Exclusive Interview: 'मेरे माता-पिता ने कभी यह दबाव नहीं डाला, हरिवंश राय बच्चन के पोते हो तो अव्वल रहना होगा'- अभिषेक बच्चन
Abhishek Bachchan Exclusive Interview दसवीं पिछले हफ्ते नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई है और अभिषेक बच्चन के अभिनय के लिए चर्चा में है। फिल्म में यामी गौतम और निमरत कौर ने अभिषेक के साथ मुख्य किरदार निभाये हैं। अमिताभ ने फिल्म को लेकर बातचीत की है।
मनोज वशिष्ठ, नई दिल्ली। 2022 अभिषेक बच्चन की अभिनय यात्रा का बाइसवां साल है। इस यात्रा के पिछले कुछ पड़ाव बेहद अहम रहे हैं। इसे संयोग कहा जाये प्रयोग, ओटीटी स्पेस में अभिषेक बतौर अभिनेता निखरकर सामने आये हैं। ताजा मिसाल है दसवीं, जो पिछले हफ्ते नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई है। जेल से दसवीं पास करने की जिद ठाने बैठे एक प्रदेश के पूर्व सीएम गंगा राम चौधरी के किरदार में अभिषेक की अदाकारी को खूब सराहा जा रहा है। दसवीं की सफलता के उनके लिए क्या मायने हैं, पिता अमिताभ बच्चन की प्रशंसा और ओटीटी स्पेस में अपनी जगह को लेकर अभिषेक ने जागरण डॉट कॉम के साथ विस्तार से बातचीत की।
अभिषेक, आपको फिल्म की सफलता के लिए बहुत बधाई। 'दसवीं' तो आपने पास कर ली, अब आगे की 'पढ़ाई' की क्या तैयारी चल रही है?
- जी, बहुत बहुत धन्यवाद। फिलहाल तो कुछ तैयारी है नहीं, क्योंकि अभी-अभी फिल्म रिलीज हुई है तो अभी तक काम खत्म नहीं हुआ है। जैसा कि आप जानते हैं, जब हम प्रमोशन करते हैं तो वो रिलीज के बाद भी चलते रहते हैं। एक हफ्ते पहले फिल्म रिलीज हुई थी। आज भी हम उसके बारे में बात कर रहे हैं। चर्चा कर रहे हैं। इतने व्यस्त हो गये हैं इन सब चीजों में कि आगे क्या करना है, उसके बारे में सोचने का मौका ही नहीं मिला है।
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दसवीं में आपके काम को लेकर अमित जी लगातार सोशल मीडिया में लिख रहे हैं। इतना उत्साहित उन्हें पहले कभी नहीं देखा। उनकी प्रशंसा से कोई दबाव महसूस करते हैं?
- कोई एक्टर कैसा महसूस करेगा, अगर श्री अमिताभ बच्चन उसके काम के बारे में बात करें। वो जो कर रहे हैं, वो तो काफी ज्यादा है। वो देख लें, किसी एक्टर के लिए यही काफी होता है और मैंने हमेशा यह कहा है कि मैं उनका बेटा ही नहीं, उनका बहुत बड़ा फैन भी हूं। वो जो भी बोल रहे हैं, लिख रहे हैं, बहुत ही अच्छा लगता है। थोड़ा अजीब भी लगता है, वो मेरे पास नहीं हैं। मैं मुंबई में शूटिंग कर रहा हूं। वो दिल्ली में शूटिंग कर रहे हैं। अभी उनसे मिल भी नहीं सकता हूं। उन्हें गले भी नहीं लगा सकता हूं। रही प्रेशर की बात, तो देखिए, अच्छा लगता है, फिर वो आपके पिता ही क्यों ना हों। कोई भी एक्टर या सह-कलाकार आपके काम को सराहे, उससे कॉन्फिडेंस बढ़ता है। लेकिन, अगली फिल्म में शायद वो ऐसा ना सोचें, तो आप यह सोचकर बैठे नहीं रह सकते हैं कि भैया उन्हें मेरा काम बहुत पसंद आया है, चलो अभी तो मैं ठीक हूं। नहीं... नहीं... आपको उतनी ही मेहनत करनी पड़ेगी, बल्कि इससे भी ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी।
T 4253 - my pride , my belief .. my son !! ❤️❤️❤️ pic.twitter.com/NIUKCF9fm1
— Amitabh Bachchan (@SrBachchan) April 15, 2022
गंगा राम चौधरी बनने के लिए आपने क्या तैयारियां कीं और क्या यह किरदार किसी वास्तविक राजनेता से प्रेरित है?
- सबसे पहले मैं क्लियर कर दूं, इसे हमने काल्पनिक जगह पर सेट किया है। यह ना तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश है और ना ही हरियाणा। यह हरित प्रदेश काल्पनिक है, क्योंकि हम किसी खास क्षेत्र से बंधकर नहीं रहना चाहते थे। फिल्म के लिए हमने जो लहजा अपनाया है, उसके लिए मेहनत तो सबको करनी पड़, निमरत (कौर) और यामी (गौतम धर) को भी। हमारे डायरेक्टर तुषार (जलोटा) ने डायलेक्ट कोच सुनीता शर्मा जी की सेवाएं ली थीं। उनके साथ हमने करीबन दो महीने ट्रेनिंग ली। सेट पर भी रहती थीं। शूटिंग के दौरान अगर कोई गल्ती हो जाती थी तो सुधारने के लिए वो वहां पर मौजूद थीं। इसके अलावा बात-चीत बहुत होती है। डिसक्शंस बहुत होते हैं। टेबल रीड्स जो हम कहते हैं, रिहर्सल्स, वर्कशॉप्स। यह सब हमने कुछ 6-8 हफ्तों के लिए किया था।
तुषार जलोटा अपेक्षाकृत नये निर्देशक हैं। उनके साथ फिल्म करने का अनुभव कैसा रहा?
