Naatu Naatu Song: सिर्फ 30 मिनट में तैयार किया था नाटू-नाटू सॉन्ग, एमएम कीरवाणी बोले- सोचा नहीं था...
Naatu Naatu Song नाटू-नाटू सॉन्ग को एमएम कीरवाणी ने सिर्फ 30 मिनट में तैयार किया था। इस गाने की सफलता पर कहा कि मैं बहुत खुश हूं। फिल्म की सफलता मेरे लिए बोनस की तरह रही क्योंकि मैं इस तरह के अवार्ड की उम्मीद नहीं कर रहा था।
स्मिता श्रीवास्तव,मुंबई ब्यूरो। साल की शुरुआत में जब एस. एस. राजामौली निर्देशित फिल्म 'आरआरआर' के गाने 'नाटू नाटू' के लिए संगीतकार एम. एम. कीरवाणी स्टेज पर गोल्डन ग्लोब ट्राफी लिए नजर आए तो हर देशवासी ने गौरवान्वित महसूस किया। अब इस गाने को प्रतिष्ठित आस्कर अवार्ड में नामांकन मिला है। फिल्मकार नीरज पांडेय के कार्यालय में एम.एम. कीरवाणी से स्मिता श्रीवास्तव की बातचीत के अंश...
गोल्डन ग्लोब अवार्ड की उपलब्धि कैसे देखते हैं?
मैं बहुत खुश हूं। फिल्म की सफलता मेरे लिए बोनस की तरह रही, क्योंकि मैं इस तरह के अवार्ड की उम्मीद नहीं कर रहा था। इस तरह की वैश्विक ख्याति पाने का लक्ष्य नहीं था। मेरा लक्ष्य था फिल्म भारत में सफल हो। बतौर टीम मेंबर मैं यही चाहता था कि इस फिल्म को लोगों का खूब प्यार मिले। मैं इस बोनस को एंजॉय कर रहा हूं।
आपको विश्वास था कि आस्कर में भी नामांकन मिलेगा?
मेरे अपने कुछ सिद्धांत हैं, जिनका मैं अनुसरण करता हूं। मैं ऐसा इंसान हूं जो सफलता का जश्न नहीं मनाता, क्योंकि सफलता या विफलता मिलना स्वाभाविक सी चीज है। जब आप सफलता का जश्न नहीं मनाते तो यह आपके दिमाग को सामान्य स्थिति में रखता है। यह बात श्रीमद्भगवद्गीता में कही गई है। उसमें कहा गया है कि कर्म करो, फल की इच्छा मत करो। गीता में यह भी कहा गया है कि परिणाम को भगवान श्रीकृष्ण पर छोड़ दो। यह बात हर किसी पर लागू होती है। आप बस अपना काम करें। उसके परिणाम को ईश्वर पर छोड़ दें, उन्हें कृष्ण कहें या अल्लाह। अगर आप अपने प्रयासों से खुश हैं तो आप सफल हैं। परिणाम कई बार सकारात्मक तो कभी नकारात्मक हो सकते हैं। उन पर ध्यान न दें। यही वजह है कि इस सफलता को मिलने पर मन-मस्तिष्क नियंत्रण में है, पर मैं खुश हूं।
'नाटू नाटू' को कैसे संगीतबद्ध किया?
यह मास नंबर गाना है। इसे कहानी की मांग के अनुसार ही कंपोज किया गया था। इस गाने को शुरुआत में चंद्रबोस ने लिखा था। मैंने उनके बोल को संगीतबद्ध किया। इस गाने को कोरियोग्राफ किया था प्रेम रक्षित ने। इसके लिए उन्हें भी श्रेय दिया जाना चाहिए जिसकी वजह से गाना धूम मचा रहा है। हमारे पास गाने पर परफार्म करने के लिए सुपरस्टार जूनियर एनटीआर और रामचरण थे। यह टीमवर्क था, लेकिन वैश्विक स्तर पर अवार्ड मिलना हमारी अपेक्षाओं से परे था। यहां तक कि निर्देशक राजामौली ने भी इसकी उम्मीद नहीं की थी।
इसका संगीत तैयार करने में कितना समय लगा?
