Move to Jagran APP

Birthday: गुलज़ार ने खोले राज शैलेंद्र के सांताक्रूज स्थित बापू निवास के उन दिलचस्प किस्से के

रंधीर कपूर ने शैलेंद्र के बारे में कहा कि आर के स्टूडियो उनका हमेशा आभारी रहेगा। आरके स्टूडियो की फिल्मों में और उनके पिता राज कपूर के करियर में शैलेंद्र की भूमिका अहम रहेगी।

By Shikha SharmaEdited By: Published: Thu, 30 Aug 2018 05:39 PM (IST)Updated: Fri, 31 Aug 2018 11:46 AM (IST)
Birthday: गुलज़ार ने खोले राज शैलेंद्र के सांताक्रूज स्थित बापू निवास के उन दिलचस्प किस्से के
Birthday: गुलज़ार ने खोले राज शैलेंद्र के सांताक्रूज स्थित बापू निवास के उन दिलचस्प किस्से के

अनुप्रिया वर्मा, मुंबई। गुलज़ार मानते हैं कि शैलेंद्र ने उनके भाग्य को यू टर्न दिया। हाल ही में मुंबई में पांचवें स्क्रीन राइटर्स कांफ्रेंस में शैलेंद्र को सम्मानित किया गया तो उस दौरान गुलज़ार ने शैलेंद्र से जुड़ी यादों को साझा किया। शैलेंद्र के बारे में बातचीत करते हुए गुलज़ार ने कहा कि वह मेरे गुरु रहे हैं।

loksabha election banner

गुलज़ार आगे कहते हैं कि मैंने उनसे काफी कुछ सीखा। उनकी खासियत थी कि वह आम आदमी से जुड़े रहे। आप देख लें कि गाना 'मेरा जूता है जापानी' में जो उन्होंने लिखा है उसे वह कॉमन मैन को ठीक वैसे ही डिफाइन करते हैं, जैसे देखते हैं। एक अंदाज रहा है उनका। वो अपनी बात में डेमोक्रेसी की भी बात कर जाते हैं। साथ ही वह गानों से क्रांति भी पैदा करते जाते थे। गुलज़ार का मानना है कि शैलेंद्र को समझने के लिए आपको कई परतों में जाना होगा। आप ऊपर-ऊपर बातचीत नहीं कर सकते या उनका मूल्यांकन या समीक्षा नहीं कर सकते कि शैलेंद्र क्या थे। उनका लिखा गाना 'आवारा हूं' यूं ही पूरे मुल्क का गाना नहीं बना। राज कपूर को इस गाने के साथ पहचान देश दुनिया और विदेश में भी मिली है। यह सच है कि राज कपूर के लिए वह डायमंड साबित हुए। क्योंकि यह सच है कि बिना मानिक के अवाम की आवाज बनना आसान नहीं था।

यह भी पढ़ें: सैफ़ अली ख़ान का नागा साधू अवतार हो रहा है वायरल, क्या की है इस हॉलीवुड किरदार की कॉपी

गुलज़ार आगे एक दिलचस्प किस्सा सुनाते हुए कहते हैं कि उनसे जुड़ी एक दिलचस्प कहानी है। मुंबई के सांताक्रूज में शैलेंद्र ने एक जगह ली थी, जहां वह रह कर क्रियेटिव काम करना चाहते थे। अकेले! बापू निवास नाम था उनका। वहां वह बहुत देर तक काम किया करते थे। लेकिन मजेदार बात यह है कि उन्होंने वह जगह ली थी तो अकेले काम करने के लिए लेकिन, वहां कभी अकेले रहे ही नहीं। अब ऐसा क्यों? तो गुलज़ार बताते हैं कि दरअसल, यह सिलसिला बासु चटर्जी से शुरू हुआ। उनके परिवार के कुछ लोग आये, तो ठहराने का इंतजाम वहीं कर दिया। फिर कोई और दोस्त, जिसके भी रिश्तेदार बाहर से आते थे, रहने का कोई ठिकाना न मिले तो भी उनको जगह दे दी। देबू के यहां से कोई आये, तो वह भी वहीं ठहरते। उसके बाद शाम में सबकी बैठकी होने लगी। दारू से लेकर चाय तक की महफिल जमती। साहित्य पर खूब बातें होती थीं। सबके अपने-अपने मत थे, सबकी अपनी-अपनी बातें थीं। सब एक दूसरे की विचारधारा से प्रभावित नहीं, जम कर लड़ लेते थे और फिर लगता था कि सब खत्म। कल से तो कोई नहीं आयेगा, तो अचानक दूसरे दिन देखो तो सब आ जाते थे। पहले दिन का गुस्सा खत्म, दूसरे दिन फिर से बैठकी।

