ये हैं वो बातें जो बनाती हैं शर्मीला टैगोर को 'आइडल वुमन', एक्ट्रेस बनने की चुकाई थी भारी कीमत
सिनेमा के लिए शर्मीला टैगोर का योगदान सिर्फ़ यही नहीं है कि उन्होंने बेहतरीन फ़िल्में दी हैं, बल्कि फ़िल्मी नायिकाओं के लिए सामाजिक सोच को बदलने में अहम भूमिका निभायी..
मुंबई। एक स्कूल गर्ल जिसने मज़ाक-मज़ाक में फ़िल्मों में काम करने का सोचा, फिर एक से बढ़कर एक बेहतरीन फ़िल्में कीं। पटौदी ख़ानदान की बहू बनी। अपना परिवार बनाया, मगर फ़िल्मों का साथ कभी नहीं छोड़ा। इनकी ज़िन्दगी को आप करीब से देखेंगे तो महसूस करेंगे कि शर्मीला टैगोर सिर्फ़ एक बॉलीवुड सेलेब या अभिनेत्री नहीं बल्कि एक आइडल वुमन भी हैं। शर्मीला 8 दिसम्बर को अपना जन्मदिन मनाती हैं। कमर्शियल फ़िल्मों से करियर शुरू करके आर्ट सिनेमा के रास्ते होते हुए सेंसर चीफ़ बनीं शर्मीला के सफ़र का एक विश्लेषण।
नई दुल्हन बनकर रखा फ़िल्मों में कदम
बहुत कम लोग जानते हैं कि शर्मीला कभी भी फ़िल्मों में काम नहीं करना चाहती थीं। वो अपने माता-पिता से दूर अपने ग्रैंडपेरेंट्स के साथ कोलकाता में अपनी स्कूलिंग कर रही थीं। उस समय मशहूर फ़िल्ममेकर सत्यजीत रे जिन्हें लोग माणिक दा के नाम से भी जानते हैं, अपनी बंगाली फ़िल्म 'अपुर संसार' के लिए एक यंग और ख़ूबसूरत अभिनेत्री ढूंढ रहे थे। उन्होंने अखबारों में इश्तेहार दिए थे और मज़ाक-मज़ाक में शर्मीला ने अपने दोस्तों के कहने पर इस रोल के लिए अप्लाय किया था। जब माणिक दा यह रोल लेकर शर्मीला के घर पहुंचे तो उनके पिता बेहद खुश हो गए थे। शर्मीला ने एक इंटरव्यू में इस फ़िल्म के पहले शॉट के बारे में बात करते हुए कहा, "मेरा पहला शॉट था, जिसमें मैं नई नवेली दुल्हन बनी हुई हूं और मुझे दरवाज़ा खोलकर अन्दर जाना है जहां कैमरा सेटअप था। मुझे अच्छी तरह याद है कि जब मैं अन्दर कदम रख रही थी, तब मुझे लगा कि मेरी नई ज़िंदगी शुरू हुई है और उस दिन से मेरी ज़िंदगी बदल गई।"
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एक्ट्रेस बनने की ऐसे चुकाई क़ीमत
यही नहीं जब शर्मीला ने फ़िल्मों में काम करना शुरू किया तो उन्हें स्कूल से भी निकाल दिया गया था, क्यूंकि उस समय फ़िल्मों में काम करना अच्छी बात नहीं मानी जाती थी। स्कूल फैकल्टी को लगा कि शर्मीला अन्य लड़कियों पर ग़लत असर डाल रही हैं... हमें यकीन है कि अब स्कूल की फैकल्टी शर्मीला पर नाज़ करती होगी। शर्मीला ने इस दौरान अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ी और दूसरी स्कूल में दाखिला ले लिया। धीरे-धीरे शर्मीला ने बॉलीवुड में कदम रखा। चार से पांच बंगाली फ़िल्में करने के बाद साल 1964 में शर्मीला ने अपनी पहली फ़िल्म 'कश्मीर की कली' की। फिर क्या था...शर्मीला ने कभी मुड़कर पीछे नहीं देखा। शम्मी कपूर, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन... हर बड़े सुपरस्टार के साथ शर्मीला दिखाई देने लगीं।
बिकिनी पहनकर बदली सोच