गाने को सिर्फ एक दिन में लिखा गया था जबकि उसका संगीत तैयार करने में सिर्फ आधे घंटे का समय लगा। उसे प्रोग्राम करने और गाने में दो दिन और लगे। कुल चार दिन में यह गाना तैयार हो गया था। गाने को जब अन्य भाषाओं में डब किया गया तो ध्यान रखा गया कि गीत का अर्थ न बदले। डबिंग की प्रक्रिया के समय लिपसिंक, क्लोज अप शाट वगैरह को ध्यान में रखते हुए थोड़़ा बहुत समझौता करना पड़ता है। कुछ गानों में 50 प्रतिशत समझौता करना पड़ता है, पर इस गीत में 10 प्रतिशत से भी कम समझौता करना पड़ा। यह डांस नंबर है तो आपका ध्यान डांस और एनर्जी पर रहता है। ...लेकिन उस गाने को फिल्म में लेने का निर्णय लेने में छह महीने लग गए। दरअसल, निर्देशक के पास चार-पांच विकल्प थे। फाइनल करने का निर्णय लेने में उन्हें वक्त लग गया था।
इस गाने को यूक्रेन में फिल्माया गया था, तब रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध नहीं छिड़ा था। आप भी शूटिंग पर गए थे?
मुझे पता था यूक्रेन में कुछ सीन फिल्माए जाएंगे। मुझसे कहा गया था कि आप काम में हिस्सा लेने न आएं, बल्कि परिवार के सदस्य की तरह आएं मगर मेरे पास यूक्रेन जाने का समय नहीं था। मेरी पत्नी बतौर लाइन प्रोड्यूसर वहां गई थीं। निर्देशक की पत्नी कास्ट्यूम डिजायनर के तौर पर वहां पर थीं। शूटिंग के बाद जब सभी स्वदेश आए और एडिटिंग के दौरान मैंने गाने को स्क्रीन पर देखा तो बहुत अच्छा लगा।
निर्देशक राजामौली के साथ यह आपकी 12वीं फिल्म हैं...
वह मेरे पिता के सबसे छोटे भाई के बेटे हैं। राजामौली की फिल्मों के साथ मैं वर्ष 2001 से जुड़ा हूं। वह किसी साधारण प्रोजेक्ट पर काम नहीं करते। हर प्रोजेक्ट के साथ वह विकास कर रहे हैं तो हर बार कुछ अच्छा लाते हैं। मैं भी जाहिर तौर पर अपना सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास करता हूं। कई बार हमारे बीच मतभेद होते हैं, लेकिन आखिर में फिल्म ही जीतती है।
करियर के शुरुआती दिनों में जब पहला ब्रेक मिला था तो वह फिल्म प्रदर्शित नहीं हो पाई थी....
मेरी पहली फिल्म 1989 में बनी थी, जो प्रदर्शित नहीं हुई थी। इससे पहले कि मैं अपनी पहली फिल्म पूरी कर पाता, मेरे पास 20 फिल्मों के प्रस्ताव आ गए। इसलिए उस एक फिल्म का मुझ पर फर्क नहीं पड़ा। उसके लिए रामगोपाल वर्मा का शुक्रगुजार हूं। वह हमारे समय के शानदार फिल्मकार हैं। उन्होंने मुझे अपनी दूसरी फिल्म में संगीत तैयार करने का जिम्मा दिया था।
उनकी पहली फिल्म 'शिवा' सुपरहिट रही थी। दूसरी फिल्म मुझे देने पर लोगों को लगा कि राम गोपाल अगर इस नए लड़के को अपने साथ जोड़ रहे हैं तो निश्चित रूप से उसमें प्रतिभा होगी। यही वजह रही कि मुझे 20 फिल्में मिली थीं। मैंने हर प्रस्ताव स्वीकार भी कर लिया क्योंकि मैं पैसे कमाना चाहता था। दरअसल उस समय हमारा 25 लोगों का संयुक्त परिवार था। वे सब मेरी आमदनी पर निर्भर थे तो मैं कमाई का कोई भी अवसर नहीं खोना चाहता था। अब सब अपने परिवार साथ रह रहे हैं।
आपने चार साल की उम्र में संगीत सीखना शुरू कर दिया था। अपने संगीत सफर के बारे में बताएं?
