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    हिंदी भाषा पर हुए विवाद पर नवाजुद्दीन सिद्दीकी और भूषण कुमार सहित सितारों ने दी प्रतिक्रिया, कहा- हर भाषा का हो सम्मान

    अजय देवगन और कन्नड़ स्टार सुदीप किच्चा के बीच हुए हिंदी भाषा के विवाद में अब कई सितारे भाषा को लेकर अपनी-अपनी राय दे रहे हैं। हाल ही में भूषण कुमार नवाजुद्दीन सिद्दीकी और अमित साध जैसे सितारों ने फिल्मों और भाषाओं के महत्व को लेकर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की।

    By Tanya AroraEdited By: Updated: Fri, 06 May 2022 06:59 AM (IST)
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    nawazuddin siddiqui amit sadh and bhushan kumar many Other react on ajay devgn and sudeep kiccha. Photo Credit- Instagram

    स्मिता श्रीवास्तव/प्रियंका सिंह/मुंबई। दार्शनिक और समाज सुधारक स्वामी दयानंद सरस्वती ने हिंदी को देश की मातृभाषा बनाने का संकल्प इसलिए लिया था, ताकि वह देश को एक सूत्र में पिरो सकें। जब उन्होंने आर्य समाज के लिए नियम बनाए तो पांचवें नियम में लिखा कि प्रधान समाज में सत्योपदेश के लिए संस्कृत और आर्य भाषा में नाना प्रकार के ग्रंथ होंगे। आर्य भाषा से उनका तात्पर्य हिंदी भाषा से था। पिछले दिनों फिल्म इंडस्ट्री हिंदी और दक्षिण भारतीय भाषाओं के बीच तब बंटी हुई नजर आई, जब कन्नड़ अभिनेता किच्चा सुदीप ने कहा कि हिंदी हमारी राष्ट्र्रभाषा नहीं है। जिस पर अजय देवगन ने नाराजगी जताते हुए ट्वीट कर किच्चा से सवाल किया था कि तो फिर वह अपनी फिल्मों को हिंदी भाषा में डब करके क्यों रिलीज करते हैं। हिंदी हमारी मातृभाषा और राष्ट्रीय भाषा थी, है और रहेगी। हिंदी को राष्ट्र भाषा का दर्जा दिया जाना चाहिए या नहीं इसे लेकर बहस लंबे समय से जारी है। 

