बॉलीवुड की पटरियों पर अब तक दौड़ी है रेलगाड़ी... अब उड़ेगी 'बुलेट ट्रेन'
ये कहना ग़लत नहीं होगा कि आम आदमी की सवारी ट्रेन देश को जोड़ती हैं। इसीलिए सिनेमा में भी ट्रेन अक्सर अहम किरदार में नज़र आ जाती है।
मुंबई। Bullet Train का सपना देश काफ़ी अर्से से देख रहा है। अब गुजरात में इस सपने को हक़ीक़त में बदलने की बुनियाद रखी जा रही है। देश के लिए ये बड़ी बात है, क्योंकि आबादी का बड़ा हिस्सा आज भी एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए यातायात के इसी माध्यम पर आश्रित है। ये कहना ग़लत नहीं होगा कि आम आदमी की सवारी ट्रेन देश को जोड़ती हैं। इसीलिए सिनेमा में भी ट्रेन अक्सर अहम किरदार में नज़र आ जाती है।
अक्षय कुमार की सुपर हिट फ़िल्म 'टॉयलेट- एक प्रेम कथा' वैसे तो खुले में शौच के ख़िलाफ़ ज़रूरी संदेश देती है, लेकिन कहानी में ट्विस्ट लाने का काम ट्रेन ही करती है। आपको याद होगा वो सीन, जब अक्षय रोज़ सुबह अपनी पत्नी भूमि पेडनेकर को शौच के लिए गांव के पास रुकी ट्रेन में लेकर जाते हैं, मगर एक दिन जब भूमि ट्रेन से नहीं निकल पातीं, तो वो अक्षय को छोड़कर चली जाती हैं और फिर शुरू होती अक्षय की घर में ही शौचालय बनवाने के लिए जंग।
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'जग्गा जासूस' की कहानी में भी ट्रेन के रोल की अहमियत को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। फ़िल्म में जग्गा को गोद लेने वाले टूटी-फूटी की उनसे मुलाक़ात ट्रेन के ज़रिए ही होती है। वहीं सेकंड हाफ़ में एक बेहद अहम सीन ट्रेन पर फ़िल्माया गया। रोहित शेट्टी की फ़िल्म 'चेन्नई एक्सप्रेस' की कहानी भी रेल की पटरियों पर ही दौड़ी। इस फ़िल्म में शाह रुख़ ख़ान और दीपिका पादुकोण के किरदारों की पहली मुलाक़ात ट्रेन में होती है, जो शाह रुख़ के किरदार के लिए लाइफ़ चेंजिंग एक्सपीरिएंस बन जाता है।
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वैसे शाह रुख़ के फ़िल्मी करियर में ट्रेन की भूमिका बेहद ख़ास रही है। उनकी क्लासिक फ़िल्म 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' का क्लाइमेक्स सीन कल्ट बन चुका है, जिसमें शाह रुख़ धीमे-धीमे चलती ट्रेन के दरवाज़े पर खड़े हैं और काजोल दौड़ते हुए आती हैं, उनके साथ जाने के लिए। ये सीन बाद में कई फ़िल्मों में सांकेतिक तौर पर इस्तेमाल किया गया है।
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‘दिल से...’ का छैयां छैंया गाना आप कैसे भूल सकते हैं, जो ट्रेन के टॉप पर फ़िल्माया गया था। इस गाने में मलाइका अरोरा शाह रुख़ के साथ थिरकते हुए नज़र आयी थीं। फ़राह ख़ान की फ़िल्म 'तीस मार ख़ान' में भी ट्रेन ने अहम रोल निभाया था। फ़िल्म में अक्षय कुमार एक फ़र्ज़ी फ़िल्ममेकर बनकर शूटिंग के बहाने ट्रेन में लदे ख़ज़ाने की साज़िश करते हैं। फ़िल्म में कटरीना कैफ़ फ़ीमेल लीड रोल में थीं।
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इम्तियाज़ अली निर्देशित 'जब वी मेट' की कहानी ही ट्रेन के साथ शुरू होती है, जब करीना कपूर का किरदार छूटती हुई ट्रेन को दौड़कर पकड़ता है। इस यात्रा में उन्हें शाहिद कपूर मिलते हैं और फिर शुरू होता है रोमांस और इमोशंस का मज़ेदार सफ़र। इन फ़िल्मों के अलावा 'गुंड़े', 'भाग मिल्खा भाग' और 'गदर- एक प्रेम कथा', कच्चे धागे जैसी तमाम फ़िल्मों में कभी एक्शन तो कभी इमोशंस को दिखाने के लिए ट्रेन का इस्तेमाल किया गया है।
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वैसे ट्रेन पर बनी सबसे यादगार फ़िल्म 'द बर्निंग ट्रेन' है, जिसकी पूरी कहानी ही एक तेज़ रफ़्तार ट्रेन की शुरुआत पर आधारित थी। अस्सी के दशक में आयी फ़िल्म को रवि चोपड़ा ने डायरेक्ट किया था। फ़िल्म में धर्मेंद्र, विनोद खन्ना, विनोद मेहरा और डैनी डेंग्ज़ोंग्पा ने लीड रोल्स निभाये थे।
हिंदी सिनेमा की कल्ट क्लासिक फ़िल्म 'शोले' में ट्रेन वाला आइकॉनिक सीन कोई कैसे भूल सकता है। गब्बर सिंह के आदमियों से बचने के लिए जब वीरू एक मालगाड़ी को बुलेट ट्रेन बना देता है। रेल की पटरियों पर रखे लट्ठों को तोड़कर दौड़ती रेलगाड़ी का सीन आज भी रोमांच पैदा कर देता है। ज़ाहिर है देश में बुलेट ट्रेन शुरू होने के बाद फ़िल्मों की कहानियां भी बदलेंगी और कुछ साल बाद सिनेमा में साधारण ट्रेन की जगह पटरियों पर बुलेट ट्रेन दौड़ती दिखेगी।