गोलमाल 5, कमांडो 4, दृश्यम 2, किक 2 और बाघी 4 जैसी सीक्वल फिल्में जानिए कैसे करती हैं रोमांचित
‘गोलमाल’ ‘धमाल’ ‘हाउसफुल’ ‘मस्ती’ की फ्रेंचाइज इसलिए पसंद की जा रही हैं क्योंकि वे मजबूत स्क्रिप्ट के साथ आगे बढ़ती हैं। फिल्म अच्छी बनाएंगे तो दर्शक सीक्वल फिल्मों को देखने के लिए सिनेमाघरों तक आएंगे। सीक्वल फिल्में दोधारी तलवार की तरह होती हैं।
नई दिल्ली, जेएनएनl ऐसी होती हैं, जिन्हें कई बार एक ही फिल्म में समेटा नहीं जा सकता है। उन कहानियों को फिल्म दर फिल्म आगे बढ़ाते रहने का स्कोप होता है। फिल्म के मुख्य किरदारों के साथ कहानी आगे बढ़ती रहती है। ‘बंटी और बबली 2’ की रिलीज के बाद आगामी दिनों में ‘कहानी’ फिल्म की प्रीक्वल ‘बाब बिस्वास’ के साथ ही कई सीक्वल्स ‘भूल भुलैया 2’, ‘बधाई दो’, ‘स्त्री 2’, ‘गोलमाल 5’, ‘कमांडो 4’, ‘दबंग 4’, ‘दृश्यम 2’, ‘किक 2’, ‘इंडियन 2’, ‘बागी 4’ आएंगी। मेकर्स के नजरिए से इन्हें बनाने के फायदे, हर पार्ट के साथ बढ़ता बजट, दर्शकों के बीच किरदारों को लेकर उत्सुकता, कलाकारों के लिए अपने ही किरदारों में नयापन लाने की चुनौतियों की पड़ताल कर रही हैं प्रियंका सिंह
फिल्मों का सुखद अंत देखने के बाद भी दर्शकों के जेहन में वे किरदार रह जाते हैं। उनकी जिंदगी में आगे क्या होगा, यह जानने की जिज्ञासा दर्शकों में हमेशा से रही। इसका समाधान फिल्मों में सीक्वल या प्रीक्वल के तौर पर निकाला गया। सीक्वल में कहानी जहां मूल कहानी से आगे बढ़ती है, वहीं प्रीक्वल में मुख्य किरदार की पिछली जिंदगी को दर्शाया जाता है। यह चलन साल 1935 से ही शुरू हो गया था। साल 1935 में रिलीज हुई फियरलेस नादिया अभिनीत फिल्म ‘हंटरवाली’ की सीक्वल ‘हंटरवाली की बेटी’ 1943 में बनी थी। साल 1967 में रिलीज हुई फिल्म ‘ज्वेल थीफ’ की सीक्वल ‘रिटर्न आफ ज्वेल थीफ’ साल 1996 में रिलीज हुई थी। इन दोनों फिल्म में अभिनेता देव आनंद मुख्य भूमिका में थे। फिल्म ‘नगीना’ की रीमेक ‘निगाहें- नगीना पार्ट 2’ की फ्रेंचाइज भी दो फिल्मों के बाद आगे नहीं बढ़ी थी। कुछ फिल्में जहां दूसरे पार्ट के बाद आगे नहीं बढ़ीं, वहीं रोहित शेट्टी की ‘गोलमाल’ फ्रेंचाइज और ‘सिंघम’ सीरीज लगातार बन रही हैं। मणिकर्णिका फिल्म सीरीज के तहत कंगना रनोट भी अपनी ‘मणिकर्णिका रिटन्र्स- द लीजेंड आफ दिद्दा’ लेकर आ रही हैं। सलमान खान भी कह चुके हैं कि उन्होंने ‘दबंग 4’ की कहानी पर काम शुरू कर दिया है। कई बार फ्रेंचाइज फिल्में पुराने किरदारों के साथ कुछ नए किरदारों को जोड़कर आगे बढ़ती हैं। ‘धूम’ फ्रेंचाइज में जान अब्राहम और रितिक रोशन के बाद आमिर खान को विलेन के तौर पर लिया गया था। आमिर ने कहा था कि मुझ पर जान या रितिक के किरदारों का कोई दबाव नहीं था, मुझे स्क्रिप्ट पसंद आई थी। मेरे आसपास के किरदार जो अभिषेक बच्चन, उदय चोपड़ा और कट्रीना कैफ ने निभाए थे, वे पसंद आए, इसलिए मैंने फिल्म की थी। मैं अपने तरीके से ‘धूम 3’ के सफर पर दर्शकों को लेकर जाना चाहता था। मैं नहीं चाहता हूं कि मेरे किरदार को याद रखा जाए, मैं चाहूंगा कि लोग फिल्म को याद रखें।