'डाक घर', 'अनुपमा', 'नायक' जैसी बेहतरीन फ़िल्में करने के बाद शर्मीला ने शम्मी कपूर के साथ शक्ति सामंत की फ़िल्म 'एन इवनिंग इन पेरिस' साइन की। इस फ़िल्म में शर्मीला ने वो किया जिसे पहले किसी अभिनेत्री ने नहीं किया था। इस फ़िल्म में बिकिनी पहनने की ज़िद्द शायद शर्मीला ही कर सकती हैं। खुले विचारों की शर्मीला ने जिद्द करके इस फ़िल्म में बिकिनी शॉट दिया जो उस ज़माने में आग लगा देने वाली ख़बर थी। शर्मीला ने अपनी बोल्डनेस और खुले विचारों से हिंदी फ़िल्म की नायिका को एक नया आयाम दिया। मिस्ट्री, रोमांटिक थ्रिलर, ड्रामा हर तरह के जॉनर में शर्मीला ने कदम रखा और उसे बेहतरीन तरीके से निभाया। फ़िल्म 'मौसम' में अपने किरदार के लिए शर्मीला को बेस्ट एक्ट्रेस का नेशनल अवार्ड मिला।
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मोहब्बत के तीन छक्कों पर हारा दिल
बात आती है शर्मीला की पर्सनल लाइफ की। एक नज़र में भी प्यार होता है, यह लाइन शर्मीला और पटौदी नवाब मंसूर अली ख़ान की लव स्टोरी पर परफेक्ट बैठती है। शर्मीला की मुलाकात मंसूर अली ख़ान से उनके कोलकाता वाले घर पर एक छोटी सी पार्टी में हुई थी। उस समय मंसूर साहब भारत के टॉप के क्रिकेटर थे। एक ही नज़र में शर्मीला हैंडसम मंसूर साहब को अपना दिल दे बैठी थीं और मंसूर साहब भी शर्मीला की मुस्कराहट के दीवाने हो गए थे। मगर, पहली नज़र के प्यार को ज़िंदगी बनाने की कहानी बड़ी दिलचस्प है। मंसूर साहब ने शर्मीला को इम्प्रेस करने के लिए उन्हें गिफ्ट में फ्रिज दिया था जो उस समय महंगे तोहफ़ों में से एक था मगर, शर्मीला ने इतनी जल्दी हां नहीं कहा। शर्मीला ने शर्त रखी कि अगर वो लगतार तीन छक्कों के बाद भारत को मैच जिताएंगे, तब वो शादी के लिए हां कहेंगी। फिर क्या था, पटौदी के नवाब के लिए मोहब्बत की ख़्वाहिश सिर आंखों पर। मंसूर साहब ने तीन छक्के लगाकर मैच के साथ शर्मीला का दिल भी जीत लिया। इसके बाद शर्मीला ने मुस्लिम धर्म अपनाकर अपना नाम आयेशा सुल्ताना रखा और मंसूर साहब से शादी कर ली।
बेहतरीन एक्ट्रेस और आदर्श मां
बहुत कम लोग जानते हैं कि शर्मीला ने पहले ही सोच लिया था कि जब वो शादी करेंगी तो उसके बाद फ़िल्मों में काम करना बंद कर देंगी। मगर, ऐसा वो कर नहीं सकीं। शादी के बाद उन्होंने फ़िल्मों में अपना काम जारी रखा। शादी के बाद भी उन्होंने 'छोटी बहू', 'सफ़र', 'मौसम' जैसी फ़िल्मों में काम किया। एक आइडल पत्नी तो वो थीं ही और बारी आई आइडल मां बनने की। बेटे सैफ़ अली ख़ान, बेटी सोहा अली ख़ान और सबा अली ख़ान के जन्म के बाद भी उन्होंने फ़िल्मों को ना नहीं कहा मगर, ऐसा नहीं है कि वो पूरी तरह फ़िल्मों में रम गई थीं। शर्मीला ने अपने तीनों बच्चों को अच्छी परवरिश के साथ अच्छी एजूकेशन भी दी। सैफ़, सोहा और सबा ने पढ़ाई में कई डिग्रियां हासिल की हैं।
सिनेमा के लिए शर्मीला टैगोर का योगदान सिर्फ़ यही नहीं है कि उन्होंने बेहतरीन फ़िल्में दी हैं, बल्कि फ़िल्मी नायिकाओं के लिए सामाजिक सोच को बदलने में अहम भूमिका निभायी कि एक एक्ट्रेस बेहतरीन पत्नी और मां भी हो सकती है।