बरसात से भी गीले प्रेम को राज कपूर से पहले शायद ही किसी ने इस अंदाज में फिल्माया हो...
Raj Kapoor Death Anniversary आरके फिल्म्स के साथ राज कपूर ने बता दिया था कि वो पर्दे पर नई इबारत लिखने वाले हैं। ये वो दौर था जब नायिकाओं की फिल्मों में स्थिति वहीं थी जो उस वक्त देश की थी दोनों अपनी पहचान के लिए जद्दोजहद कर रहे थे।
नई दिल्ली, जेएनएन। राज कपूर... ये नाम सुनते ही मानो जेहन में एक तस्वीर उभरती है नीली आखें, गोरा रंग, मुस्कुराता हुआ चेहरा और सशक्त व्यक्तित्व। एक ऐसा फिल्ममेकर जिसने बॉलीवुड को एक नया अंदाज दिया, 'खुलेपन' का। 1948 में आर के फिल्म्स के साथ राज कपूर ने बता दिया था कि वो पर्दे पर नई इबारत लिखने वाले हैं। फिल्म दर फिल्म राज मंझते चले गए। ये वो दौर था जब देश ताजा-ताजा आजाद हुआ था और नायिकाओं की फिल्मों में स्थिति वही थी जो उस वक्त देश की थी। दोनों अपनी पहचान के लिए जद्दोजहद कर रहे थे। ऐसे में राज कपूर एक नई सोच लेकर आए, उन्हें 6 गज की साड़ी में लिपटी नायिका कतई मंजूर नहीं थी
बरसात से भी गीले प्रेम को पहले शायद ही किसी ने इस अंदाज में फिल्माया हो
नरगिस, वैजयंती माला, डिंपल कपाड़िया, मंदाकिनी ये वो नाम हैं जिनकी खूबसूरती पर्दे पर उकेरने के लिए राजकपूर ने वो सब किया जिससे उन्हें आलोचना भी मिली। राज कपूर उस दौर में खुलापन चाहते थे, जिस दौर में साड़ी का पल्लू भी सरक जाए तो सेंसर बोर्ड की भौहें टेढी हो जाया करती थीं। उफनती बारिश में बदन से चिपकी उजली साड़ी पास खड़े नायक को मानो निमंत्रण दे रही हो। बरसात से भी गीले प्रेम को राज कपूर से पहले शायद ही किसी ने इस अंदाज में फिल्माया हो। ये स्वछंदता, बिन कहे ही सब कुछ कह जाने की कला दुनिया को रास नहीं आई और उनपर अश्लीलता परोसने का आरोप लगने लगा।
राज कपूर अपनी नायिका को किसी स्वन की तरह प्रस्तुत करते थे
राज कपूर को चाहने वाले उन्हें शोमैन मानते थे, वो मानते थे कि राज कपूर ने अश्लीलता और सौंदर्य प्रदर्शन के बीच के अंतर को दर्शकों को समझाया था। वहीं एक दूसरा पक्ष भी था जिनको अगर सुना जाए तो यहीं आवाज आएगी कि राज कपूर पर्दे पर अपने को ज्यादा प्रोजेक्ट करते थे, नायिका बस उसमें शोपीस के लिए होती थीं। फिल्म की बारिकियों की समझ रखने वाले जानते है कि कैसे राज कपूर अपनी नायिका को किसी स्वप्न की तरह प्रस्तुत करते थे और उसे हर तरह की आजादी देते थे।
खुद को 'नग्नता' का उपासक मानते थे राज कपूर
राज कपूर की छोटी बेटी ऋतु नंदा ने कुछ साल पहले बीबीसी को दिए अपने इंटरव्यू में कहा था,' मेरे पिता अपनी फिल्मों में अक्सर वो सब कुछ दिखाते थे, जिससे वो खुद गुजर चुके होते थे। वो अपने बारे में खुद कहा करते थे कि वो 'नग्नता' के उपासक हैं। इसके लिए वो उर्दू का एक शब्द इस्तेमाल करते थे, 'मुकद्दस उरियां' यानि पवित्र नग्नता और इसका कारण वो बताते थे कि बचपन में उनकी मां उन्हें अपने साथ ही नहलाया करती थीं।'
जब गांव की महिला ने राज कपूर के सामने रखी थी ये शर्त
उनकी बेटी ऋतु नंदा उनके बचपन का एक किस्सा सुनाती हैं, 'पापा जब डेढ़ या दो साल के थे तो उनके गांव में कुछ औरतें भुने चने बेचा करती थी। एक बार राज चने लेने गए. उन्होंने एक कमीज़ पहनी हुई थी और नीचे कुछ भी नहीं पहना था। उस छोटे से लड़के को नंगा देख कर चने बेचने वाली लड़की ने कहा कि अगर वो अपनी कमीज़ ऊपर उठा कर उसकी कटोरी बना ले, तो वो उन्हें चने दे देगी। राज ने जब ऐसा किया तो उस लड़की का हंसते हंसते बुरा हाल हो गया।"
बॉबी का ये दृश्य उनके साथ घटा था
ऋतु नंदा आगे कहती हैं , 'लेकिन राज कपूर को ये घटना याद रही और चना उनके जीवन में एक 'सेक्स ऑबजेक्ट' बन गया। कई सालों बाद जब उन्होंने 'बॉबी' बनाई तो उन्होंने ऋषि कपूर और डिंपल पर एक सीन फ़िल्माया जिसमें डिंपल एक लाइब्रेरी में बैठी हुई हैं. ऋषि उनका ध्यान खींचने के लिए शीशा चमकाते हैं। जब डिंपल बाहर आती हैं तो वो कहती हैं, चलो चाय पिएं। ऋषि उनसे कहते हैं, चाय नहीं, चलो चने खाते हैं। राज कपूर ने उस गांव वाले चने मांगने की घटना को अपने अंदाज में सेल्यूलाइड पर उतारा था"
जब आलोचकों को दिया था करारा जवाब
वैसे राज कपूर खुद पर लगे आरोपों का जवाब बड़ी सख्ती से देते थे। 1985 में रिलीज हुई फिल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ के वक्त आलोचकों ने फिल्म में मंदाकिनी के ऐसे दृश्यों को ‘ललचाने वाली अश्लील नग्नता’ कहा था। जिसके जवाब में राजकपूर ने बोला कि 'अगर फैडरीको फैलिनी (महान इटैलियन फिल्ममेकर) अपनी फिल्म ‘अमरकोर्द’ में न्यू़ड महिलाएं दिखाते हैं तो उसे आर्ट कहा जाता है और सबसे प्रीमियम फिल्म फेस्टिवल्स में वो अवॉर्ड जीतती है। अगर मैं न्यूडिटी की तरफ जाने की हिम्मत करता हूं तो उसे शोषण और वोयेअरिस्टिक/दृश्यरति (देखकर कामसुख पाना) कहा जाता है।'
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