Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    ‘मुझे गीत लिखने में मज़ा नहीं आता’, जानिये गीतकार राज शेखर के कुछ दिलचस्प जवाब

    By Hirendra JEdited By:
    Updated: Wed, 11 Apr 2018 06:24 AM (IST)

    राज शेखर- क्राफ्ट में आप खुद होने चाहिए और कथ्य में आपको किरदार के साथ होना चाहिए।

    ‘मुझे गीत लिखने में मज़ा नहीं आता’, जानिये गीतकार राज शेखर के कुछ दिलचस्प जवाब

    हीरेंद्र झा, मुंबई। गीतकार राज शेखर ने बहुत ही कम समय में अपनी एक मजबूत पहचान बना ली है। ‘तनु वेड्स मनु’, ‘तनु वेड्स मनु रिटर्न्स’, ‘करीब करीब सिंगल’ और हाल ही में आई ‘हिचकी’ जैसी फ़िल्मों में गीत लिख चुके राज शेखर जागरण डॉट कॉम के ऑफिस आये और उन्होंने कई विषयों पर खुलकर अपनी बात रखी।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    पैसे की कमी की वजह से दो फ़िल्मों में अभिनय कर चुके राज शेखर ने बहुत जल्दी समझ लिया था कि अभिनय उनके बस की बात नहीं है। सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, कबीर और अमीर खुसरो को अपना आदर्श मानने वाले राज शेखर इन दिनों एक फ़िल्म की कहानी भी लिख रहे हैं। प्रस्तुत हैं उनसे बात चीत के कुछ चुनिंदा अंश-

    ‘बिहार भी बचा रहे’

    राज शेखर बिहार के मधेपुरा जिले से आते हैं और अपने जड़ों के बारे में बात करते हुए बताते हैं कि “कोई भी कलाकार अपनी माटी से कटकर नहीं रह सकता और मैं अपने दोस्तों के बीच इस बात के लिए बदनाम हूं कि मैं पांच दिनों के लिए गांव जाता हूं और बीस दिनों के बाद आता हूं। मुझे बहुत मन लगता है वहां।’’

    वो आगे कहते हैं- “मुझे तो नहीं पता लेकिन, लोगों का कहना है कि मेरे गानों में बहुत ज्यादा गांव के शब्द होते हैं! तो मेरे भीतर बिहार बचा हुआ है और बिहार बचा हुआ है तो हम बचे हुए हैं! एक और बात मैं जोड़ता चलूं कि हमारे अंदर तो बिहार बचा ही है और हम ये भी चाहेंगे कि बिहार भी बचा रहे। क्योंकि राजनीतिक रूप से जिस तरह से चीज़ें वहां चल रही हैं वो परेशान करती हैं।’’

    मेरी कमियों के साथ कीजिये मुझे स्वीकार

    उच्चारण में आंचलिक प्रभाव के बारे में पूछने पर वो बताते हैं कि- “एक समय तक हिचकिचाते थे बहुत, हम गलत तो नहीं बोल रहे हैं। अभी भी कोशिश में लगे हुए हैं कि ‘कोशिश’ को ‘कोशिश’ बोले लेकिन कई बार ‘कोसिस’ निकल जाता है। एक समय तक हम ट्राय कर सकते हैं इस चीज़ के लिए लेकिन, एक समय के बाद दम घुटने लगता है। वो ठीक नहीं लगता। क्योंकि अगर आप खुद को एक्ससेप्ट कर लेंगे तो चीज़ें आसान हो जाती हैं’

    वो आगे कहते हैं- ‘‘इन गलतियों के साथ क्या आप मुझे स्वीकार कर सकते हो? अगर कर सकते हो तो कर लो? और शुक्र है मुझे इन गलतियों के बावजूद कई लोगों का प्यार और मोहब्बत मिला। ‘मजनू का टीला’ जो कविताओं की एक संगीतमय प्रस्तुति है। उसके शुरू होने से पहले मैं ज़रूर कहता हूं कि बिहार से हूं और बीस साल से इसी कोशिश में हूं कि उच्चारण सही हो, नुक्ते सही जगह पे लगाऊं, हम अपनी तरफ से कोशिश कर रहे हैं और जरा आप भी अपनी तरफ से एडजस्ट कीजियेगा। डिस्क्लेमर मैं दे देता हूं और मैं व्याकरण में नहीं पड़ना चाहता लेकिन, मैं कहना चाहूंगा कि अगर आप के बात में बात हो तो बात बन जाती है!”

