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    Cannes Film Festival 2023: शुरू से रहा है भारतीय फिल्मों का दबदबा, इस फिल्म से खुला था हिंदी सिनेमा का खाता

    Cannes Film Festival 2023 हर साल की तरह इस बार भी कान फिल्म फेस्टिवल में कई फिल्मों की शानदार स्क्रीनिंग होने वाली है। क्या आप जानते हैं साल 1946 में जब से इस प्रतिष्ठित फेस्टिवल का आगाज हुआ है तब से ही इंडियन फिल्मों का इसमें बोलबाला रहा है।

    By Tanya AroraEdited By: Tanya AroraUpdated: Mon, 15 May 2023 09:19 PM (IST)
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    Cannes Film Festival 2023 Know the Indian Movie Wins Since 1946 Neecha Nagar to the Lunchbox/Instagram

     नई दिल्ली, जेएनएन। Cannes Film Festival 2023: 76वें कान फिल्म फेस्टिवल का जल्द ही आगाज होने जा रहा है। 16 मई 2023 को इस लोकप्रिय फेस्टिवल की शुरुआत होगी और 10 दिनों तक यानी कि 27 मई तक रेड कारपेट पर बॉलीवुड के कई बड़े सितारे अपनी मौजूदगी से चार चांद लगाएंगे।

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    कान फिल्म फेस्टिवल की शुरुआत 1946 में हुई थी। इस फेस्टिवल में बड़ी बड़ी फिल्मों की स्क्रीनिंग की जाती है, जहां पर जूरी मेम्बर्स को जो फिल्में पसंद आती हैं उसे Palme d'Or सेक्शन में सम्मानित किया जाता है।

    आपको बता दें कि भारतीय फिल्मों के लिए कान फिल्म फेस्टिवल कोई नया नहीं है, बल्कि जब से इस प्रतिष्ठित फेस्टिवल की शुरुआत हुई है, तब से हिंदी फिल्मों का बोलबाला इस फेस्टिवल में रहा है।

    कान फिल्म फेस्टिवल 2023 में कौन सी फिल्म की सबसे पहले स्क्रीनिंग हुई थी और कौन-कौन सी फिल्मों को अब तक सम्मानित किया गया है। चलिए डालते हैं एक नजर।

    इस हिंदी फिल्म से खुला था खाता

    साल 1946 में जब कान फिल्म फेस्टिवल की शुरुआत हुई थी, उसी साल इस फेस्टिवल में भारतीय फिल्म 'नीचा नगर' को Palme d'Or के सेक्शन में सम्मानित किया गया था। फिल्म का निर्देशन चेतन आनंद ने किया था। फिल्म में चेतन आनंद की वाइफ उमा आनंद, रफीक अनवर, कामिनी कौशल और जोहरा सहगल ने मुख्य भूमिका निभाई थी। फिल्म का म्यूजिक रविशंकर ने दिया था।

    इन हिंदी फिल्मों को भी अलग-अलग कैटेगरी में किया गया सम्मानित

    1946 के बाद साल 1954 में बिमल रॉय की फिल्म 'दो बीघा जमीन' को कान फिल्म फेस्टिवल में इंटरनेशनल प्राइज कैटगरी में जीत हासिल हुई थी, इसके अलावा बेबी नाज को साल 1955 में रिलीज हुई फिल्म 'बूट पॉलिश' के लिए 'चाइल्ड आर्टिस्ट' के सेक्शन में सम्मानित किया गया था।

    1954 से लेकर 1957 तक हिंदी फिल्मों को कान फिल्म फेस्टिवल में अलग-अलग हिंदी फिल्मों ने अपनी धाक जमाई। सत्यजीत रे की बंगाली फिल्म 'पाथेर पांचाली' बेस्ट ह्यूमन डॉक्यूमेंट कैटेगरी में सम्मानित किया गया।

    1983 में भी इन फिल्मों को मिला सम्मान

    60 का दौर तो हिंदी फिल्मों के लिए अच्छा रहा ही, लेकिन इसी के साथ 80 में भी इंडियन सिनेमा की कई बड़ी फिल्मों की कान फिल्म फेस्टिवल में स्क्रीनिंग की गई और कई फिल्मों को अलग-अलग सेक्शन में अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।

    साल 1983 में बंगाली और हिंदी सिनेमा के निर्देशक मृणाल सेन की फिल्म 'खारजी' को जूरी प्राइज के सेक्शन में सम्मान मिला, तो वहीं डायरेक्टर मीरा नायर की फिल्म 'सलाम बॉम्बे' को Caméra d'Or — Mention Spéciale कैटेगरी में सम्मानित किया गया।

    इसके अलावा साल 1998 में मुरली नायर की मृत्यु का सिंहासन, मनीष झा की 'अ वैरी-वैरी साइलेंट फिल्म', गीतांजलि राव की 'प्रिंटेड रेम्बो', रितेश बत्रा की साल 2013 द लंचबॉक्स की स्क्रीनिंग हुई और अलग-अलग कैटेगरी में इसे सम्मान मिला।

    इन फिल्मों का भी कान फिल्म फेस्टिवल में रहा बोलबाला

    साल 2015 में भी फिल्म कान फिल्म फेस्टिवल में नीरज घायवान की फिल्म 'मसान' की स्क्रीनिंग हुई। इस फिल्म में विकी कौशल और ऋचा चड्ढा जैसे स्टार्स नजर आए थे।

    इस फिल्म में FIPRESCI प्राइज कैटेगरी में सम्मानित किया गया था। साल 2021 में पायल कपाड़िया की फिल्म 'अ नाइट ऑफ नोइंग नथिंग' की स्क्रीनिंग के बाद इसे गोल्डन आई सेक्शन में सम्मान मिला, इसके अलावा शौनक सेन की ऑल द ब्रीद्स को भी 'गोल्डन आई' में सम्मानित किया गया।