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    किशोर कुमार को मौका देने वाले कम्पोजर अपनी जिंदगी के आखिरी समय में रहे तन्हा, अंजान लड़की ने बनाया अपना पिता

    साल 1926 में लाहौर में जन्मे ओपी नैयर ने आसमान फिल्म से अपने करियर की शुरुआत की थी। लेकिन उनको पहचान गुरुदत्त की फिल्मों आरपार, मिस्टर एंड मिसेज 55, सीआई डी और तुम सा नहीं देखा से मिली। ओपी नैयर.ओमकार प्रसाद नैयर इंडस्ट्री के सबसे हाइएस्ट पेड संगीतकार है। लेकिन क्या आपको पता है कि अपने आखिरी दिनों में संगीतकार को एक अंजान लड़की के घर में पनहा लेनी पड़ी थी।

    By Surabhi Shukla Edited By: Surabhi Shukla Updated: Wed, 25 Jun 2025 05:57 PM (IST)
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    म्यूजिक कंपोजर ओपी नैयर (फोटो-इंस्टाग्राम)

    एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। किशोर कुमार (Kishor Kumar) एक समय में, वे बॉलीवुड के सबसे प्रभावशाली संगीतकारों में से एक थे, जिन्होंने सितारों को अपनी धुनों पर नचाया और कई सादाबहार गीत दिए। हालांकि, उनके क्लासिक गानों के पीछे के मास्टरमाइंड जिन्होंने 'मेरा नाम चिन चिन चू' और 'आइए मेहरबान' जैसे बेहतरीन गाने लिखे अपने अंतिम साल में बिल्कुल अकेले रहे।

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    साल 2007 में हुआ था निधन

    हम बात कर रहे हैं ओपी नैयर (OP Nayyar) ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष पूरी तरह से एकांत और गंभीर आर्थिक तंगी में बिताए। डीएनए की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2007 में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। लेकिन हैरानी की बात ये है कि उनकी अंतिम यात्रा में उनके परिवार का कोई सदस्य या बॉलीवुड बिरादरी का कोई व्यक्ति शामिल नहीं हुआ था।

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    बॉलीवुड के सबसे सफल संगीत निर्देशकों में से एक

    साल 1950 के दशक में लाहौर से एक आत्मविश्वासी, युवा शरणार्थी के रूप में मंच पर उभरे नैयर ने अपने समय के दिग्गजों- अनिल बिस्वास, नौशाद अली, शंकर-जयकिशन, एसडी बर्मन और सी रामचंद्र को चुनौती दी। नैयर बॉलीवुड में सबसे सफल और सबसे अधिक भुगतान पाने वाले संगीत निर्देशकों में से एक के रूप में उभरे।

    हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, शास्त्रीय संगीत में फॉर्मल ट्रेनिंग ना होने के बावजूद, नैयर ने भारतीय रागों में गहराई से निहित गीतों की रचना की, जैसे राग तिलंग में छोटा सा बलमा और राग पीलू में पूरा फागुन साउंडट्रैक।

    साल 1970 में देखी असफलता

    लेकिन ओपी नैयर का ये दौर ज्यादा समय तक टिका नहीं। जैसे-जैसे स्वर्णिम युग समाप्त होता गया, वैसे-वैसे नैयर की प्रसिद्धि भी इंडस्ट्री जगत में कम होती गई। साल 1970 के दशक के अंत तक, व्यक्तिगत और पेशेवर असफलताओं ने उन पर अपना असर दिखाना शुरू कर दिया। 1979 में उन्होंने अपने परिवार से दूरी बना ली। बीच में कुछ समय के लिए वापस लौटे जरूर लेकिन साल 1989 में वे हमेशा के लिए उनसे अलग हो गए।

     

    परिवार को छोड़कर हुए अलग

    विरार में गायिका माधुरी जोगलेकर के साथ कुछ समय बिताने के बाद, नैयर ठाणे में नखवा परिवार के साथ पेइंग गेस्ट के रूप में रहने चले गए। इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, उन्होंने एक शांत जीवन चुना था क्योंकि वो अपने परिवार और ग्लैमरस फिल्मी दुनिया से अलग रहना चाहते थे।

    रानी नखवा, उन्हें एक छोटे से टेलीफोन बूथ के जरिए जानती थीं, जहां वे काम करती थीं। रानी को नैयर के सेलिब्रिटी स्टेटस का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था। उन्होंने उन्हें अपने एक बेडरूम वाले घर में उन्हें एक कमरा दिया था। देने की पेशकश की। समय के साथ, उनका रिश्ता गहरा होता गया और नैयर उनके लिए पिता समान हो गए, और वे उन्हें प्यार से बाबूजी कहकर पुकारने लगीं। बदले में, नैयर उन्हें राजू कहकर बुलाते थे, क्योंकि उन्हें रानी का असली नाम पसंद नहीं था।

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