    साथ ही राज शेखर यह कहना भी नहीं भूलते कि- “इस मामले में मीडिया से भी बहुत उम्मीदें हैं क्योंकि कई बार शब्दों को लेकर दुविधा होती है तो हम अखबार देखते हैं कि मानक क्या है? इसलिए शब्दों की शुद्धता की दिशा में मीडिया की जिम्मेदारी ज्यादा है।”

    अपनी सीमा से बाहर जाकर लिखना 

    इस बारे में बात करते राज शेखर कहते हैं कि- “हिचकी के लिए गाने लिखते हुए मैंने अपनी सीमाओं को तोड़ा। फ़िल्म में मेरे दो गाने थे और दोनों बिल्कुल अलग मूड के थे। हिचकी में मैंने जो अपने लिए एक सीमा खींच रखी थी कि मैं ये शरारत वाला गाना नहीं लिख सकता हूं ‘मैडम जी गो इजी, सब वाय फाय हम थ्री जी’ ये सामान्य तौर पर मैं नहीं लिख सकता। लेकिन, उन बच्चों के मनोविज्ञान को, उनकी शब्दकोष को समझना, जिनकी अपनी एक दुनिया है, जो अपनी कहानी बुनते रहते हैं और उनके टोन में गाना लिखना वो मैं इस गाने में कर पाया।

    अब मुझे लगा कि मैं यह भी लिख सकता हूं। बीच में मैं घबरा गया था लेकिन, 50-60 ड्राफ्ट लिखने के बाद ये फाइनल हुआ। जबकि ‘खोल दे पर’ एक बार में फाइनल हो गया। हालांकि, ‘थ्री जी वाय-फाय’ मनीष का आईडिया था लेकिन, मैं अपनी बाउंड्री तोड़ सका। ऐसा है कि आप आधी रात को भी बोले कुछ रोमांटिक लिखना है तो मैं लिख दूंगा। अब जैसे आइटम नंबर है वो लिखने में मुझे आज भी पसीने छूट जाते हैं। शैलेन्द्र असल मायने में गीतकार थे। कैसे एक गीतकार अपनी व्यक्तिगत परिधि से निकल कर लिखता है वो उनको देखकर समझा जा सकता है। शैलेन्द्र नास्तिक थे लेकिन, एक फ़िल्म में उन्होंने लिखा “सजन रे झूठ मत बोलो, खुदा के पास जाना है’ या फिर जावेद अख्तर का ‘मन से रावण जो निकाले, राम उसके मन में है’ या ‘ओ पालनहारे...’ तो ये किरदार की वजह से ही आप लिख सकते हैं और इसलिए एक गीतकार हमेशा अपनी सीमाएं तोड़ता रहता है!

    भीतर के कवि और गीतकार में रहता है द्वन्द्व

    राज शेखर इस बारे में बात करते हुए कहते हैं कि- “मेरी एक ही कोशिश रहती है कि गाने में कम से एक लाइन ऐसी हो जहां मैं बोल सकूं की यार यहां पर मैं प्रेजेंट था। क्योंकि तमाम दबाव होते हैं आपके पास। कैरेक्टर का दबाव, म्युज़िक का दबाव, डायरेक्टर का दबाव, बाज़ार का दबाव, तमाम दबावों के बीच में एक गीतकार का उपस्थित होना ज़रूरी है! क्योंकि कविता से अलग विधा है गीत। क्योंकि आप एक खास किरदार के लिए लिख रहे हैं। आप राज शेखर बनकर लिखेंगे तो बेईमानी होगी। आप अगर मनु शर्मा या तनुजा त्रिवेदी के लिए लिख रहे हैं तो वहां पे आपको तनुजा के किरदार में जाकर लिखना होगा। आपके भीतर के गीतकार और आपके भीतर के कवि के बीच एक द्वन्द्व चलता रहता है, मेरी अपनी कोशिश रहती है कि कम से कम एक लाइन में मैं मौजूद दिखूं।’’

