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    हिंदी सिनेमा में आतंकवाद को मुंहतोड़ जवाब देती सच्ची कहानियों पर बनी हैं बेहतरीन फिल्में

    By Ruchi VajpayeeEdited By:
    Updated: Sat, 22 May 2021 01:20 PM (IST)

    फिल्ममेकर राम गोपाल वर्मा ने पूर्व पुलिस कमिश्नर राकेश मारिया से बात की तो उन्होंने बताया था कि जब मुंबई पर आतंकी हमला हुआ था तब वह नहा रहे थे। जब बाथ ...और पढ़ें

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    Image Source: Vikky Kaushal Official Instagram Account

    स्मिता श्रीवास्तव व प्रियंका सिंह, जेएनएन। इन दिनों इजरायली सेना के हवाई हमलों में गाजा पट्टी पर फलस्तीनी आतंकी संगठन हमास के ठिकानों को निशाना बनाया जा रहा है। आतंकवाद की समस्या से भारत समेत दुनिया के कई देश जूझ रहे हैं। हिंदी सिनेमा में आतंकवाद के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया जाता रहा है। 'रोजा', 'माचिस', 'फना', 'न्यूयार्क', 'ब्लैक फ्राइडे', 'एक था टाइगर', 'उरी- द सर्जिकल स्ट्राइक' समेत कई फिल्में हैं, जिसमें आतंकवाद से लड़ने की कहानी बयां की गई है। आतंकी घटना से जुड़ी कहानियों को बनाने के लिए निर्माता निर्देशक किस प्रकार की रिसर्च करते हैं, किन बातों का विशेष ध्यान रखना है, एक्शन डायरेक्टर और कलाकारों के समक्ष इन फिल्मों में काम करने की क्या चुनौतियां होती हैं, इन पहलुओं की पड़ताल की स्मिता श्रीवास्तव व प्रियंका सिंह ने...

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    सच्चाई सामने आनी चाहिए

    26 नवंबर, 2008 को मुंबई के होटल में हुए आतंकी हमले के दौरान होटल के स्टाफ ने जिस बहादुरी से अपने मेहमानों की जान बचाई थी उस पर फिल्म 'होटल मुंबई' आधारित थी। फिल्म में हेड शेफ का किरदार निभाने वाले अनुपम खेर का कहना है कि फिल्म एक दर्पण की तरह होती है। सच्चाई तो लोगों तक पहुंचनी ही चाहिए। 26/11 की घटना को कई साल हो गए हैं, लेकिन उन तीन दिनों में क्या हुआ था, यह हिंदु्स्तान के लोगों के लिए जानना जरूरी है। 'होटल मुंबई' फिल्म एक सामान्य व्यक्ति के आतंकवाद के खिलाफ साहस और आशाओं के बारे में थी, जिसमें होटल में काम करने वाले लोगों ने अपनी जान पर खेलकर मेहमानों को बचाया था।

    मेजर संदीप उन्नीकृष्णन पर आ रही है फिल्म 

    आगामी दिनों में तेलुगु फिल्मों के अभिनेता अदिवी शेष 26/11 के आतंकी हमलों में शहीद हुए मेजर संदीप उन्नीकृष्णन की बायोपिक 'मेजर' में संदीप का किरदार निभाते दिखेंगे। 14 फरवरी 2019 को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले में 40 जवान शहीद हो गए थे। इस हमले पर भी फिल्म बनाने की घोषणा हुई है। हमले के पीछे की कहानी अंडरवल्र्ड पर फिल्में बनाने वाले राम गोपाल वर्मा ने भी 26/11 आंतकी हमले पर फिल्म 'द अटैक्स आफ 26/11' बनाई है।

    राम गोपाल वर्मा ने कहा...