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    पिछले कुछ सालों में पैन इंडिया फिल्मों के नाम पर कई दक्षिण भारतीय फिल्में हिंदी में डब करके रिलीज की गई हैं, उन्होंने हिंदी भाषा में अच्छा कारोबार किया है। उदाहरण के तौर पर पिछले महीने रिलीज हुई फिल्म केजीएफ-चैप्टर 2। इस कन्नड़ फिल्म के हिंदी वर्जन की कमाई 400 करोड़ रूपये तक पहुंचने वाली है, ऐसे में हिंदी समझने और हिंदी में फिल्म देखने वाले दर्शकों की मौजूदगी पर सवाल उठाना बेईमानी लगता है। भाषा के दायरों से बाहर निकलते हुए सिर्फ हिंदी या सिर्फ क्षेत्रीय भाषा पर बहस करने से बेहतर है कि फिल्म इंडस्ट्री को भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के नाम से पहचाना जाना चाहिए यह मानना है टी-सीरीज के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक भूषण कुमार का। वह कहते हैं कि 'हम भारतीय फिल्म इंडस्ट्री ही हैं। अभी बायफरकेशन (द्विभाजन) बना हुआ है, लेकिन जिस तरह से चीजें चल रही है, धीरे-धीरे हर चीज पैन इंडिया ही हो जाएगी। सब लोग सोचेंगे कि पैन इंडिया फिल्म बनाकर उसे दर्शकों के बीच चला लेंगे, तो ऐसा नहीं है। साउथ की बहुत कम फिल्में यहां पर सफल रही हैं। उनका सफलता प्रतिशत बहुत कम रहा है। वैसे ही यहां की डब हिंदी फिल्मों ने वहां कोई बहुत बड़ा कमाल नहीं किया है। अब बॉलीवुड मास एंटरटेनर फिल्में बना रहा है देखते हैं क्या होता है। पुष्पा- द राइज को छोड़कर मेरे हिसाब से 'केजीएफ- चैप्टर 2' और 'आरआरआर' के निर्देशक एसएस राजामौली ब्रांड शुरुआत से ही हैं। केजीएफ का सीक्वल तो आना ही था। पिछली सदी के नौवें दशक में जो बालीवुड में बनाया था , एक्शन, डायलॉगबाजी बंदूकों से लड़ाई वही अब बड़े स्केल पर चल रहा है। केजीएफ, आरआरआर में भी वही था। अब हमें वैसी ही एक्शन, मसाला फिल्मों की ओर जाना होगा, जिसमें प्रॉपर एक्शन हो। अगर आप अतार्किक एक्शन भी कर रहे हैं तो वह लगे कि आप लार्जर दैन लाइफ कर रहे हैं। अभी हमारी फिल्में बाक्स आफिस पर उस तरह से नहीं चल रही है, लेकिन 'भूल भूलैया 2' उस मिजाज की फिल्म है जो बाक्स ऑफिस पर उस तरह का नंबर ला सकती है। अब एक्शन और मास फिल्में चलेंगी। हम रणबीर कपूर, श्रद्धा कपूर के साथ रोमांटिक कामेडी फिल्म बना रहे हैं। लव रंजन उसका निर्देशन कर रहे हैं। उसमें कामेडी के साथ बहुत सारे गाने होंगे। वो भी लार्जर दैन लाइफ फिल्म है। वो शैली पहले भी सफल रही है। हमारी फिल्म 'सोनू के टीटू की स्वीटी' बाक्स आफिस पर हिट रही थी। रणबीर कपूर के साथ एनिमल फिल्म पर भी काम चल रहा है। उसमें इमोशन, एक्शन, गन फाइट, डायलागबाजी, एंट्री सीन एक्टर का लार्जर दैन लाइफ वाला अंदाज सब है। उसमें पुष्पा फिल्म की हीरोइन रश्मिका मंदाना, अनिल कपूर, बाबी देओल जैसे सितारे हैं। अब हम ऐसी फिल्में बना रहे हैं, जो मास एंटरटेनर हों। साउथ की तीन फिल्में 'पुष्पा- द राइज', 'आरआरआर', और 'केजीएफ 2' चली हैं। पर उनके बाद कई फिल्में रिलीज हुई हैं। 'बीस्ट', फिल्म रिलीज हुई, लेकिन यहां किसी को पता ही नहीं चला। अब एस एस राजामौली पैन इंडिया निर्देशक हैं तो 'आरआरआर' पैन इंडिया फिल्म है। 'पुष्पा- द राइज पार्ट 1' ऐसे समय आई, जब कोई बालीवुड फिल्म रिलीज नहीं हुई थी। उस समय सारे सिंगल थिएटर खाली थे। फिल्म '83Ó रिलीज हुई थी, लेकिन वो सिंगल स्क्रीन की फिल्म नहीं थी। उस समय ओमिक्रान वायरस भी आ गया था, कुछ जगहों पर सिनेमाघर बंद थे, लेकिन कुछ राज्यों में 50 प्रतिशत क्षमता से सिनेमाघरों में चलती रही। अजित साउथ के बहुत बड़े अभिनेता हैं। उनकी फिल्म 'वलिमै' को साउथ में बड़ी ओपनिंग मिली थी, यहां पर किसी ने देखा नहीं। 'मास्टर' फिल्म को भी हिंदी दर्शकों ने खास प्रतिक्रिया नहीं दी। हमारे यहां की फिल्में 'कृष', 'हम आपके हैं कौन' डब होकर साउथ में रिलीज हुई थी। अब वापस वही परिदृश्य शुरू हो रहा है। हिंदी फिल्म फाइटर की घोषणा हुई है, उसमें लिखा हुआ था हिंदी, तेलुगु, तमिल। एनिमल भी हिंदी तेलुगु, तमिल में रिलीज होगी। अब यहां के लोग भी यह चीजें वहां पर करेंगे। अगर वहां का सिनेमा यहां आ सकता है, तो यहां का भी लार्जर दैन लाइफ सिनेमा वहां जा सकता है।