यह भी पढ़ें: राधिका मदान का रियल लाइफ़ में 'पटाख़ा' अवतार, देखिए 'बड़की' की ग्लैमरस तस्वीरें

गुलज़ार कहते हैं कि शैलेंद्र ने लोकगीतों को भी जिंदा रखने में अहम भूमिका निभायी है। मैं आज भी उनके गानों से सीखता हूं। अपनी मुलाकात और अपने करियर में शैलेंद्र की भूमिका बताते हुए वह कहते हैं कि मैंने कभी फिल्मों में लिखने के बारे में नहीं सोचा था। लेकिन एक वक्त ऐसा हुआ कि बिमल रॉय और शैलेंद्र में किसी बात को लेकर कुछ अनबन हुई थी। अब देखिये, शैलेंद्र मुझे कह रहे हैं कि तुम जाओ बिमल के पास। मैंने कहा मैं नहीं लिखना चाहता। तो कहने लगे सब क्या फिल्मों में अनपढ़ गंवार ही होते हैं। ये सोच बदलो और जाओ। बिमल जल्दी किसी को काम नहीं देते। तुमको काम दे रहे हैं तो नहीं जा रहे हों। गुलज़ार कहते हैं कि उन्होंने आॅर्डर दिया तो वह सलील चौधरी के साथ गये और फिर 'बंदिनी' फिल्म का गाना लिखा 'मोरा गोरा अंग ले लइये' इसके बाद गुलज़ार कहते हैं कि शैलेंद्र ने मुझे कहा कि फिल्मों में ही लिखो। जिस गैरेज में काम करते हो, क्या उखाड़ लोगे, उससे तो अच्छी जगह है... तो तुमको कहीं नहीं जाना है। बाद में जब बिमल रॉय ने फिर से शैलेंद्र को बुलाया तो उनके मन में कहीं एक बात थी कि अरे, गुलज़ार को कैसा लगेगा। मैंने उनसे कहा कि आप जाइये। वह आपकी ही कुर्सी है। वहां कोई नहीं बैठ सकता। गुलज़ार कहते हैं कि मैं दोबारा लौट कर गैरेज नहीं गया। फिल्मों में मेरा मीटर चालू हो गया। गुलज़ार कहते हैं कि वह मेरे मित्र, गुरु, मेंटर सभी रहे हैं। उनके गानों से और रचनाओं से आज भी मैं प्रभावित रहा हूं और आगे भी रहूंगा।

आरके स्टूडियो में शैलेंद्र की भूमिका: रंधीर कपूर

इसी कार्यक्रम के दौरान रंधीर कपूर ने शैलेंद्र के बारे में कहा कि आर के स्टूडियो उनका हमेशा आभारी रहेगा। आरके स्टूडियो की फिल्मों में और उनके पिता राज कपूर के करियर में शैलेंद्र की भूमिका अहम रहेगी। रंधीर कहते हैं कि उन्होंने मेरे पिता के लिए अनमोल योगदान दिया है। रंधीर कहते हैं कि राज कपूर राज कपूर कभी नहीं होते, अगर शैलेंद्र के गीत नहीं होते।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.