दर्शक तय करते हैं कि सीक्वल बनेगी या नहीं:
जब किसी फिल्म की कहानी लिखी जाती है तो कई बार यह पहले से तय नहीं होता है कि उसकी फ्रेंचाइजी आगे जाकर बनेगी। इस बाबत ‘सत्यमेव जयते 2’ फिल्म की निर्माता मोनिशा आडवाणी कहती हैं कि किसी फिल्म या वेब सीरीज के सीक्वल्स बनेंगे या नहीं यह निर्णय निर्माताओं से ज्यादा दर्शकों का होता है। दर्शकों को कहानी पसंद आई है या नहीं, क्या वह किसी फिल्म की कहानी को आगे बढ़ते हुए देखना चाहते हैं, इसे समझबूझकर निर्माता आगे बढ़ने की हिम्मत करते हैं। पहले हमारी फिल्मों में फ्रेंचाइज आइडिया था ही नहीं। एपिसोडिक फार्म में अगर कुछ बनता था तो हमें लगता था कि टीवी का कंटेंट होगा। आज कई फिल्ममेकर जब फिल्म बनाते हैं तो यही सोचते हैं कि अगर कहानी दर्शकों को पसंद आ जाए तो कैसे उसे एक नई दिशा देकर आगे बढ़ाया जाए। ‘सत्यमेव जयते 3’ बनाने की भी तैयारी है। किसी भी फिल्म को फ्रेंचाइज के तौर पर आगे बढ़ाने का मतलब होता है कि आपको पिछली फिल्म से एक स्तर ऊपर लेकर जाना पड़ता है। ऐसे में फिल्म का बजट बढ़ता ही है। फ्रेंचाइज फिल्म दो-तीन साल बाद ही आती है, ऐसे में महंगाई बढ़ने के साथ ही प्रोडक्शन कास्ट भी बढ़ती है। हमारी कोशिश यही होती है कि हम फिल्म को एक टाइट बजट में बनाएं। निर्देशकों पर भी हिट फिल्म देने का दबाव होता है। बहरहाल, फ्रेंचाइज फिल्म हो या कोई और हमारी कोशिश यही होती है कि फिल्म से जुड़े सभी लोगों को रिलीज के बाद उससे मुनाफा मिले। इसी फलसफे के साथ हम चलते हैं। फ्रेंचाइज फिल्मों के लिए समय है अनुकूल: हालीवुड में ‘फास्ट एंड फ्यूरियस’, ‘एवेंजर्स’, ‘टर्मिनेटर’, ‘एक्स मैन’ जैसी कई एक्शन फिल्मों की फ्रेंचाइज बन रही है। हिंदी सिनेमा में फिल्म ‘फोर्स’ और ‘कमांडो’ के निर्माता विपुल अमृतलाल शाह अपनी एक्शन फिल्म ‘कमांडो’ सीरीज की चौथी फिल्म बनाने की तैयारी में हैं। इससे पहले जान अब्राहम अभिनीत ‘फोर्स’ सीरीज की दो फिल्में बना चुके हैं। वह अपनी हालिया रिलीज ‘सनक’ फिल्म की सीक्वल भी बनाने की तैयारी में हैं। एक्शन फिल्मों की तुलना हालीवुड से करने को लेकर विपुल कहते हैं कि एक्शन की दुनिया भारत में काफी खुल रही है। अलग-अलग टाइप की फिल्में बन रही हैं। मुझे लगता है कि एक्शन फिल्म बनाने के लिए यह बहुत अच्छा वक्त है। हालीवुड एक्शन फिल्मों का बजट काफी बड़ा होता है। वह जितना डिटेल में जाते हैं, उतना हम जाते नहीं हैं। अब हमने भी यह कोशिश की है कि हम उस माडल पर काम करें। हमारा भी शूटिंग से पहले एक्शन कैंप लगता है, रिहर्सल होती है। प्रीविजुलाइजेशन होता है यानी एनिमेशन में पूरा एक्शन बनाते हैं, उसे क्रिएट करते हैं, देखते हैं कि एक्शन कैसा लगेगा। विद्युत जामवाल अपने एक्शन के क्रिएशन में बहुत मेहनत करते हैं। वह अपने एक्शन में इतने इनवाल्व रहते हैं कि उनका ध्यान इसी पर रहता है कि कैसे एक्शन के लेवल को और ऊपर ले जाएं। वो हमारे लिए बोनस रहता है कि आपका एक्टर खुद एक्शन में नई चीजें