    सिनेमा का आखिरी प्रोडक्ट दर्शक है

    दक्षिण भारतीय फिल्मों को पैन इंडिया फिल्म के तौर पर प्रमोट किया जाता रहा है। पैन इंडिया टर्म को लेकर निर्माता और फिल्म बिजनेस एक्सपर्ट गिरिश जौहर कहते हैं कि पैन इंडिया टर्म दक्षिण भारत की तरफ से आया है। दक्षिण भारतीय इंडस्ट्री की नजरें अब ऐसी फिल्में बनाने पर हैं, जो हिंदी बेल्ट को लुभाए। पैन इंडिया फिल्में वही होती हैं, जो कि राज्य की सीमाओं, भाषाओं से परे होकर सिनेमा प्रेमियों द्वारा पूरे देश में देखी जाती हैं। डिजिटल प्लेटफार्म की वजह से क्षेत्रीय भाषाओं और हिंदी के बीच की लाइन धुंधली हो गई है। अब कोई भी फिल्में देखी जा सकती है, जो स्टार और भाषा से परे। पहले भाषा की सीमाएं खत्म हुईं, फिर स्टारडम की। महामारी के बाद दर्शकों का टेस्ट बदला है। उन्हें सिर्फ मनोरंजन चाहिए। सलमान, आमिर या शाह रुख खान के साथ ही उन्हें मोहनलाल और ममूटी की फिल्में भी पसंद आ सकती हैं। सिनेमा के टिकट के दाम बढ़े हैं, दर्शक अपनी च्वाइज को सीमित करने के लिए भी मजबूर हैं। पहले दो सौ रुपये की टिकट लेकर अगर डेढ़ सौ रुपये का भी एंटरटेनमेंट मिल जाता था, तो दर्शक कहते थे कि टाइमपास फिल्म है। अब 300-400 की टिकट लेने के बाद अगर डेढ़ सौ रुपये का ही एंटरटेनमेंट मिलेगा, तो वह फिल्में देखने नहीं जाएंगे। यही वजह है कि अब अगर फिल्म अच्छी न हो, तो शुक्रवार को ही फिल्म बिजनेस में गिरावट देखने को मिल जाती है। हालीवुड फिल्म डा. स्ट्रेंज का भारत में कोई प्रमोशन नहीं किया गया है, लेकिन इस फिल्म की चर्चा रिलीज से पहले से ही रही है। सिनेमा के प्रोडक्ट का आखिरी खरीदार दर्शक होता है, जिसके नजरिए से सब तय होता है। हर इंडस्ट्री की इज्जत होनी चाहिए। हम एक भारतीय फिल्म इंडस्ट्री की तरह आगे बढ़ रहे हैं। प्रभास हिंदी फिल्मों में काम कर रहे हैं। केजीएफ- चैप्टर 2 में संजय दत्त का विलेन वाला किरदार हीरो के टक्कर का था, तभी हीरो भी दमदार नजर आया। ऐसे में प्रतिभाओं की यह मिक्सिंग कमाल की है।

