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Dadasaheb Phalke को ये मूवी देखने के बाद मिली थी फिल्में बनाने की प्रेरणा, फिर ऐसे बने भारतीय सिनेमा के जनक

30 अप्रैल को भारतीय सिनेमा के जनक कहे जाने वाले धुंडीराज गोविंद फाल्के उर्फ दादासाहेब फाल्के की बर्थ एनिवर्सरी है। साल 1913 में आई भारत की पहली फिल्म राजा हरिश्चंद्र का निर्माण भी उन्होंने ही किया था। हालांकि इस फिल्म को बनाना उनके लिए आसान नहीं था। उन्होंने इसे बनाने के लिए अपना सब कुछ दांव पर रख दिया था।

By Rajshree Verma Edited By: Rajshree Verma Published: Tue, 30 Apr 2024 06:30 AM (IST)Updated: Tue, 30 Apr 2024 07:18 AM (IST)
दादासाहेब फाल्के बर्थ एनिवर्सरी (Photo Credit: Jagran Graphics)

एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। धुंडीराज गोविंद फाल्के उर्फ दादासाहेब फाल्के को भारतीय सिनेमा का जनक भी कहा जाता है। उन्होंने ही भारत में सिनेमा की शुरुआत की थी। 30 अप्रैल, 1870 को जन्मे दादासाहेब फाल्के एक प्रोड्यूसर, डायरेक्टर के साथ-साथ स्क्रीनराइटर भी थे। साल 1913 में आई भारत की पहली फिल्म राजा हरिश्चंद्र का निर्माण भी उन्होंने ही किया था।

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हालांकि, आज के समय में फिल्मों को बनाना काफी आसान है, लेकिन उस समय में उन्हें इस फिल्म को बनाने के लिए कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। इसे बनाने में दादासाहेब फाल्के ने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था। इस फिल्म के निर्देशक से लेकर कॉस्ट्यूम डिजाइन, लाइट और कैमरा डिपार्टमेंट भी उन्होंने खुद ही संभाला था। 30 अप्रैल को उनकी बर्थ एनिवर्सरी है। ऐसे में चलिए जानते हैं उनसे जुड़ी कई बातें।

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फोटोग्राफर के रूप में शुरू किया करियर

दादासाहेब फाल्के का जन्म 30 अप्रैल, 1870 को नासिक से कुछ किलोमीटर दूसर त्र्यंबकेश्वर में हुआ था। 15 साल की उम्र में दादासाहेब ने मुंबई के जेजे स्कूल ऑफ आर्ट में दाखिला लिया था, जहां उन्होंने मूर्तिकला, ड्राइंग, पेंटिंग, फोटोग्राफी और संगीत की पढ़ाई की। इसके बाद 1890 में उन्होंने एक फोटोग्राफर के रूप में काम किया। कुछ समय बाद उन्होंने वह काम छोड़ दिया और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में एक ड्राफ्ट्समैन के रूप में काम करना शुरू किया।

इस अंग्रेजी फिल्म से मिली फिल्में बनाने की प्रेरणा

साल 1910 में बंबई (मुंबई) के अमेरिका-इंडिया पिक्चर पैलेस में 'द लाइफ ऑफ क्राइस्ट' अंग्रेजी फिल्म दिखाई गई थी। इस फिल्म को देखने के बाद दादा साहब फाल्के को फिल्म बनाने का आइडिया आया। उन्होंने फैसला किया कि वह भारतीय धार्मिक चरित्रों को पर्दे पर दिखाएंगे, लेकिन यह सब इतना आसान नहीं होने वाला था।

क्योंकि उस दौर में न तो फिल्मों को बनाने के लिए किसी तरह की टेक्नोलॉजी थी और ना ही कोई अन्य सुविधा थी। ऐसे में उन्होंने अगले एक साल तक फिल्म मेकिंग सिखने के लिए ढेर सारी फिल्में देखी और किताबें पढ़ीं। अब फिल्म बनाने के लिए स्क्रिप्ट तैयार थी, लेकिन इक्विपमेंट नहीं थे। ऐसे में उन्होंने इक्विपमेंट जुटाने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया। वह इंग्लैंड गए और वहां फिल्म में काम आने वाले सामान खरीदा फिर 3 महीने की इंग्लैंड यात्रा के बाद भारत वापस लौटे आये थे।

पुरुषों को बनाया अभिनेत्री

पहले के समय में महिलाएं फिल्मों में नहीं आया करती थीं। ऐसे में दादासाहेब को भी उनकी फिल्म के लिए एक्ट्रेस नहीं मिली, बाद में वह हीरोइन की तलाश में रेड लाइट एरिया पहुंच गए, लेकिन वैश्याओं ने भी इससे इनकार कर दिया। ऐसे में दादासाहेब ने एक बावर्ची अन्ना सालुंके को राजा हरिश्चंद्र में तारामती का किरदार दिया और अपने बेटे को रोहिदास का किरदार दिया।

खुद संभाली सभी चीजें

इसके बाद धुंडीराज यानी दादासाहेब फाल्के ने हिंदुस्तान की पहली फीचर फिल्म का निर्माण किया जिसका नाम था 'राजा हरिश्चंद्र'। इस फिल्म को बनाने के लिए कैमरा मैन से लेकर लाइटमैन, ड्रेस डिजाइनर, राइटर, स्किप्टराइटर और डायरेक्टर-प्रोड्यूसर सब काम उन्होंने ही किया था। फिर भारत की पहली फिल्म 3 मई 1913 में रिलीज हुई थी।

19 साल के फिल्मी करियर में बनाई कई फिल्में

राजा हरिश्चंद्र की रिलीज के बाद उन्होंने अपने 19 साल के करियर में 27 लघु फिल्मों सहित लगभग 95 फिल्मों का निर्माण किया। उनकी मृत्यु के बाद भारत सरकार ने साल 1969 में उनके नाम पर दादा साहब फाल्के पुरस्कार शुरू किया।

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