क्रिएट कर रहा है। जब एक्टर आगे बढ़कर खुद रिहर्सल करता है तो आपका जो एक्शन का स्टैंडर्ड है वह बढ़ जाता है और तब जाकर वह फिल्म हालीवुड के लेवल पर आती है। अच्छे एक्शन के साथ दमदार कहानी की भी दरकार होती है। दोबारा किरदार में जाना चुनौती: ‘तनु वेड्स मनु’, ‘साहेब बीवी और गैंगस्टर’ जैसी फिल्मों की सीक्वल में अभिनय कर चुके जिम्मी शेरगिल कहते हैं कि सीक्वल या फ्रेंचाइज फिल्मों में काम करने की अपनी चुनौतियां होती हैं। जिन किरदारों को आप एक फिल्म में पीछे छोड़ चुके हैं, उन फिल्मों की जब सीक्वल बनती है तो फिर से अपने मूल किरदार की बारीकियों में जाना पड़ता है। बतौर एक्टर फ्रेंचाइज फिल्मों के बीच में दूसरी फिल्में भी करता हूं, ऐसे में पुराने किरदार जेहन से निकल जाते हैं। अचानक आप सुबह उठकर तो यह नहीं सोचते हैं कि मुझे आज ‘साहब बीवी और गैंगस्टर’ की अगली फ्रेंचाइज की शूटिंग करनी है। उससे पहले एक पूरी तैयारी होती है। लुक टेस्ट दोबारा किया जाता है कि पिछली कहानी को इतना वक्त बीत चुका है तो अब साहब फलां तरीके का बन गया है। फिर निर्देशक के साथ बहुत सारी मीटिंग और रीडिंग्स होती हैं। कई लोगों के दिमाग चल रहे होते हैं, फिर आप अपने किरदार पर अपने तरीके से सोच रहे होते हैं कि इस फिल्म के साथ अब क्या नया कर सकता हूं। कई सारे विचार तो लोकेशन पर पहुंचकर आते हैं। कई बार ऐसा होता है कि अगर निर्देशक को मौसम अच्छा लग गया तो वह एक रूम के अंदर का सेट छत पर लगा देते हैं। फिर आप उस लोकेशन को किस तरह से अपनी एक्टिंग में इस्तेमाल कर रहे हैं, वह दिमाग में आने लगता है, फिर अपने विचारों को बदलना पड़ता है। इन बदलावों के बीच तारतम्यता का खयाल रखना पड़ता है।
सीक्वल फिल्में ब्रांड बनाती हैं:
‘सत्यमेव जयते’ सीरीज के फिल्म निर्देशक मिलाप जवेरी कहते हैं कि बतौर निर्देशक और लेखक हर कोई अपना एक ब्रांड स्थापित करना चाहता है। मैंने जब मूल फिल्म ‘सत्यमेव जयते’ लिखी और निर्देशित की थी, तब जेहन में यही था कि जब इसकी फ्रेंचाइज फिल्म बनाऊंगा तो वह कहानी और एक्शन के स्तर पर दस गुना ज्यादा बड़ी होगी। इसके लिए स्क्रिप्ट के लेवल पर ही ध्यान देना पड़ता है। ‘गोलमाल’, ‘धमाल’, ‘हाउसफुल’, ‘मस्ती’ की फ्रेंचाइज इसलिए पसंद की जा रही हैं, क्योंकि वे मजबूत स्क्रिप्ट के साथ आगे बढ़ती हैं। फिल्म अच्छी बनाएंगे तो दर्शक सीक्वल फिल्मों को देखने के लिए सिनेमाघरों तक आएंगे। सीक्वल फिल्में दोधारी तलवार की तरह होती हैं। एक तरफ पता होता है कि फलां ब्रांड के पार्ट दो या तीन को लेकर दर्शकों में उत्सुकता होगी, वहीं दूसरा पहलू यह होता है कि पब्लिक एक उम्मीद के साथ फिल्म देखने आती है कि वह फिल्म पहले पार्ट से बड़ी होगी। फिल्म लिखते वक्त दिमाग में रखना पड़ता है कि यह पहले पार्ट से बेहतरीन फिल्म बने। ‘सत्यमेव जयते 2’ पर दर्शकों की प्रतिक्रिया उत्साह बढ़ाने वाली है। हम इसका तीसरा पार्ट बनाने पर विचार करेंगे। मेरा ब्रांड बनेगा तो हर दो-तीन साल में इस फ्रेंचाइज की अगली फिल्म बनाता रहूंगा।