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    Emergency in India: ...जब आपातकाल की आंच में झुलस गया था भारतीय सिनेमा

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Sun, 26 Jun 2022 09:24 AM (IST)

    25 जून 1975 को आपातकाल लागू होने के बाद न सिर्फ समाज बल्कि सिनेमा जगत में भी इसकी हलचल महसूस की गई थी। कुछ कलाकारों ने इस निर्णय के प्रति अपना समर्थन जताया मगर विरोध में खड़े हुए कई कलाकारों को हर्जाना भुगतना पड़ा।

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    फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े तमाम लोगों पर आपातकाल के प्रभाव की पड़ताल करता अनंत विजय का आलेख...

    अनंत विजय। सिनेमा एक ऐसा माध्यम है जिसका भारतीय समाज पर जबरदस्त प्रभाव पड़ता है। सिने अभिनेता और अभिनेत्रियों की लोकप्रियता को कई बार राजनीति में उपयोग किया जाता है। कभी चुनाव जीतने के लिए तो कभी भीड़ जुटाने के लिए। जब देश में इमरजेंसी लागू हुई और संजय गांधी खुद को इंदिरा गांधी के राजनीतिक वारिस के तौर पर स्थापित करने में लगे थे, तब उन्होंने भी फिल्मी कलाकारों की लोकप्रियता का सहारा लेने की कोशिश की थी। जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश पर इमरजेंसी थोपी, उस वक्त कांग्रेस पार्टी में इंदिरा इज इंडिया और इंडिया इज इंदिरा का नारा हकीकत हो चुका था। कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेता घुटने टेक चुके थे। संजय गांधी का बोलबाला था। इमरजेंसी में हुई ज्यादतियों का सारा ठीकरा इंदिरा गांधी के सिर फोड़ा जाता है और संजय गांधी की कारगुजारियों पर कम चर्चा होती है। इमरजेंसी के दौरान फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े कलाकारों पर जो पाबंदियां लगाई गईं, उसके लिए संजय गांधी और उस दौर के उनके अनुयायी जिम्मेदार थे।

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    देश में जब इमरजेंसी लागू हुई तो हिंदी फिल्मों के ज्यादातर नायक और नायिकाएं उसके पक्ष में थे। बाद में उनमें से कइयों को कांग्रेस सरकार ने राज्यसभा में नामित करके पुरस्कृत भी किया गया। इनमें से एक अभिनेत्री तो वो भी हैं जो इन दिनों अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर और फासीवाद की आहट पर लगातार टिप्पणी करती हैं। ये अभिनेत्री इमरजेंसी के दौर में कांग्रेस के एक कार्यक्रम में नृत्य करने आई थीं और स्टेज पर परफार्म भी किया था। संजय गांधी के पक्ष में माहौल बनाने के लिए काम भी किया था। दिलीप कुमार और नरगिस तो घोषित तौर पर कांग्रेस और संजय गांधी के पक्ष में थे और हिंदी फिल्मों के अन्य कलाकारों को उनके पक्ष में मोबलाइज भी कर रहे थे। इमरजेंसी के दौर में किशोर कुमार के गानों पर प्रतिबंध की खूब चर्चा होती है, लेकिन देव आनंद की फिल्मों और उनकी फिल्मों के गानों पर लगे प्रतिबंध के बारे में कम ही लोगों का पता है। देव आनंद पर प्रतिबंध की वजह भी लगभग वही है जिसकी वजह से किशोर कुमार के गानों को प्रतिबंधित किया गया।

    देव आनंद ने अपनी आत्मकथा ‘रोमांसिंग विद लाइफ’ में संजय गांधी के समर्थकों के बारे में लिखा है। उन्होंने लिखा है कि इमरजेंसी के दौर में युवा कांग्रेस की एक बेहद खूबसूरत और आकर्षक महिला बांबे (अब मुंबई) आई थी और उसने बालीवुड में संजय के पक्ष में समर्थन जुटाने का अभियान चलाया था। वो चाहती थी कि हिंदी फिल्मों के लोकप्रिय अभिनेता और अभिनेत्री संजय गांधी की अगुवाई में दिल्ली में होने वाली रैली में शामिल हों। देव आनंद को भी उसने तैयार कर लिया। देव आनंद जब दिल्ली की रैली में पहुंचे तो दिलीप कुमार वहां पहले से मंच पर मौजूद थे। देव आनंद के मुताबिक उस रैली में संजय गांधी को नेता के तौर पर स्थापित करने वाले भाषण और नारे लग रहे थे। रैली खत्म होने के बाद देव आनंद को कहा गया कि उनको दूरदर्शन जाना है और वहां जाकर युवा कांग्रेस और उनके नेता की प्रभावी नेतृत्व क्षमता के बारे में अपनी बात रिकार्ड करवानी है। देव आनंद ने लिखा है कि ऐसा प्रतीत हो रहा था कि उस वक्त की प्रोपेगेंडा मशीनरी एकदम से फासीवादी तरीके से हर अवसर और हर व्यक्ति का उपयोग संजय गांधी की छवि चमकाने में लगी हुई थी। देव आनंद को प्रोपेगेंडा मशीनरी का ये प्रस्ताव नहीं भाया और उन्होंने न सिर्फ मना किया, बल्कि इसका विरोध भी किया। देव आनंद के मना करने की उस वक्त की सरकार में बेहद तीखी प्रतिक्रिया हुई। दूरदर्शन पर उनकी फिल्मों को तो बैन किया ही गया, किसी भी सरकारी माध्यम में देव आनंद का नाम नहीं आए ऐसी व्यवस्था बना दी गई। यह जानकर देव आनंद को बहुत बुरा लगा था और उन्होंने उस वक्त के सूचना और प्रसारण मंत्री से इसकी शिकायत भी की थी, लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला।

    जब देव आनंद बांबे लौटे तो एक पार्टी में उनको इस बात का एहसास हुआ कि उनके मना करने का कांग्रेस नेतृत्व ने कितना बुरा माना है। एक पार्टी में उनको नरगिस मिलीं और उनका हाथ पकड़कर एक कोने में ले गईं और कहा कि आपने संजय गांधी के पक्ष में बोलने से मना करके अच्छा नहीं किया। उन्होंने देव आनंद को दूरदर्शन पर जाने की सलाह भी दी। जब देव आनंद ने उनको भी मना किया तो वो थोड़ा झल्ला गईं और बोलीं कि आप बेवजह हठ कर रहे हैं। आपको यह हठ छोड़ देना चाहिए, लेकिन देव आनंद नहीं माने और उन्होंने लिखा है कि उसके बाद वो संजय गांधी के समर्थकों और दरबारियों के निशाने पर आ गए थे।

    देव आनंद की फिल्म ‘देस परदेस’ रिलीज होने वाली थी और उनको डर सता रहा था कि संजय गांधी के दरबारी उनकी फिल्म को नुकसान न पहुंचा दें। डर जायज भी था क्योंकि इमरजेंसी के दौर में जो भी संजय गांधी के विरोध में गया था, उसको बहुत परेशानियां झेलनी पड़ी थीं। फिर वो चाहे फिल्मकार हों या कलाकार। उस दौर में कई अभिनेताओं और अभिनेत्रियों ने इमरजेंसी और संजय गांधी के पक्ष में बयान दिया था जो दूरदर्शन पर प्रसारित भी हुआ था। अगर दूरदर्शन के आर्काइव में वो सामग्री हो तो उसको निकालकर देश की जनता को बताना चाहिए कि कौन-कौन से फिल्मी कलाकार इमरजेंसी के पक्ष में थे। खैर.. ये अवांतर प्रसंग है।