मैंने कभी सपने में भी सोचा नहीं था कि फिल्मों के गानों लिए संगीत तैयार करूंगा। मेरे पिता ने यह काम करने के लिए दबाव बनाया। ऐसा करना मेरी इच्छा के विरुद्ध था। मैं संगीतकार था। मैं वायलिन पर आर.डी. बर्मन के हिट गाने, कर्नाटक संगीत, क्लासिकल गाने आदि बजाता था पर कुछ नया संगीतबद्ध करने की कोशिश नहीं की। मेरे पिता ने गानों को संगीतबद्ध करने पर जोर दिया। शुरुआत में उसमें मजा नहीं आता था मगर धीरे-धीरे रुचि बढ़ी और यही कला काम आई।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय फिल्मों को नाच-गाने से जोड़कर देखा जाता रहा है। क्या अब उनका दृष्टिकोण बदलेगा?
बेशक उनका दृष्टिकोण बदलेगा। जिन्होंने 'आरआरआर' नहीं देखी उन्हें देखनी चाहिए। 'बाहुबली' भी देखें। तब पता चलेगा कि गाने और डांस को किस वजह से डाला गया है। यह फिल्म भी राजामौली की है। भारतीय फिल्मों में शुरुआत से ही गाने शािमल रहे हैं जो न सिर्फ लोगों को शिक्षित करते हैं, सोच को बदलते हैं बल्कि सुकून देते हुए मनोबल बढ़ाते हैं। हमारे यहां कई बेहतरीन गाने हैं जिन्हें महान गायकों ने गाया है। यह बकवास है कि भारतीय फिल्में सिर्फ नाच-गाना हैं। मैं इसकी कड़ी आलोचना करता हूं। भारतीय गाने महान हैं। हमारे पास सूफी, भक्ति सहित तमाम तरह का गीत-संगीत है। भारतीय संगीत बहुत समृद्ध है। पश्चिमी संगीत भी समृद्ध है। संगीत तो यूनिवर्सल है। हर संगीत अनूठा है।
आपके मन में हिंदी गानों के प्रति लगाव कैसे उत्पन्न हुआ था?
उसके लिए रेडियो सीलोन का शुक्रिया। हम भले ही दक्षिण भारत में रहते थे, लेकिन हिंदी के अलावा पश्चिमी संगीत से भी जुड़ाव था। तब हर बुधवार को बिनाका गीतमाला आता था। मैं उस समय के महान गायकों को सुनता था। वो कहते हैं न ओल्ड इज गोल्ड। मैं नूरजहां, हेमंत, मोहम्मद रफी, के. एल. सहगल, लता मंगेशकर, ओ.पी. नैयर, एस.डी. बर्मन, आर.डी. बर्मन जैसे संगीत से जुड़ी सभी प्रख्यात हस्तियों को जानता था। अभी भी मैंने बहुत सारा संगीत नहीं सुना है, क्योंकि जीवन बहुत छोटा है। आप दुनियाभर का संगीत नहीं सुन सकते हैं, लेकिन मैंने प्रयास किया है कि हिंदी संगीत से जुड़ा रहूं।
आप नीरज पांडेय के साथ फिल्म कर रहे हैं...
जी, उनकी अगली फिल्म पर काम कर रहा हूं। नीरज पांडेय मेरे लिए परिवार की तरह हैं। उनके साथ होना घर से दूर घर होने जैसा है। उन्होंने वर्ष 2009 में अपनी फिल्म के लिए मुझे फोन किया था पर किसी कारण से वो फिल्म नहीं बन सकी थी। उसके बाद उन्होंने 'स्पेशल 26' में मौका दिया। तबसे हमारा जुड़ाव कायम है।
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