दोहरे धमाल के 50 साल, फिल्म सीता और गीता से बदल गए थे हेमा मालिनी की किस्मत के तारे
24 नवंबर 1972 को प्रदर्शित हेमा मालिनी अभिनीत फिल्म ‘सीता और गीता’ ने बाक्स आफिस पर धूम मचा दी थी। रमेश सिप्पी द्वारा निर्देशित यह फिल्म हेमा मालिनी क ...और पढ़ें

स्मिता श्रीवास्तव।
कहते हैं कि हर फिल्म के पीछे एक दिलचस्प कहानी होती है। फिल्म ‘सीता और गीता’ भी इससे अछूती नहीं रही। अपनी पहली फिल्म ‘अंदाज’ के बाद निर्देशक रमेश सिप्पी अपनी दूसरी फिल्म के लिए विषय की तलाश में थे। उनके पास बेहतरीन लेखक सलीम खान और जावेद अख्तर की जोड़ी थी। वह भी नई पटकथा की तलाश में थे। संयोग से उस समय निर्माता प्रमोद चक्रवर्ती दिलीप कुमार अभिनीत सुपरहिट फिल्म ‘राम और श्याम’ की डबल रोल कामयाबी को किसी अभिनेत्री के साथ दोहराने की योजना बना रहे थे। ‘राम और श्याम’ खळ्द अंग्रेजी फिल्म ‘द कारसिकन ब्रदर्स’ पर आधारित थी। प्रमोद ने अपना आइडिया लेखक सचिन भौमिक से साझा किया। उसी दौरान उन्होंने सुना कि रमेश सिप्पी भी इसी विषय के इर्द-गिर्द फिल्म बनाने की तैयारी में हैं। मजे की बात यह है कि दोहरे किरदार (डबल रोल) के लिए दोनों ही उस समय की सुपरस्टार हेमा मालिनी को लेना चाहते थे।
झिझक रही थीं हेमा
वर्ष 1971 में ‘अंदाज’ प्रदर्शित होने के बाद रमेश सिप्पी ने गुलजार को फिल्म के संवाद लिखने को कहा। उसी समय गुलजार को बतौर निर्देशक पहली फिल्म ‘मेरे अपने’ का प्रस्ताव मिला था। ऐसे में सलीम-जावेद को संवाद लिखने के लिए प्रस्ताव भेजा गया। जब रमेश सिप्पी ने हेमा मालिनी को फिल्म की कहानी सुनाई तो उन्हें लगा कि वह कहानी के साथ वैसा न्याय नहीं कर पाएंगी जैसा कि दिलीप कुमार ने किया था। उस समय इंडस्ट्री में महिला और पुरुष स्टार को लेकर सोच अलग थी। सिप्पी ने हेमा को यकीन दिलाया कि दर्शक उनके अभिनय की तुलना दिलीप कुमार के साथ नहीं करेंगे। तब वे मान गईं।
काका चाहते थे दोहरा किरदार
इस फिल्म के लिए सबसे बड़ी दिक्कत थी दो एक समान दिखने वाली लड़कियों के लिए आनस्क्रीन दो हीरो की तलाश। सलीम खान इस फिल्म में राजेश खन्ना को कास्ट करना चाहते थे। दरअसल, राजेश खन्ना उस समय सुपरस्टार थे। फिल्म में उनकी मौजूदगी से बाक्स आफिस पर उसका सकारात्मक परिणाम दिखता। सलीम ने रमेश सिप्पी को बताए बगैर राजेश खन्ना को यह कहानी सुनाई। उन्होंने सलीम खान से कहा कि वह फिल्म पर तभी विचार करेंगे, जब सिप्पी पटकथा में बदलाव करके इसे पुरुष जुड़वां के साथ बनाएंगे। जो कि नहीं हुआ। यह समस्या भी उस समय हल हो गई, जब धर्मेंद्र और संजीव कुमार ने इन भूमिकाओं को स्वीकार कर लिया। संजीव कुमार ने इस फिल्म को महज 80 हजार रुपये में करना स्वीकार कर लिया था। हालांकि इस किरदार में उनके करने के लिए कुछ खास नहीं था। लेखकों ने इस बात को स्वीकार किया था कि उनका फोकस केंद्रीय किरदार पर रहा। ‘सीता और गीता’ में काम करने को लेकर संजीव कुमार ने अपने एक साक्षात्कार में कहा था कि उन्होंने सिप्पी से एक बार भी पटकथा को सुनाने के लिए नहीं कहा था क्योंकि उन्हें पता था कि कहानी के केंद्र में नायिका है। उन्होंने यह फिल्म पैसों के लिए की थी, लेकिन यह सिर्फ एकमात्र कारण नहीं था। उनके लिए स्क्रीन टाइम से ज्यादा पात्र अहम रहा है। संजीव ने कहा था कि आप यह नहीं कह सकते कि ‘सीता और गीता’ में मेरा और धर्मेंद्र का पात्र अहम नहीं था। हमारे चरित्र छोटे थे, लेकिन कहानी का अहम हिस्सा थे। उन्होंने उसमें अपने तरीके से फिल्म में कामेडी भी की है, जो यादगार बनी।
हर दिन करने होते थे स्टंट
फिल्म को लेकर हेमा मालिनी ने अपने साक्षात्कार में कहा था कि ‘सीता और गीता’ के चरित्र निभाना उनके लिए आसान नहीं था। उनकी बेटियां पुलिस स्टेशन में सीलिंग फैन से लटकने वाला सीन देखकर आज भी बहुत हंसती हैं। दरअसल हर रोज रमेश सिप्पी उनसे कुछ नया करने को कहते थे। कभी कहते थे कि पंखे पर चढ़ जाओ, कभी कहते हाई जंप करो। कभी हंटर लेकर किसी को मारने को कहते। ऐसे में वह उनसे कहतीं कि वह इन्हें करके दिखाएं, तभी करेंगी। वह जोखिम भरे शाट को पहले करवाकर दिखाते थे। इस फिल्म के गाने ‘हवा के साथ-साथ’ को हेमा और संजीव कुमार पर महाबलेश्वर में स्केटिंग करते हुए फिल्माया गया था। दोनों ही कलाकार स्केटिंग के जानकार नहीं थे इसलिए इसे करते हुए वह कई बार गिर भी पड़े थे।
बहरहाल 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध की वजह से फिल्म बनाने में व्यवधान भी आया। करीब डेढ़ साल में ‘सीता और गीता’ बनकर तैयार हुई। इसे 24 नवंबर, 1972 को दीपावली पर प्रदर्शित किया गया। फिल्म ने बाक्स आफिस पर सफलता का कीर्तिमान बनाया। यह हेमा मालिनी के करियर की सफल फिल्मों में शुमार हुई। इस फिल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर अवार्ड भी मिला था।

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