साउथ एक्टर जगपति बाबू ने कहा 'बालीवुड में मेरा पदार्पण देरी से हुआ', बताया कैसी थी सलमान से पहली मुलाकात
Jagapathi Babu कुछ ही दिनों में फिल्म किसी का भाई किसी की जान रिलीज होने वाली है। इस मूवी में सलमान खान मुख्य रोल में हैं। इसके अलावा दक्षिण के जग्गू दादा कहे जाने वाले जगपति बाबू भी एक्टिंग करते देखे जाएंगे।
मुंबई, जेएनएन। इन दिनों हिंदी फिल्म निर्माता दक्षिण भारतीय कलाकारों में खासी रुचि ले रहे हैं। इस कड़ी में सलमान खान अभिनीत और निर्मित फिल्म किसी का भाई किसी की जान में अभिनेता जगपति बाबू खलचरित्र में नजर आएंगे। दक्षिण के जग्गू दादा कहे जाने वाले जगपति तीन दशक से अधिक लंबे करियर में 170 फिल्में कर चुके हैं। उनसे स्मिता श्रीवास्तव की बातचीत के अंश...
दक्षिण भारतीय सिनेमा में आप स्थापित कलाकार हैं। हिंदी सिनेमा में यह डेब्यू कैसे देख रहे हैं?
सबसे पहले यह एक चुनौती है और मैं चुनौतियों के लिए हमेशा तैयार रहता हूं। सौभाग्य से मैंने दक्षिण में चार भाषाओं में कई बड़े कलाकारों के साथ काम कर लिया है। मुंबई बहुत कूल जगह है। सलमान भाई तो बेहतरीन इंसान हैं। इसलिए यहां पर आने को लेकर कोई नर्वसनेस नहीं है। पर हां बालीवुड में मेरा पदार्पण देरी से हुआ है।
आपने कहा था कि आप सलमान खान के साथ काम करना चाहते थे...
उसके पीछे कोई खास वजह नहीं है। मैंने उनकी लगभग सभी फिल्में देखी हैं। मेरी बेटी तो शाह रुख खान की बहुत बड़ी प्रशंसक है। हम बहुत सारी हिंदी फिल्में देखते हैं। जब हम सलमान भाई की फिल्में देखते हैं तो सकारात्मक महसूस करते हैं। सब जानते हैं कि सलमान बहुत बड़े सेलिब्रिटी हैं, मगर मैं लोगों के स्वभाव को देखता हूं। सलमान के साथ पहली बार मिलकर लगा ही नहीं कि हम पहली बार मिल रहे हैं, वरना जब जीवन में सफलता आती है, तो सब बदल जाता है।
फिल्म के ट्रेलर में आपकी जोरदार एंट्री दिखाई गई है। आपके लिए एंट्री सीन कितना अहम होता है?
यह बहुत जरूरी है। एंट्री से ही पहला प्रभाव पड़ता है। मैं खुश हूं कि उन्होंने फिल्म में मेरी एंट्री पर बहुत ध्यान दिया है। बहरहाल,फिल्म में स्क्रीन टाइम से मुझे फर्क नहीं पड़ता। निश्चित रूप से सलमान हीरो हैं और हम सब सहयोगी चरित्रों में हैं। मेरे लिए यह अहम होता है कि अपने सीन में आप कितना प्रभाव छोड़ने में कामयाब रहे। अगर फिल्म में पांच-छह दृश्य भी हैं, तो प्रतिभा दर्शाने के लिए काफी है।
अभिनय जगत में असुरक्षा की भावना भी काफी रहती है...
मैं हीरो नहीं, कलाकार हूं तो असुरक्षा जैसी कोई बात नहीं है। मैंने विविध किरदार निभाए हैं। मैंने अपनी एक जगह बनाई है जिसे कोई नहीं ले सकता। मुझे खुद से ही प्रतिस्पर्धा करनी होगी। मुझे किसी से असुरक्षित महसूस करने की जरूरत नहीं है। अलग-अलग भाषाओं में बहुत से लोगों के साथ काम किया है। तभी आपको बहुत कुछ अच्छा सीखने को मिलता है। मुझे लगता है कि जहां पर यकीन होता है, वहां पर कोई डर नहीं होता है।
आपके करियर में बहुत उतार-चढ़ाव रहा है। तो लोग बदलने लगे होंगे...
हां। मगर सौभाग्य से मैं काफी खुशमिजाज इंसान हूं। मैंने अपनी शुरुआत बहुत धीमी की थी। जो कि अच्छी चीज भी है। हर किसी की जिंदगी में ढलान आती है मगर वैसे नहीं जैसे मैं गुजरा हूं। मेरी जिंदगी उतार-चढ़ाव वाली रही है। यह काफी दिलचस्प रही है। शुरुआत में मेरी 12 फिल्में फ्लाप रही थीं। फिर भी हम हर फ्लाप फिल्म को सेलिब्रेट करते थे। उतार-चढ़ाव तो हम सभी की जिंदगी का हिस्सा होते हैं।
आपके दिमाग में फिल्म फ्लॉप होने पर कोई प्लान बी नहीं था?
नहीं, कहीं और जाने का सवाल ही नहीं उठता था, क्योंकि मुझे अभिनय के अलावा और कुछ नहीं आता है। मुझे मुख्य चरित्र के तौर पर भी खारिज किया गया जो मेरे साथ सबसे बुरा हुआ था। मैंने अनुभव किया था कि आंध्र प्रदेश में जब मुझे बतौर अभिनेता अस्वीकार कर दिया जाएगा, तब मेरी जिंदगी ही अस्वीकृत हो जाएगी। मैं गुम हो जाऊंगा। मुझे उसके लिए लड़ना होगा। इस तरह मैं वास्तव में फाइटर हूं। सरवाइवर हूं। इस तरह से अपनी जिंदगी को देखता हूं। हर किसी की अपनी कहानी होती है। मेरी कहानी भी है।
वर्ष 2008 में आपने हीरो की भूमिका छोड़कर सहयोगी चरित्र निभाने का निर्णय किया था...
यह बहुत आसान निर्णय था। मैं हीरो, खलनायक या कामेडियन नहीं बल्कि कलाकार हूं। अब मैं अलग-अलग पात्र, अलग टीम और शीर्ष निर्देशकों के साथ काम कर रहा हूं तो अब मुझे ज्यादा अवसर मिल रहे हैं। इससे मैं ज्यादा काम कर पाऊंगा। यह सबसे शानदार चीज है। अच्छी बात यह थी कि मुझे एहसास हो गया था कि बतौर हीरो मेरा मार्केट खत्म हो गया है। मुझे अपनी सीमाएं पता हैं तो फिर ऐसी जगह टिकने का क्या फायदा, जहां नुकसान ही है। आगे बढ़ना ही समझदारी है।