    राम गोपाल वर्मा कहते हैं कि यह आतंकी घटना थी, लेकिन फिल्ममेकर के नजरिए से इसमें मुझे फिल्म बनाने का स्कोप नजर आया। मैंने जब फिल्म बनाने से पहले मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर राकेश मारिया से बात की तो उन्होंने बताया था कि जब मुंबई पर आतंकी हमला हुआ था, तब वह नहा रहे थे। जब बाथरूम से बाहर निकले तो मोबाइल सहित घर के तीन फोन एक साथ बज रहे थे। वह खुद परेशान हो गए कि शहर में आखिर ऐसा क्या हो गया। फिल्म के नजरिए से यह सिचुएशन बहुत ही ड्रामैटिक थी। लियोपोल्ड कैफे में जब अटैक हुआ तो वहां मौजूद लोगों ने बताया कि पुलिस के पास बंदूकें नहीं थी तो वे पत्थर से आंतकियों को मारने की कोशिश कर रहे थे। यह एक अमानवीय हमला था। कुछ लोगों का मुंबई में घुसना और कुछ ऐसा करना, जिससे लोगों की लाइफ बदल जाए, उसके बारे में जानने में लोगों की दिलचस्पी होती है। जो हुआ है, वह तो लोग न्यूज के माध्यम से देखते हैं, लेकिन वह कैसे हुआ यह भी जानना चाहते हैं। मैंने फिल्म में वही दिखाया। भावनाओं का खयाल रखना होता है आतंकवाद पर आधारित फिल्म बनाते समय लेखक गहन रिसर्च करते हैं। लोकेशन की भी रेकी की जाती है।

    समुदाय की भावनाओं का भी रखते हैं खयाल

    फिल्म 'ब्लैंक' से निर्देशन में कदम रखने वाले बेहजाद खंबाटा कहते हैं कि ऐसी फिल्मों में खास खयाल रखना होता है कि किसी समुदाय की भावनाओं को आहत न करें। आतंकवाद वृहद विषय है। सिर्फ विस्फोट होना ही आतंकवाद नहीं है। आतंकवाद का स्तर भी अलग-अलग होता है। फिल्मों में बम ब्लास्ट सीन के फिल्मांकन को लेकर वह कहते हैं, 'इसमें वीएफएक्स मददगार होता है। वीएफएक्स को रियल दिखाने के लिए समय और बजट दोनों की जरूरत होती है। जहां तक हथियारों की बात है, हमें डमी मिलती हैं जो आवाज करती हैं। उसमें से बुलेट नहीं निकलती है। वह सिर्फ आवाज करती है। आधिकारिक तौर पर आप उसे शूटिंग के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।

    कहानी के मुताबिक एक्शन

    फिल्म में आतंकवाद के खिलाफ जंग में नायक दुश्मनों पर भारी पड़ता है तो दर्शक भी उत्साह में भर जाते हैं। एक्शन डायरेक्टर शाम कौशल बताते हैं कि हर फिल्म की सिचुएशन, किरदार, लोकेशन अलग होती है। एक्शन उसके मुताबिक ही

    तैयार होता है, यानी उसमें बंदूकें होंगी या विस्फोट होगा या हैंड टू हैंड फाइट। किसी भी एक्शन सीन को तैयार करते समय उसकी लंबाई, उसकी जरूरत, लोकेशन, दिन में शूट हो रहा है या रात में जैसे पहलुओं को भी देखना होता

    है। अगर रात में शूट हो रहा है तो ज्यादा समय लगता है। अगर कम लोग होते हैं तो जल्दी शूट होता है।

    फिल्म से पहले घटना के प्रभाव और दर्द को समझें

    रियलिस्टिक फिल्मों का एक्शन एक्शन के फिल्मांकन में सिनेमाई लिबर्टी लेने के सवाल पर शाम कौशल कहते हैं, 'रियलिस्टिक फिल्मों और फिक्शन फिल्मों के एक्शन में फर्क होता है। फिक्शनल कहानियों में आप लिबर्टी ले सकते हैं। फिल्म 'ब्लैक फ्राईडे' असल घटना पर आधारित थी। उसके सीक्वेंस वैसे ही थे। उसमें आप लिबर्टी नहीं ले सकते। लोगों ने उस घटना और उसके परिणामों को टीवी फुटेज व तस्वीरों में देखा होता है। 'ब्लैक फ्राइडे' के समय वीएफएक्स ज्यादा नहीं था तो बहुत सारी चुनौतियां थीं। हमारी कोशिश यही थी कि जो लोग उस घटना के समय वहां मौजूद थे उन्हें वह दृश्य वैसा ही लगे। जिन्होंने घटना नहीं देखी वे उसे देखकर उसकी गंभीरता, प्रभाव और दर्द को समझें।

