार करते l इस मौके पर शर्मीला टैगोर ने कहा कि सत्यजीत रे का युग मल्टीप्लेक्स का युग नहीं था l लेकिन फिर भी उन्होंने जिस तरह से पाथेर पांचाली जैसी फिल्म के लिए पैसा जुटाया था वो बड़ा ही मुश्किल काम था l अपने करियर में उन्हें कई बार पैसे की तंगी का सामना करना पड़ा l वो जिस तरह के हालत में फिल्में बनाते थे उसके बारे में आज कल्पना करना भी कठिन है l
शर्मीला उन दिनों को याद करती हैं – “सत्यजीत रे का वो दौर भी देखा है l ख़ूब सारे गड्ढों से भरा फ्लोर हुआ करता था l एक साधारण सा ट्रॉली शॉट लेना भी बड़ी चुनौती थी l बार बार बिजली चली जाया करती थी l और इस कारण खर्च भी बढ़ जाता था l सत्यजीत रे के पास उस समय उपयुक्त सामान भी नहीं हुआ करते थे जिससे शूटिंग आसानी से हो सके l और इस कारण उन्हें हर बार इम्प्रोवाइज़ करना पड़ता था l सत्यजीत रे के ये सुधार उनके लिए मदद का काम करते थे" l साल 1966 में सत्यजीत रे की फिल्म नायक में काम कर चुकीं शर्मिला टैगोर ने कहा सत्यजीत रे ने हमेशा समझौतों से इंकार किया l काम के प्रति उनकी दृढ़ता और प्रतिबद्धता ही उनको महान बनाती है l
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