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    Happy Birthday Kishore Kumar: हॉस्टल के कमरे में किताबों के अलावा इन चीजों को भी साथ रखते थे किशोर कुमार, जानें उनके बारे में कई दिलचस्प बातें

    By Priti KushwahaEdited By:
    Updated: Wed, 04 Aug 2021 05:19 PM (IST)

    1948 में किशोर मुंबई चले गए जहां फिल्म इंडस्ट्री में नाम कमा चुके उनके बड़े भाई अशोक कुमार का उन्हें परोक्ष फायदा मिला। इसी वर्ष ‘जिद्दी’ में उनका गाया पहला गीत ‘मरने की दुआएं क्यों मांगू जीने की तमन्ना कौन करे’ सफल रहा।

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    Photo Credit - Kishore Kumar Midday Website Photo Screenshot

    विष्णु चौधरी, मुंबई। किशोर कुमार का स्वभाव इतना खिलंदड़ था कि गीतों में भी उसका असर मालूम पड़ता और प्रतिभा ऐसी कि बड़े से बड़ा कलाकार नतमस्तक हो जाता। इंदौर में 4 अगस्त, 1929 को जन्मे इस शानदार कलाकार ने इसी जमीन पर अपने जीवन का सफर पूरा किया...

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    किशोर कुमार जैसा बहुमुखी प्रतिभा वाला कलाकार अब हिंदी सिने जगत को शायद ही मिल पाए। उनकी कर्मभूमि मुंबई थी, लेकिन वे कभी भी अपनी जन्मभूमि को नहीं भूले और कहते भी थे- ‘दूध जलेबी खाएंगे, खंडवा में बस जाएंगे।’ मध्य प्रदेश की कलाधानी खंडवा यदि स्वर कोकिला लता मंगेशकर की जन्मभूमि है तो किशोर कुमार की तपोभूमि। 4 अगस्त, 1929 को मध्य प्रदेश के खंडवा मे जन्मे आभास कुमार गांगुली उर्फ किशोर कुमार की स्कूली शिक्षा खंडवा में ही हुई। बचपन से शरारती बालक आभास को बुधवारा बाजार के गोटू हलवाई की दुकान पर अक्सर दूध-जलेबी खाते देखा जाता था।

    लय में गाते सिद्धांत

    बांबे बाजार स्थित गांगुली हाउस (बाद में गौरीकुंज), जहां बालक किशोर ने जन्म लिया था, आज बदहाल है। किशोर व उनके अग्रज अनूप कुमार ने इंदौर क्रिश्चियन कालेज में वर्ष 1946 में ग्रेजुएशन में प्रवेश लिया, जहां किशोर कुमार का प्रवेश पत्र आज भी सुरक्षित रखा है। हास्टल में उनके कमरा नंबर चार(जो आज बेहद जर्जर अवस्था में है) में पुस्तकों के साथ तबला, ढोलक व हारमोनियम भी रहते। रोज शाम को महफिल सजती और वे के.एल. सहगल के गीतों को हूबहू उन्हीं के अंदाज में गाते। टाकीज मे फिल्म देखने के बाद फिल्म के हीरो के संवाद उसी की शैली में सुनाते। दोस्तों के नाम उलटे करके बुलाना और गीत ‘दिल जलता है तो जलने दे’ को ‘लदि तालज है तो नेलज दे’ को उसी धुन में गाना उनकी कला का नमूना था। कालेज परिसर में इमली के वृक्ष तले बैठकर धुनों का सृजन करते और अर्थशास्त्र के सिद्धांत गा-गाकर याद करते थे। इसी दौरान देश आजाद हुआ तो किशोर और उनके साथियों ने हास्टल में गीत-संगीत व पूरी देशभक्ति के साथ स्वाधीनता दिवस मनाया।

