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    Majrooh Sultanpuri: जब 'विद्रोही शायर' मजरूह सुल्तानपुरी को हुई थी दो साल की जेल, राज कपूर ने ऐसे की थी मदद

    Majrooh Sultanpuri Death Anniversary जब कवि प्रदीप ने लिखा ‘साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल’ सोहनलाल द्विवेदी लिख रहे थे- चल पड़े जिधर दो डग मग में...’ तो मजरूह सुल्तानपुरी लिख रहे थे ‘मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया’।

    By Ruchi VajpayeeEdited By: Ruchi VajpayeeUpdated: Mon, 22 May 2023 08:55 PM (IST)
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    Majrooh Sultanpuri Death anniversary famous indian urdu poet

    'मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंजिल मगर

    लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया'

    नई दिल्ली, जेएनएन। फिल्म इंडस्ट्री में विद्रोही शायर होने के साथ ही प्रेम और सौंदर्य के सुकुमार गीतकार थे, मजरूह सुल्तानपुरी। उनका असली नाम असरार उल हसन खान था, लेकिन एक गीतकार और शायर के तौर पर उन्हें प्रसिद्धि मजरूह सुल्तानपुरी के नाम से मिली। उनका परिवार राजपूत से इस्लाम अपना चुका था, लेकिन हिंदू परंपराएं छोड़ी नहीं थीं। राजपूतों के परिवार में जन्मे मजरूह के स्वभाव में आक्रामकता स्वाभाविक थी। इसीलिए उन्होंने जवाहर लाल नेहरू को भी चुनौती दे दी थी और उन्हें जेल जाना पड़ा था। खैर, जेल जाने और वहां दो वर्ष रहने के बाद भी मजरूह की आक्रामकता पर कोई फर्क नहीं पड़ा।

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    इंडस्ट्री का विद्रोही शायर

    शेरो-शायरी का शौक उन्हें बचपन से ही था। यह बात अलग है कि उन्होंने अपना करियर एक हकीम के रूप में शुरू किया। यूनानी पद्धति की चिकित्सा की परीक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने सुल्तानपुर शहर के पलटन बाजार मोहल्ले में डिस्पेंसरी खोली। साथ ही मुशायरों में जाने लगे। फिर कुछ दिन बाद चिकित्सा कर्म छोड़ पूरी तरह साहित्यधर्मी बन गए। उन्हें एक मुशायरे में मशहूर शायर जिगर मुरादाबादी मिल गए। जिगर ने उन्हें प्रेरित किया और तराशा भी।

    आजादी से पहले आए थे मुंबई

    साल 1945 में मुंबई में एक मुशायरा हुआ और उसमें मजरूह सुल्तानपुरी भी आमंत्रित किए गए। उस कार्यक्रम में फिल्म निर्माता ए आर कारदार उनकी शायरी से प्रभावित हो गए। उन्होंने अपनी फिल्मों के लिए गीत लिखने का प्रस्ताव दिया तो मजरूह ने जिगर मुरादाबादी से पूछा। उन्होंने उन्हें फिल्मों के लिए गीत लिखने के लिए प्रेरित किया।

    नौशाद का मिला साथ

    उस दौरान नौशाद फिल्मी दुनिया में स्थान बना चुके थे। नौशाद भी अवध (लखनऊ) के रहने वाले थे। नौशाद ने मजरूह को एक धुन पर एक गीत लिखने को कहा। मजरूह ने उस धुन पर ‘गेसू बिखराए, बादल आए झूम के’ गीत लिखा। नौशाद ने उन्हें अपनी नई फिल्म के लिए गीत लिखने का प्रस्ताव दिया तो मजरूह ने वर्ष 1946 में आई फिल्म ‘शाहजहां’ के लिए गीत ‘जब दिल ही टूट गया’ लिखा, जिसने धूम मचा दी। उसके बाद तो अवधी लहजे वाले  मजरूह के गीत लोगों के जुबान पर चढ़ गए।  मजरूह सुल्तानपुरी और संगीतकार नौशाद की जोड़ी हिट हो गई।

    सरकार का विरोध पड़ा भारी

    पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के शासन काल में एक वक्त ऐसा भी आया, जब अपने राजनीतिक विचारों की वजह से वह मुश्किल में पड़ गए। अपनी शायरी से उन्होंने सरकार पर जोरदार वार किया, जिसकी वजह से उन्हें जेल जाना पड़ा। उनसे कहा गया था कि माफी मांग लें तो छोड़ दिए जाएं, लेकिन उन्होंने अपना इरादा नहीं बदला। मजरूह सुल्तानपुरी के जेल जाने से परिवार की आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई थी।

    राज कपूर ने की थी मदद

    घर की माली हालत से राज कपूर अंजान नहीं थे, वो मदद करना चाहते थे, लेकिन जानते थे कि  मजरूह सुल्तानपुरी बहुत खुद्दार हैं और ऐसे उनकी मदद स्वीकार नहीं करेंगे। फिर शो मैंन से एक तरकीब निकाली और पहुंच गए मजरूह सुल्तानपुरी के पास। उन्होंने कहा, 'मुझे एक गाना चाहिए'। सुल्तानपुरी ने  'एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल' गाना लिखा और राज कपूर ने उन्हें हजार रुपए दे दिए। सुल्तानपुरी समझ गए कि उन्हें 1000 क्यों दिए गए हैं।

    80 साल की उम्र में हुआ था निधन

    राज कपूर ने यह मेहनताना सुल्तानपुरी के घरवालों को पहुंचा दिया। यह फीस अन्य गीतकारों के मुकाबले काफी ज्यादा थी क्योंकि उस वक्त एक गाने के लिए बाकी गीतकारों को महज 200-300 रुपए ही मिलते थे। राज कपूर वे तब ये गाना यूज नहीं किया बस अपने पास रख लिया। उन्होंने इस गाने को 1975 की फिल्म धरम करम में इस्तेमाल किया। गाना काफी पॉपुलर हुआ था। निमोनिया के कारण 80 वर्ष की आयु में 24 मई, 2000 को मजरूह का निधन हो गया।