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'सरदार का ग्रैंडसन' से खुद को इस तरह जोड़ सकीं रकुल प्रीत सिंह, बोलीं- 'मैं रिश्तों को संभालना जानती हूं'

सितारे अपने करियर में कई किरदार निभाते हैं कुछ किरदारों से वह इत्तेफाक नहीं रखते हैं। कुछ किरदार उन्हें अपने जैसे लगते हैं। नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई फिल्म सरदार का ग्रैंडसन में रकुल प्रीत सिंह ने एक सुलझी हुई लड़की का किरदार निभाया है।

By Pratiksha RanawatEdited By: Published: Tue, 25 May 2021 06:43 PM (IST)Updated: Tue, 25 May 2021 07:32 PM (IST)
'सरदार का ग्रैंडसन' से खुद को इस तरह जोड़ सकीं रकुल प्रीत सिंह, बोलीं- 'मैं रिश्तों को संभालना जानती हूं'
रकुल प्रीत सिंह, फोटो साभार : Instagram

प्रियंका सिंह, मुंबई। सितारे अपने करियर में कई किरदार निभाते हैं, कुछ किरदारों से वह इत्तेफाक नहीं रखते हैं। कुछ किरदार उन्हें अपने जैसे लगते हैं। नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई फिल्म सरदार का ग्रैंडसन में रकुल प्रीत सिंह ने एक सुलझी हुई लड़की का किरदार निभाया है, जो अपने रिश्तों को संभालना जानती है। 

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रकुल कहती हैं कि मुझे लगता है कि मैं वास्तविक जीवन में भी मैं कुछ ज्यादा ही सुलझी हुई हूं। कई बार मुझे लगता है कि मुझे पिछली सदी के सातवें या आठवें दशक में पैदा होना चाहिए था। कुछ चीजों को लेकर मैं बहुत ही सख्त हूं। रिश्तों की कद्र करना, उसमें यकीन करना मेरे स्वभाव का हिस्सा है। सरदार का ग्रैंडसन में जो किरदार मैंने निभाया है, उसमें और मुझमें काफी समानता है। मैं किसी रिश्ते को संभालने के लिए किसी भी हद तक जाऊंगी। मैं हर रिश्ते में अपना सौ प्रतिशत देने में यकीन रखने वाली लड़की हूं। फिर चाहे वह रिश्ता दोस्तों के साथ हो, परिवार के साथ हो या अपने पेशे से हो। 

अगर आप अपना सौ प्रतिशत किसी रिश्ते को नहीं देते हैं और ईमानदारी नहीं दिखाते हैं, तो कहीं न कहीं आप उस रिश्ते में पीछे छूट रहे हैं। अगर आपको किसी रिश्ते को सुलझाने के लिए एक कदम आगे बढ़ना भी पड़े तो, क्यों न आगे बढ़कर उसे सुलझाया जाए। हमारे माता-पिता यही काम हमारे लिए पूरी जिंदगी करते हैं, ताकि हम सही रास्ते पर रहें। वह लगातार हमारे साथ रिश्तों को मजबूत बनाने की कोशिश में लगे रहते हैं। फिर भले ही बीच में जेनरेशन गैप क्यों न हो। मैं अपने आसपास जीवन के प्रति सकारात्मक नजरिया रखने वाले लोगों को ही रखना पसंद करती हूं। ऐसे लोगों के रहने से आपका जीवन और खूबसूरत हो जाता है।

फिल्म में विभाजन के भी कुछ दृश्य दिखाए गए हैं। रकुल इस बाबत कहती हैं कि मैंने विभाजन की बहुत सारी कहानियां सुनी हैं। मेरे दादा विभाजन के दौरान पाकिस्तान से भारत आ गए थे। वह दिल्ली में आकर बस गए थे। दिल्ली में ही मेरे पापा का जन्म हुआ। उन्होंने आर्मी ज्वाइन की। जब इस फिल्म की कहानी फिल्म की निर्देशक काश्वी नायर ने सुनाई, तो दादी और पोते के बीच कि जो भावनाएं थी, उससे मैं खुद को जोड़ पाई। वैसी भावनाएं मैंने पापा और दादा के बीच देखी हैं। मेरे दादा भी अक्सर कहते थे कि मुझे एक बार पाकिस्तान जाकर अपना घर देखना है, जहां मैं रहा करता था।

पापा आर्मी में थे, ऐसे में उनका दादा को पाकिस्तान ले जाना संभव नहीं था। जब पापा रिटायर हुए, तो दादा इतने बुजुर्ग हो गए थे कि उन्हें ले जाना संभव नहीं था। मुझे लगता है कि देश कोई भी हो, इंसानी भावनाएं एक जैसी ही होती हैं। आगे रकुल कहती हैं कि हमारी पीढ़ी और दादा-दादी की पीढ़ी में आपस में बातें करने के लिए कई टॉपिक्स हो सकते हैं, लेकिन सबसे अहम बात है कि उनके साथ बातें करते वक्त धैर्य रखें। कई बार हम बात करते वक्त चिढ़ने लगते हैं, लेकिन मेरे साथ ऐसा नहीं रहा है। मैं बचपन से ही काफी जिम्मेदार और समझदार किस्म की रही हूं। जब आप छोटे होते हैं, तो कई बार बिना लॉजिक के बात करते हैं, लेकिन मैं ऐसी बातें कम करती थी, क्योंकि मेरा छोटा भाई है, जो बचपन में बहुत मस्तीखोर था। मैं बड़ी थी, ऐसे में समझदारी मुझमें जल्दी आ गई थी। मैं अच्छी बच्ची रही हूं।

फिर वक्त के साथ जैसे-जैसे आप बड़े होते हैं, आप अपने माता-पिता की उन बातों की और वैल्यू करने लगते हैं, जो शायद बचपन में समझ में नहीं आती थी। खासकर पिछले एक साल में ऐसा हुआ है कि अगर मैं उनकी बातों से इत्तेफाक नहीं भी रखती हूं, तो भी मैं वह बातें बिना चिढ़े सुनती हूं। जीवन बहुत ही अनिश्चित है। किसी के साथ भी सख्ती से पेश नहीं आना चाहिए, फिर चाहे वह कोई भी हो।

रकुल पिछले साल दिसंबर में कोरोना वायरस से संक्रमित हो गई थीं। वह उन दिनों को याद करते हुए कहती हैं कि मुझे इतनी दिक्कत नहीं हुई थी, लेकिन सामान्य होने में दो महीने लगे थे। मैंने काम शुरू कर दिया था, लेकिन मेरे मसल्स में दर्द होता था, वर्कआउट करने जाती थी, तो शरीर तीन-तीन दिन तक रिकवर ही नहीं हो पाता था। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। उस वक्त यही सीखा कि जिम्मेदार बनना जरूरी है, खुद के लिए, परिवार के लिए और जो आपके आसपास अनजान लोग हैं, उनके लिए भी। मैं लोगों से यही कहना चाहूंगी कि कोरोना की दूसरी लहर बहुत ही खतरनाक है, ऐसे में जिम्मेदारी लें, सही संदेश फैलाएं। इस गलतफहमी से बाहर निकले कि मैं अब तक संक्रमित नहीं हुआ हूं, तो मुझे कोरोना नहीं होगा। हो सकता है आप में लक्षण न दिखे, लेकिन इस चक्कर में आप अपने परिवार को जरूर यह संक्रमण दे देंगे और हो सकता है कि वह लोग न संभाल पाएं। 

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