    नफरत बांटने का काम न हो

    हाल ही में अमेरिकन सुपरहीरो फिल्म बैटमैन का पाडकास्ट बैटमैन एक चक्रव्यूह ओरिजनल ऑडियो सीरीज को हिंदी भाषा में रिलीज किया गया है। इसमें बैटमैन की आवाज बनें अभिनेता अमित साध हिंदी भाषा पर उठ रहे सवालों को लेकर कहते हैं कि, 'हिंदी हिंदुस्तान की भाषा है, ठीक वैसी ही जैसे दूसरी ढेर सारी भाषाएं हैं। जिन लोगों को विवाद उठाना है, वह उनका काम है। मेरा काम विवाद उठाना नहीं है। मेरा काम है रीति-रिवाज के अधीन रहना। मेरी परवरिश ने मुझे यही सिखाया है। यह एक दौर चल रहा है, जब कभी किसी चीज का विपक्ष होता है या दो लोग जो एक जैसी बात ही कर रहे होते हैं, लेकिन क्योंकि वह एक-दूसरे की सुन नहीं रहे होते हैं, तो दिक्कतें आती हैं। मुझे लगता नहीं है कि हिंदुस्तान में हिंदी भाषा को लेकर किसी को तकलीफ है। हर भाषा की इज्जत है और होनी भी चाहिए। थोड़ा बहुत शोर, थोड़ी बहुत असहमती हिंदुस्तान में हमेशा रहेगी। हमें समझना होगा कि हमारा देश बहुत अनोखा है, यही वह देश है, जहां विभिन्न धर्म, जातियां, भाषाएं हैं। जब एक संयुक्त परिवार में इतना शोर होता है, तो यहां तो होगा ही। हालांकि शोर-शोर तक ही रहना चाहिए, उससे खुद को जोड़कर नफरत बांटने का काम नहीं होना चाहिए। हमारा देश इतनी बड़ी आबादी को लेकर आगे बढ़ रहा है। हम कुछ सही कर रहे हैं, तभी ऐसा हो रहा है।

    बदलाव के लिए खुद को बदलना होगा

    पिछले दिनों अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने एक कार्यक्रम के दौरान हिंदी की वकालत करते हुए कहा था कि वह बॉलीवुड का नाम बदलकर हिंदी फिल्म इंडस्ट्री करना चाहते हैं। उन्होंने कहा था कि हमारे पास जो स्क्रिप्ट आती है, वह रोमन में आती है। उसको याद करना बहुत मुश्किल हो जाता है। मैं देवनागरी में स्क्रिप्ट मांगता हूं। सेट पर निर्देशक, उनके असिस्टेंट सारे अंग्रेजी में बात करते हैं, एक्टर को आधी चीजें समझ आती हैं, आधी नहीं, उससे परफॉर्मेंस पर असर पड़ता है। श्वेता त्रिपाठी इस बारे में बात करती हुई कहती हैं कि हिंदी को मजबूत भाषा बनाना के लिए और इस भाषा की कद्र करने के लिए हमें खुद से शुरुआत करनी होगी। हर भाषा को इज्जत मिलनी चाहिए. किसी भाषा को चाहे दो लोग बोलते हों या दो करोड़, इज्जत, विकास और संतुलन इन तीनों चीजें का होना जरूरी है। मुझे अजीब लगता है, जब आज के बच्चे कहते हैं कि उन्हें हिंदी कूल नहीं लगती है। मैं दिल्ली की लड़की हूं, हिंदी बोलते हुए बड़ी हुई हूं। कहते हैं ना कि बी द चेंज यू वान्ट टू सी यानी जो परिवर्तन आप देखना चाहते हैं, उसका आरंभ खुद से करें। दिक्कत यह है कि हम दूसरों से उम्मीदें रखते हैं। थोड़ा बदलाव जब हम लाएंगे, तो उसका असर दिखेगा। माता-पिता भी बाहर जाते हैं, तो वह अपने बच्चों को अंग्रेजी में डांटते हैं, क्योंकि सामाजिक दबाव है कि बाहर कैसे बर्ताव करना है, यह दबाव जब हट जाएगा, तो बदलाव होगा। हमारा हिंदी साहित्य इतना समृद्ध है। अच्छी चीजों से सीखना चाहिए और उन्हें साथ लेकर आगे बढऩा चाहिए। भाषा, धर्म, लिंग के आधार पर लोगों को अलग करने वालों पर ध्यान नहीं देना चाहिए।

    हिंदी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा

    कोरोना काल की वजह से हर दस साल पर होने वाली जनगणना साल 2021 में नहीं हो पाए है। ऐसे में केंद्र सरकार द्वारा साल 2011 में हुई जनगणना में जारी आंकड़ों के अनुसार हिंदी भारत की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। हिंदी को मातृभाषा के रूप में बोलने वालों की संख्या 41.03 फीसद से बढ़कर 43.63 फीसद हो गयी है। बांग्ला भाषा दूसरे नंबर पर है, जिसके बाद मराठी, तेलुगु, तमिल, गुजराती भाषाएं हैं।