Birthday Special: 'अभिनय को लिबास की तरह पहनती हैं रेखा' - गुलज़ार
रेखा के जन्मदिन पर यासिर ने कुछ ऐसी बातों को भी साझा किया है जो रेखा के व्यक्तित्व के कुछ और दिलचस्प पहलुओं को सामने लाती हैं।

अनुप्रिया वर्मा, मुंबई। पिछले साल लांच हुई यासिर उस्मान की क़िताब 'रेखा- द अनटोल्ड स्टोरी' को लोगों ने बहुत पढ़ा और बहुत पसंद भी किया।अभिनेत्री रेखा की ज़िंदगी के वैसे कई अनछुए पहलुओं से यह क़िताब हमें रू-ब-रू कराती हैं।
यासिर बताते हैं कि उन्होंने रेखा पर क़िताब लिखने का निर्णय इसलिए नहीं लिया था कि रेखा की ज़िंदगी काफी मिस्टीरियस रही है, बल्कि उन्हें एक ऐसी लड़की की ज़िंदगी की कहानी ने आकर्षित किया, जो सिर्फ 14 साल की उम्र में हिंदी सिनेमा में आती है और ना सिर्फ कमर्शियल बल्कि आर्ट फिल्मों में भी अपनी पहचान स्थापित कर लेती है।
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यासिर मानते हैं कि अब भी उनकी क़िताब में रेखा से जुड़े कंट्रोवर्शियल चैप्टर को ही लोग लगातार हाइलाइट करते हैं, जबकि उनकी ज़िंदगी की कई ऐसी बातें भी इस क़िताब में लिखी गयी हैं, जो उल्लेखनीय हैं। रेखा के जन्मदिन पर यासिर ने कुछ ऐसी बातों को भी साझा किया है जो रेखा के व्यक्तित्व के कुछ और दिलचस्प पहलुओं को सामने लाती हैं।
जब गुलज़ार ने पूछा, कहां ग़ायब हो गयी थीं आप:
गुलज़ार साहब ने रेखा के बारे में कई बातें यासिर से शेयर की हैं। उन्होंने यासिर को बताया कि उन दिनों फ़िल्म 'इजाज़त' की शूटिंग चल रही थी। मैं वक़्त का पाबंद था। सारी तैयारियां हो चुकी थीं, लेकिन पता चला कि अभी रेखा आई नहीं हैं। मुझे गुस्सा भी आया। रेखा तीन-चार घंटे बाद आयीं तो मैंने कहा कि पहले शूटिंग करता हूं, फिर बात करूंगा। पैकअप के बाद मैंने पूछा कि आप कहां ग़ायब हो गयी थीं तो रेखा ने मुझे बताया कि वह मेरी फ़िल्म 'आंधी' देखने गयी थीं। रेखा ने गुलज़ार से आगे कहा कि मुझे लगा कि एक अभिनेत्री होने के नाते मुझे आपकी पिछली फ़िल्म देख लेनी चाहिए। कहीं आप कुछ पूछ लेतेे तो।
गुलज़ार साहब ने उस बात पर ख़ूब ठहाके लगाते हुए कहा कि कहीं आप यह देखने तो नहीं गयी थीं कि मैं फ़िल्म बनाना जानता भी हूं कि नहीं। गुलज़ार आगे कहते हैं कि रेखा अभिनय को लिबास के रूप में पहनती हैं। उनके अभिनय की रेंज आप फ़िल्म 'इजाज़त' से 'ख़ूबसूरत' तक में देखिये। किरदार में कोई समानता नहीं, लेकिन एक ही अभिनेत्री ने उसे निभाया। रेखा की चाल में डिफ़रेंस नजर आ जायेगा आपको।
...और मुज़फ़्फ़र अली को मिली उमराव जान:
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यासिर ने यह सवाल फ़िल्म 'उमराव जान' के निर्देशक मुज़फ़्फ़र अली से पूछा, कि उन्होंने उमराव के लिए रेखा का चयन कैसे किया। मुज़फ़्फ़र बताते हैं- यह सच है कि पहली बार में ही मेरे ज़हन में रेखा का नाम नहीं था, चूंकि उस दौर में स्मिता पाटिल भी इस तरह के किरदार के लिए परफेक्ट मानी जाती थीं। वह काफी ज़हीन अभिनेत्री थीं। फिर शबाना भी इस किरदार को निभाने के लिए सही थीं, लेकिन मुझे एक तस्वीर मिली थी और उस तस्वीर मैं मैंने रेखा की आंखों में वह कैफ़ियत देख ली थी। उनकी आंखों में दोगुने जज़्बात और एक अकेलेपन की झलक दिख गयी थी। तभी तय कर लिया कि यही होगी उमराव।
यह भी एक आश्चर्य से कम नहीं था कि चेन्नई से आई लड़की हिंदी ठीक से नहीं बोल पाती, लेकिन इस फ़िल्म के लिए बाकायदा लख़नऊ के टीचर से उर्दू की तालीम लेती है और जब वह स्क्रीन पर संवादों अदायगी करती है तो यह विश्वास करना कठिन हो जाता है कि वह हिंदी भी ठीक से नहीं जानती। रेखा उसी 'परिघटना' का नाम है।
रटना तो कोई रेखा से सीखे:

यासिर बताते हैं कि फ़िल्म 'सिलसिला' के लेखक सागर सरहदी ने उन्हें रेखा के बारे में एक ख़ास बात यह बताई कि रेखा डायलॉग रटने में उस्ताद थीं। उन्हें सब रटंतू तोता बुलाते थे। उन्हें किसी भी भाषा का संवाद दे दो। बस रोमन में लिखा हो तो वह जापानीज़ स्क्रिप्ट भी पूरी की पूरी रट जाती थीं।
श्याम बेनगल क्यों हो जाते थे हैरान:

श्याम बेनेगल हमेशा यह सोच कर हैरान रहते थे कि आख़िर शूटिंग के समय रेखा हमेशा फुसफुसाकर अपने डायलॉग क्यों बोलती हैं। एक बार पूछने पर उन्होंने कहा कि डबिंग में संभाल लूगी। दरअसल, श्याम बताते हैं कि डबिंग में उनका उत्साह और एनर्जी देखते बनता थी। वह उसी अंदाज़, उसी रेंज में डबिंग करती थीं जो केरेक्टर की डिमांड होती थी। श्याम बेनेगल के साथ रेखा ने 'कलयुग' और 'ज़ुबैदा' जैसी फ़िल्मों में काम किया है।

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