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    Dada Saheb Phalke Award For Amitabh Bachchan: महज़ 5 हज़ार रुपये में साइन की थी पहली फ़िल्म, जानिए बिग बी के शुरुआती संघर्ष की कहानी

    Dada Saheb Phalke Award To Amitabh Bachchan अमिताभ को सात हिंदुस्तानी मिली भी नहीं थी उन्होंने नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया था। जब पूछा गया अगर यह फ़िल्म नहीं मिलती तो क्या होता।

    By Manoj VashisthEdited By: Updated: Wed, 25 Sep 2019 10:45 AM (IST)
    Dada Saheb Phalke Award For Amitabh Bachchan: महज़ 5 हज़ार रुपये में साइन की थी पहली फ़िल्म, जानिए बिग बी के शुरुआती संघर्ष की कहानी

    नई दिल्ली, जेएनएन। हिंदी सिनेमा के लिविंग लीजेंड अमिताभ बच्चन को भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े अवॉर्ड दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड के लिए चुना गया है। बिग बी के साथ उनके फैंस के लिए भी यह एक जश्न का मौक़ा है। हिंदी सिनेमा में अमिताभ का जो योगदान है, उसे देखते हुए वो हर सम्मान के हक़दार हैं। बेस्ट एक्टर के लिए 4 बार नेशनल अवॉर्ड जीत चुके अमिताभ बच्चन ने अपने अभिनय से कई पीढ़ियों को प्रभावित और प्रेरित किया है।

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    इसी साल 15 फरवरी को उन्होंने सिनेमा की दुनिया में 5 दशक का सफ़र पूरा किया था। अमिताभ ने इसी तारीख़ को पहली फ़िल्म सात हिंदुस्तानी साइन की थी। दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड के एलान के मौक़े पर आइए जानते हैं कि बिग बी को कैसी मिली थी उनके करियर की पहली फ़िल्म, जिसने भारतीय सिनेमा को ऐसा नायक दिया, जिसकी अमिट आभा आज भी उसी नये सितारों को प्रेरित कर रही है।

    पहली फ़िल्म में चुना मुस्लिम किरदार

    अमिताभ को 'सात हिंदुस्तानी' कैसे मिली, इसके पीछे भी दिलचस्प कहानी है, जिसे ख्वाज़ा अहमद अब्बास की एक किताब में विस्तार से दिया गया है। 'सात हिंदुस्तानी' की कहानी गोवा मुक्ति आंदोलन से निकली थी, जिसके लिए अब्बास को सात एक्टर्स की ज़रूरत थी। फ़िल्मी दुनिया के रंगीन सपने देखने वाले अमिताभ को जब इस फ़िल्म के बारे में पता चला तो वो कोलकाता में अपनी 1600 रुपए महीने की नौकरी छोड़कर मुंबई आ गये थे। अब्बास ने अमिताभ को दो किरदारों की च्वाइस दी थी- एक पंजाबी और दूसरा मुस्लिम। अमिताभ ने मुस्लिम किरदार अनवर अली चुना, क्योंकि इस किरदार में अभिनय की कई परतें थीं।

    नौकरी छोड़कर सात हिंदुस्तानी साइन की

    ख़ास बात ये है कि अमिताभ को 'सात हिंदुस्तानी' मिली भी नहीं थी, मगर उन्होंने नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया था। जब अब्बास ने उनसे कहा कि अगर उन्हें ये फ़िल्म ना मिलती तो क्या होता। इस पर बिग बी ने कहा था कि कुछ जोख़िम तो उठाने पड़ते हैं। अमिताभ ने जिस अंदाज़ में ये बोला, वो अब्बास के दिल को छू गया। इस फ़िल्म के लिए अमिताभ को पांच हज़ार रूपए की पेशकश की गयी थी, जो उस वक़्त उनकी नौकरी से होने वाली आय के मुक़ाबले काफ़ी कम था। मगर, सात हिंदुस्तानी उनके लिए सिर्फ़ एक फ़िल्म नहीं थी, बल्कि अपने सपने को पूरा करने की तरफ़ पहला क़दम था।

    ख्वाज़ा अहमद अब्बास अमिताभ के पिता डॉ. हरिवंश राय बच्चन को अच्छी तरह जानते थे, लेकिन अमिताभ ने इसका ज़िक्र तब तक नहीं किया, जब तक बताना ज़रूरी नहीं हो गया। पिता का नाम पता चलते ही अब्बास ने अमिताभ को साइन करने से पहले उनके पिता की अनुमति लेने का फ़ैसला किया और ख़ुद तार भेजकर पूछा कि क्या वो अमिताभ को फ़िल्म में कास्ट कर सकते हैं। हरिवंश राय बच्चन की स्वीकृति के बाद ही अमिताभ सात हिंदुस्तानी के लिए कांट्रेक्ट साइन कर सके। सात हिंदुस्तानी 1969 में ही 7 नवंबर को ही रिलीज़ हुई थी। कमर्शियली ये फ़िल्म नहीं चली, लेकिन सिनेमा को एक ऐसा सितारा दे दिया, जिसकी रौशनी आज भी कायम है।

    पहली कामयाबी के लिए 4 साल करना पड़ा इंतज़ार

    सात हिंदुस्तानी के बाद अमिताभ बच्चन की फ़िल्मी दुनिया में एंट्री तो हो गयी, मगर पहली बड़ी कामयाबी के लिए चार साल कड़ा संघर्ष करना पड़ा। 1973 में प्रकाश मेहरा की ज़जीर रिलीज़ हुई, जिसके साथ हिंदी सिनेमा के एंग्री यंग मैन की एंट्री हुई। ज़जीर से पहले अमिताभ 11 फ़िल्में कर चुके थे, जिनमें उन्होंने मुख्य या सहायक भूमिकाएं अदा की थीं, मगर इनमें अधिकतर फ्लॉप रहीं, और जो कामयाब रहीं, उनका क्रेडिट उन्हें नहीं मिला। (Photo- Instagram)