'जब नवाब और तवायफ मिलते हैं, तो मुहब्बत नहीं' ..., 'हीरामंडी' को लेकर शेखर सुमन ने ये दी बड़ी अपडेट
संजय लीला भंसाली की वेब सीरीज हीरामंडी द डायमंड बाजार (Watch Heeramandi The Diamond Bazaar) रिलीज के नजदीक पहुंच गई है। इस बीच सीरीज के एक्टर शेखर सुमन प्रमोशन में बिजी चल रहे हैं। हाल ही में उन्होंने जागरण डॉट कॉम के साथ मुलाकात की और इस दौरान हीरामंडी द डायमंड बाजार में अपने किरदार को लेकर भी बात की।
प्रियंका सिंह, मुंबई। लंबे समय तक स्क्रीन से दूर रहने के बाद अभिनेता शेखर सुमन ने हीरामंडी वेब सीरीज से वापसी की है। हीरामंडी वेब सीरीज में वह नवाब की भूमिका में दिखेंगे। शेखर के अनुसार उन्हें इस बात का दुख है कि उनको वह रोल ऑफर नहीं किए जाते थे जिनके वह हकदार थे। पेश हैं उनसे इस सीरीज समेत कई मुद्दों पर हुई बातचीत के अंश.....
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इस दौर में जहां बहुत सारा काम है, वहां आप अभिनय से दूर रहे ?
मुझे इस बात का दुख है कि वो रोल, जो करने में मैं सक्षम था, वह मुझे नहीं मिले। मेरे प्रशंसक, दोस्त, पत्नी सब पूछते थे कि आप अभिनय कब करेंगे? मेरे पास कोई जवाब नहीं होता था। तकदीर का खेल निराला होता है। वह आपको सही वक्त पर सही काम दिलवाती है। जब भंसाली (संजय लीला भंसाली) साहब के यहां से हीरामंडी के लिए फोन आया, तो वह खुशी का पल था।
औसत दर्जे के काम को मना करने के पीछे क्या वजह रही?
सभी कहते हैं इस पेशे में हमेशा दिखते रहना बहुत जरूरी है। हालांकि, मैं इससे इत्तेफाक नहीं रखता हूं। दिलीप कुमार साहब साल में एक या दो ही फिल्म करते थे। फिर भी लोग उन्हें देखना चाहते थे। आमिर खान साहब अपने किरदार में डूब जाते हैं। मैं वैसा ही काम करना चाहता था। ऐसा नहीं था कि मुझे घर चलाना या पैसे चाहिए, तो कुछ भी कर लो। हालांकि, कई बार मैंने समझौता भी किया है, लेकिन ज्यादातर कलाकारों की कोशिश होनी चाहिए की औसत दर्जे के काम से दूर रहे। औसत दर्जे के काम को मना करने से ज्यादा दुख मुझे यह होता था कि ऐसा काम मेरे पास आया ही क्यों । काम के लिए मना करने से तकलीफ भी होती है, एक बड़ी रकम हाथ से चली जाती है और जिसे ना कहते हैं उसे भी अच्छा नहीं लगता है।
देवदास में संजय लीला भंसाली के साथ काम करने का मौका मिला था...
हां, मैंने व्यस्तता की वजह से उनके साथ काम करने का मौका खो दिया था। हीरामंडी के दौरान उन्होंने मुझे जुल्फीकार के रोल के लिए बुलाया। मैं नवाब की भूमिका में हूं। जब नवाब और तवायफ मिलते हैं, तो वहां मुहब्बत नहीं, बल्कि एक- दूसरे को इस्तेमाल करने की मंशा रहती है। इस शो में भी ऐसा है।
आप राजनीति से दूर क्यों हो गए ?
मुझमें ईमानदारी ज्यादा है। मुझे लग रहा था कि जाने-अनजाने में मैं झूठ का हिस्सा बन रहा था। जितने समय मैं राजनीति में रहा, मुझे इसका अहसास हो गया कि आप ईमानदारी और अपनी सच्चाई के साथ वहां जाते हैं, लेकिन कोयले की खदान में जाएंगे, तो कालिख से बच नहीं पाएंगे। राजनीति एक अलग दुनिया है। एक मायूसी आ जाती थी कि मैं यहां क्या कर रहा हूं। हर विधा के लिए अलग किस्म लोग बने हैं। मुझे लगा कि मुझे अपनी कला के साथ रहना चाहिए।
मतदान के मायने आपके लिए क्या हैं?
यह बहुत जरूरी है। अगर आप बदलाव चाहते हैं, तो मतदान तो करना होगा। सोच- समझ कर कदम उठाए । पार्टी से ज्यादा व्यक्ति विशेष को वोट दें। अगर आपको लगता है कि उस व्यक्ति ने आपके क्षेत्र में अच्छा काम किया है, तो उसे चुने । अपना वोट जाया न करें।
इंस्टाग्राम पर आपकी जिम वाली तस्वीरों पर लोग कमेंट करके पूछते हैं कि आप 30 साल के कैसे दिखते हैं....
हां, मैं वह कमेंट्स पढ़ता हूं। जवानी एक अहसास है, एक सोच है। फिटनेस और सेहत दो अलग चीजें हैं। कई लोग फिट हो जाते हैं, लेकिन अंदर से स्वस्थ नहीं होते हैं। सोच को सकारात्मक बनाना पड़ता है। अगर आप में जिंदगी जीने की खुशी है, तो यह बहुत बड़ी नेमत है, जो ईश्वर ने दी है। इसे समझ लेंगे, तो उम्र के दायरे से बाहर आ जाएंगे। हम लोग उम्र में उलझे रहते हैं।
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आप रंगमंच पर लगातार सक्रिय रहे हैं, डिजिटल प्लेटफार्म पर क्या अच्छा लग रहा है?
थिएटर इसलिए करता हूं, क्योंकि यह सबसे मुश्किल विधा है। एक बार उससे जुड़ गए, तो फिर बाकी विधाएं आसान हो जाती है। डिजिटल प्लेटफार्म पर प्रयोग हो रहे हैं, लेकिन गाली गलौज, सेक्सुअल कंटेंट पर निर्भरता ज्यादा हो गई है, जिसकी जरूरत नहीं है। भाषा की मर्यादा बहुत जरूरी है, क्योंकि युवा इसे ज्यादा देखते हैं। वहीं कई अच्छी कहानियां भी आ रही हैं। आज कलाकारों के लिए बहुत कुछ करने के लिए हैं। अब उम्मीद है कि नए रास्ते खुलेंगे।