    हंसोड़ अंदाज की कायल दुनिया

    1948 में किशोर मुंबई चले गए, जहां फिल्म इंडस्ट्री में नाम कमा चुके उनके बड़े भाई अशोक कुमार का उन्हें परोक्ष फायदा मिला। इसी वर्ष ‘जिद्दी’ में उनका गाया पहला गीत ‘मरने की दुआएं क्यों मांगू, जीने की तमन्ना कौन करे’ सफल रहा। कुछ वर्ष तक फिल्मों की शूटिंग में व्यस्तता के बीच अभिनेता किशोर कुमार को गानों की रिकार्डिंग का समय नहीं मिला। तब उनके लिए 20 से अधिक गीत अन्य गायकों ने गाए। चुलबुली हरकतों से साथियों को हंसाने वाले किशोर दा ‘खई के पान बनारस वाला’ गीत के लिए मुंह में पान रखकर गाने की इजाजत मिलने के बाद ही राजी हुए। ‘चाचा जिंदाबाद’ के मस्ती भरे गीत ‘बड़ी चीज है प्यार मोहब्बत’ की रिकार्डिंग के दौरान अंत में किशोर कुमार ने ऐसी ऊटपटांग हरकतें कीं कि लता मंगेशकर को हंसी आ गई, जिसे ज्यों का त्यों उस गीत में रखा गया। एक किस्सा है कि गीत ‘इक चतुर नार’ के लिए मन्ना डे से कहा गया कि गीत के अंत में उन्हें किशोर से हारना है, इस पर मन्ना डे बोले कि संगीत के मामले में किशोर मेरे सामने बच्चा है, मैं उससे क्यों हारूं? हालांकि रिकार्डिंग के बाद उन्होंने मुक्तकंठ से किशोर की प्रशंसा की और बोले-‘मैंने तो धुन और सुर के हिसाब से गाया, लेकिन किशोर तो गीत के भावों में ही घुस गया।’ प्रसिद्ध व्यंग्यकार शरद जोशी ने उनके लिए कहा था कि किशोर कुमार के जैसा संगीतमय हास्य अभिनेता दुनिया में कोई और नहीं। हालांकि कामेडी फिल्मों के साथ ही उन्होंने दूर ‘गगन की छांव में’, ‘दूर का राही’, ‘मुसाफिर’ जैसी भावपूर्ण फिल्मों के फूल भी खिलाए। 1969 में गाए गीतों ‘मेरे सपनों की रानी’ और ‘रूप तेरा मस्ताना’ ने उन्हें बुलंदी पर पहुंचा दिया।

    प्रयोग करने में अव्वल

    हिंदी सिनेमा में यूडलिंग (गायन की शैली जिसमें पिच में लगातार प्रयोग होता रहता है) लाने वाले वे पहले व अभी तक के एकमात्र गायक हैं। ‘मैं हूं झूम झूम झुमरू’, ‘भोला भाला मन मेरा’ जैसे उनके यूडलिंग वाले गीत अमर हैं। ‘हाफ टिकट’ का गीत ‘आके सीधी लगी दिल पे जैसे कटरिया’ ध्यान से सुनिए। बालीवुड का यह ऐसा बेजोड़ गीत है जिसे किशोर कुमार ने महिला और पुरुष दोनों की आवाज में एक ही रिकार्डिंग में गाया। इतना ही नहीं, ‘वाइस माड्यूलेशन’ के मामले में किशोर कुमार इतने सिद्धहस्त थे कि राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन और देव आनंद पर फिल्माए उनके गीत ऐसे लगते, जैसे अभिनेता स्वयं गा रहा हो।

    जहां शुरू वहीं सफर हुआ खत्म

    4 मई, 1986 को मध्य प्रदेश सरकार द्वारा प्रतिष्ठित लता मंगेशकर पुरस्कार ग्रहण करने किशोर कुमार इंदौर आए। बड़ा नेहरू स्टेडियम में आयोजित इस भव्य व गरिमामय पुरस्कार समारोह के अवसर पर पूरा इंदौर किशोरमय था। समय का पहिया घूमता रहा और लोगों को ‘चलते-चलते मेरे ये गीत याद रखना’ कहने वाले ने 13 अक्टूबर, 1987 को दुनिया से अलविदा कह दिया। बंगाली परंपरा से श्रंगारित उनकी पार्थिव देह सड़क मार्ग से खंडवा लाई गई, जिसे गांधी भवन में लोगों के दर्शनार्थ रखा गया। मध्य प्रदेश सरकार की ओर से पुष्पांजलि अर्पित की गई। अंतिम यात्रा गांधी भवन से होते हुए आवना नदी के किनारे खत्म हुई। पुत्र अमित कुमार ने मुखाग्नि दी। इसी स्थान पर इस कालजयी कलाकार की स्मृति में किशोर कुमार स्मारक बनाया गया है।

    किशोर कुमार के स्वर व गायन में ऐसी विविधता रही कि 600 से अधिक फिल्मों में 5,000 से अधिक गीतों ने लोगों को रुलाया और गुदगुदाया।