    राज शेखर आगे कहते हैं- “हर आदमी अपने मन में कविता लिखता है। पर हर आदमी आपके या हमारे शब्दकोष से शब्द लेकर कविता नहीं लिखता। कुछ की कविताओं में रवि, खरीफ, गेंहू या बाजरे की बात होती है तो कुछ की कवितायें पसीने में भींगे हुए होते हैं। एक किसान की कविता उसके खेत में जाकर देखिये। लेकिन, जब मैं गीत लिख रहा हूं और अगर मैं उसमें कवि राज शेखर को ठेलूंगा तो वो उस निर्माता, निर्देशक, उस किरदार जिसके लिए लिख रहा हूं उन सबके साथ बेईमानी होगी। क्राफ्ट में आप खुद होने चाहिए और कथ्य में आपको किरदार के साथ होना चाहिए।”

    ‘दिल तो सबका टूटता है’

    कवि या गीतकार बनने के लिए दिल का टूटना एक तरह से ज़रूरी माना गया है? आप क्या कहते हैं? इसका जवाब देते हुए राज शेखर बताते हैं कि ‘दिल किसका नहीं टूटता? अब ‘जाने दे....’ (करीब करीब सिंगल का गीत) की बात करें तो एक वक़्त के बाद आपको ‘लेट गो’ करना पड़ता है। वो हमारे बुजर्गों ने कहा है न- ‘वो अफसाना जिसे अंज़ाम तक ले जाना न हो मुमकिन, उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा।’ कई बार अजनबी हो जाना भी अच्छा होता है। और अगर हम उस अनुभव को, उन संवेदनाओं को याद करके उन पलों को फिर से जी सकें, कुछ रच सकें तो दिल टूटना भी वरदान सा हो जाता है।’’

    ‘मुझे गीत लिखने में मज़ा नहीं आता’

    वो कहते हैं कि- “एक बात हमने हाल में एक्सप्लोर किया है कि मुझे लिखने में मज़ा नहीं आता। वो वक़्त बीत गया जब मैं मजे के लिए लिखता था। अब ये मेरा काम है। जैसे किसान का काम है, जैसे एक पत्रकार का काम है, जैसे कोई बैंकर को छूट नहीं मिलती, एक मजदूर नहीं कह सकता की आज मुझे सड़क साफ़ करने में मज़ा नहीं आ रहा क्योंकि आज मेरा मूड खराब है। तो उसी तरह से गीत लिखना अब मेरा काम है और तमाम बंदिशों के बावजूद मुझे गीत लिखना ही है।’’

    यह भी पढ़ें: केकेआर की जीत के बाद बेटी सुहाना संग ऐसे जश्न मनाते दिखे शाह रुख़ ख़ान, देखें तस्वीरें

    वो आगे कहते हैं “एक तरह से आप क्रिएटिव क्लर्क की तरह हो जाते हैं। उसी गीत में मेरी कोशिश रहती है कि मैं एक बार दिख जाऊं! जैसे ‘सजन रे झूठ मत बोलो’ में एक जगह दिखते हैं शैलेन्द्र जब वो लिखते हैं – ‘तुम्हारे महल चौबारे यहीं रह जायेंगे सारे, अकड़ किस बात की प्यारे, ये सिर फिर भी झुकाना है..सजन रे झूठ मत बोलो।’’

    यह भी पढ़ें: रणबीर कपूर ने लगाया दीपिका पादुकोण को गले, अब रैंप पर चलेंगे साथ, देखें तस्वीरें

    comedy show banner
    comedy show banner