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    अजब-गजब टाइटल का आया जमाना, तीन से सीधा 30 अक्षरों के कैसे हो गए फिल्मों के नाम?

    Movies Title हिंदी सिनेमा का इतिहास काफी गहरा है और अब इसकी रूपरेखा पूरी तरह से बदल गई है। खासतौर पर मूवीज के टाइटल अब पहले से काफी बड़े और अतरंगी होने लगे हैं। आइए इस लेख में जानते हैं कि समय के साथ कैसे फिल्मों के नाम भी बदल गए।

    By Ashish Rajendra Edited By: Ashish Rajendra Updated: Wed, 02 Jul 2025 03:40 PM (IST)
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    फिल्मों के नए अतरंगी टाइटल (फोटो क्रेडिट- जागरण)

    एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। 100 से ज्यादा का इतिहास हिंदी सिनेमा अपने आप में समेटा हुआ है। ब्लैक एंड व्हाइट से कलर फिल्मों जैसे कई अहम ट्रांंजिशन बॉलीवुड इंडस्ट्री में देखने को मिले हैं। लेकिन सबके बड़ा बदलाव जो आया है, वो है मूवीज के अतरंगी टाइटल्स। एक जमाने में छोटे और कैची फिल्मों के नाम अब बड़े और अनोखे होने लगे हैं। 

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    इन अजब-गजब टाइटल्स की थ्योरी का मतलब क्या है और पहले से अब इनमें कितना ज्यादा अंतर आया है। इस मामले को इस लेख में में आइए विस्तार से समझते हैं। 

    तीन से 30 अक्षरों के टाइटल...

    दशक दर दशक हिंदी फिल्मों के टाइटल्स में परिवर्तन होता हुआ नजर आता है। जहां 1950 में मुगल-ए-आजम, दो बीघा जमीन और नया दौर जैसे मूवीज के नाम पहचान में आए थे। वहीं 60 और 70 के दशक में ये थोडे़ और छोटे होने लगे, उदाहरण के लिए गाइड, शोले, जंजीर, और दीवार का जैसी फिल्मों के टाइटल का जिक्र किया जा सकता है।

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    फोटो क्रेडिट- जागरण

    फिर आता है 1980 का दशक यहां एक शब्द की जगह तीन शब्दों में मूवीज के नाम रखे जाने लगे, जैसे- नदिया के पार, जाने भी दो यारों और एक डॉक्टर की मौत। हालांकि, 90 के दशक में इन सभी तरह के मेल के टाइटल्स देखने को मिले थे।

    फोटो क्रेडिट- जागरण

    लेकिन मौजूदा समय में टाइटल्स की काया पलट पूरी तरह से हो गई है। एक जमाने में जहां तीन अक्षर मे फिल्मों के नाम सिमट जाते थे वो अब तीस अक्षरों में पहुंच गए, क्योंकि मेकर्स इन्हें यूनिक बनाना चाहते हैं। जिनका अंदाजा आप नए जमाने की इन मूवीज के जरिए लगा सकते हैं-

    • राम प्रसाद की तेहरवीं

    • टॉयलेट एक प्रेम कथा

    • सोनू के टीटू की स्वीटी

    • तू झूठी मैं मक्कार

    • तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया

    टाइटल पर नहीं दिया जा रहा है जोर

    पुराने समय में फिल्मों की कहानी और कास्ट के साथ टाइटल पर भी पूरा जोर दिया जाता था। मेकर्स की सोच हुआ करती थी कि छोटा और कैची टाइटल ऑडियंस की जुबान पर जाएगा। जैसे मर्द, रोटी, कुली और हीरो नंबर जैसे कई नाम ऐसे थे, जिन्हें आज भी सिनेप्रेमी ध्यान में रखते हैं। 

    फोटो क्रेडिट- एक्स

    लेकिन अब टाइटल ऐसे हो गए हैं, जिन्हें आसानी से बोलने में भी फैंस को दिक्कत होती है। इसका अंदाजा आपको कार्तिक आर्यन की आने वाली फिल्म 'तू मेरी मैं तेरा मैं तेरा तू मेरी' और वरुण धवन की 'सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी' जैसे बड़े और अजीबोगरीब नाम से लगा सकते हैं। कुल मिलाकर कहा जाए तो अब टाइटल पर उतना फोकस नहीं किया जा रहा है। 

    विदेशों में बदल जाते हैं फिल्मों के नाम

    हैरान करने वाला तथ्य ये है कि जब भी कोई हिंदी फिल्म विदेशों में रिलीज की जाती है तो उसका टाइटल पूरा तरह से बदल जाता है। इसका अंदाजा आप देश के हिसाब से इन मूवीज के बदले हुए नाम से लगा सकते हैं-

    • सीता और गीता: सीता और गीता: द अर्थक्वेक सिस्टर्स (पेरू)

    • दीवार: आई विल डाई फॉर मम्मा! (अमेरिका)

    • टॉयलेट: एक प्रेम कथा: टॉयलेट हीरो (चीन), नो टॉयलेट नो ब्राइड (जर्मनी)

    • बजरंगी भाईजान: लिटिल लोलिता के मंकी गॉड अंकल (चीन)

    • दंगल: लेट्स रेसल, डैड (चीन)

    इस तरह से ओवरसीज रिलीज के लिए फिल्मों को अलग तरह के टाइटल के साथ पेश किया जाता है। बता दें कि राकेश रोशन वो फिल्ममेकर हैं, जिनकी फिल्मों के नाम ज्यादातर क शब्द से शुरू होते हैं, जैसे- करण अर्जुन, कोयला, कहो न प्यार है, कोई मिल गया और कृष।

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