- तुषार की यह पहली फिल्म है। वो काफी समय से निर्देशन में हैं। तुषार और दिनेश (विजन), जो निर्माता हैं, दोनों मुझसे पहली बार मिलने आये तो उन्होंने बस ढांचा सुनाया था। उस ढांचे से ही समझ में आ गया था कि यह फिल्म कैसी बनने वाली है। तभी मैंने हां कर दिया था। मैंने अपने पूरे करियर में कभी यह सोचा नहीं कि डायरेक्टर नया है या पुराना। आप जब किसी निर्देशक के साथ बैठते हैं तो 10 मिनट में यह समझ में आ जाता है कि यह पिक्चर बना पाएंगे या नहीं।
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दसवीं के कई दृश्य काफी दिलचस्प और भावुक हैं। ऐसा कोई दृश्य, जिसे पर्दे पर पेश करना आपको बतौर एक्टर सबसे मुश्किल रहा हो?
- मेरे लिए सबसे इमोशनल सीन वो था, जब गंगा राम चौधरी के दसवीं के रिजल्ट आ जाते हैं और वो पास हो जाता है। वो जो सीन था, मेरे लिए बहुत कठिन था।
दसवीं में गंगा राम चौधरी पर तो पढ़ाई का काफी दबाव था। क्या बचपन में आपने कभी ऐसा कोई दबाव महसूस किया था?
- मुझे इसका एहसास कभी नहीं हुआ था जी। ना तो मेरे माता-पिता ने मुझ पर यह प्रेशर डाला था कि तुम हरिवंश राय बच्चन के पोते हो तो तुम्हें पढ़ाई-लिखाई में अव्वल होना चाहिए। बस उन्होंने यह ज्ञान दिया था कि जो कुछ भी करो- ट्राई योर बेस्ट। कोशिश करो कि जो सबसे अच्छा काम हो, वो कर सको। इससे ज्यादा हम कुछ नहीं मांग सकते हैं। अगर टीचर बोले कि पढ़ाई-लिखाई में उतना अच्छा नहीं कर पा रहा है, वो ठीक है, लेकिन यह नहीं होना चाहिए कि तुम मेहनती नहीं हो। मेहनत करो, बस हम तो यही चाहते हैं।
ओटीटी स्पेस में आपका अंदाज एकदम बदला हुआ है। किरदारों के साथ इतने प्रयोग आपने पहले नहीं किये। आप ऐसी स्क्रिप्ट्स चुन रहे हैं या ओटीटी आपको ये मौके दे रहा है?
- नहीं, सबसे पहले मैं चूज कर रहा हूं। सिर्फ ओटीटी की बात नहीं है। ओटीटी हो या सिनेमा हो, मेरा मानना है कि जो दर्शक हैं, वो वैरायटी चाहते हैं। अगर मैं एक जैसे कैरेक्टर करता गया तो वे बहुत जल्दी थक जाएंगे और किसी और का काम देखना चाहेंगे। अगर मैं अपनी हर फिल्म के साथ उन्हें कुछ नया दे पाऊं, या उन्हें सरप्राइज करता रहूं तो उनमें शायद यह भावना जागेगी कि यह आगे क्या करने वाला है? इसकी जो अगली फिल्म है, वो देखनी है। यह मेरा मानना है। मैं गलत हो सकता हूं। जैसा कि आपने कहा- लूडो, ब्रीद- इन टू द शैडोज, फिर द बिग बुल, बॉब बिस्वास और अभी दसवीं...ये जो स्क्रिप्ट्स हैं, यह मुझे बड़ी अच्छी लगी थीं, मैं इस वजह से भी राजी हो गया कि मुझे लगा कि मैंने पहले कभी यह किया नहीं है तो कुछ अलग करने का मुझे मौका मिला।
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ओटीटी स्पेस के इतने विस्तार और लोकप्रियता के बीच क्या मेनस्ट्रीम सिनेमा को भी अपने कंटेंट में बदलाव लाना होगा?
- जी देखिए, सिनेमा ना तो कहीं जाने वाला है और ना जाएगा। यह बहस हमेशा से चलती आ रही है कि सिनेमा का क्या होगा। पहले टेलीविजन आया तो बोला गया सिनेमा खत्म हो गया है। फिर वो वीडियो कैसेट का जमाना आया तो बोला गया सिनेमा खत्म हो जाएगा। फिर सैटेलाइट, फिर केबल, अभी ओटीटी। यह एक और मा्ध्यम है, जिसके जरिए हम अपने दर्शकों तक पहुंच सकते हैं। अगर आप लॉन्ग फॉर्मेट कर रहे हैं, एक वेब सीरीज या एक शो, तो उसके लिए आपकी राइटिंग में थोड़ा फर्क होना चाहिए। लेकिन, सिनेमाघर कहीं नहीं जाने वाले हैं। जब से सिनेमाघर पैनडेमिक और लॉकडाउन के बाद पूरी तरह खुल गये हैं, आप देख रहे हैं कि बिजनेस भी जोरदार ढंग से चल रहा है तो यह हमेशा साथ चलेंगे। आप अपना कंटेंट सिनेमाघर में दिखाएंगे या ओटीटी पर, यह आपके ऊपर निर्भर है और लोग दोनों जगह जाकर देखेंगे। आप कहानी अच्छी दिखाइए, आप पिक्चर अच्छी बनाइए। आपकी पिक्चर अच्छी होगी तो आप चाहे ओटीटी पर दिखाएं, टेलीविजन पर दिखाएं या सिनेमाघर में दिखाएं, लोग देखेंगे।
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