    फिल्म 'काबुल एक्सप्रेस' में थोड़ा लिबर्टी लेने की गुंजाइश थी। उसकी शूटिंग हमने अफगानिस्तान में की थी। उस समय तालिबान का राज था, वहां की चुनौतियां अलग थीं। वहां पर 50-60 का यूनिट होता था। लगभग उतने ही सुरक्षा कर्मी भी हमारे साथ होते थे। फिर भी अनहोनी का डर रहता था। इसी तरह फिल्म 'फैंटम' की शूटिंग लेबनान में की थी, तब वहां गृह युद्ध छिड़ा हुआ था। कई बार शूटिंग के दौरान चुनौतियां होती हैं, लेकिन पर्दे पर आपकी मेहनत और ईमानदारी झलकती है। आतंकी को सजा जरूरी आतंकवाद पर बनी फिल्मों में हीरो भले कितना ही बड़ा क्यों न हो, लेकिन अगर वह आतंकी के किरदार में है तो मेकर्स की जिम्मेदारी सही उदाहरण पेश करने की होती है।

    अमिर खान और काजोल अभिनीत फिल्म 'फना' के निर्देशक कुणाल कोहली कहते हैं कि आतंकवाद के साथ 'फना' फिल्म में रोमांटिक एंगल रखने की वजह थी कि हम इस फिल्म को बहुत गंभीर नहीं बनाना चाहते थे। कहानी को बैलेंस रखना था, ताकि वैश्विक दर्शक भी इससे जुड़ें। आतंकवाद की वजह से इस कहानी का अंत दुखद था। आमिर खान का किरदार आतंकी था। इसलिए उनके किरदार में कई परतें थीं। वह जब रेकी करने के लिए नई दिल्ली आता है तो भेष बदलकर आता है। उसका शायराना अंदाज ओरिजनल स्क्रिप्ट में नहीं था। हमने उनके किरदार को शायराना बनाया। आमिर फिल्म के हीरो थे, लेकिन उनके आतंकी किरदार को फिल्म में हीरो दिखाकर उसे बचाया नहीं जा सकता था। हर इंसान में अच्छाई और बुराई दोनों ही होती है। इंसान जो फैसले लेता है, उसके मुताबिक उसका जीवन चलता है। आमिर का किरदार एक तरफ आतंकवाद फैलाने के लिए बंदूक उठाता है, वहीं दूसरी तरफ जिससे उसे प्यार होता है, उसकी आंखों का इलाज भी करवाता है, लेकिन आतंकी होने के नाते उसे सजा मिलनी ही थी। आमिर ने यह फिल्म इसलिए की ही थी, क्योंकि उन्हें यह पसंद आया था कि अंत में उसका प्यार ही उसपर बंदूक तान देता है।

    कलाकारों को लेनी पड़ती है ट्रेनिंग

    कलाकार किरदार को विश्वसनीय बनाने के लिए कड़ी ट्रेनिंग करते हैं। विक्की कौशल ने फिल्म 'उरी-द सर्जिकल स्ट्राइक' के दौरान तीन महीने तक बूट कैंप ट्रेनिंग की थी। विक्की के अनुसार, ट्रेनिंग की शुरुआत ही ग्राउंड के 25 राउंड लगाकर पूरी होती थी। सैन्य अधिकारी की बाडी लैंग्वेज, लहजा और टीम की एकजुटता जैसे गुण हमें सीखने थे। सिख रेजीमेंट से ट्रेनिंग ली थी। उन्होंने हमें स्लिदरिंग सिखाई। स्लिदरिंग में आप रस्सी के जरिए हेलिकाप्टर से नीचे उतरते हैं। फिल्म में स्टंटमैन का इस्तेमाल नहीं हुआ है। हम 20 एक्टर्स ही हेलिकाप्टर से रस्सी के जरिए नीचे उतरे थे। 30 फीट की ऊंचाई से हमने रस्सी

    से नीचे कूदना सीखा था। मैं जब कभी स्पेशल फोर्सेस के कमांडो से मिलता तो कहता था कि सर मुझे आपकी जिंदगी को पर्दे पर उतारने में इतनी मेहनत लग रही है, आप उस जिंदगी को जीते हैं। सलाम है आपको।

    डिजिटल प्लेटफार्म पर भी छाई आतंकवाद आधारित कहानियां

    'क्रैकडाउन' वेब सीरीज भारतीय खुफिया एजेंसी रा की आंतरिक राजनीति और आतंकियों के मंसूबों को नाकाम करने वाले तेजतर्रार अधिकारियों की काल्पनिक कहानी है। साकिब सलेम शो में मुख्य किरदार में हैं। 'स्टेट आफ सीज 26/11' यह वेबसीरीज संदीप उन्नीथन की किताब 'ब्लैक टोरनेडो- द थ्री सीज आफ मुंबई 26/11' पर आधारित है। 'द फैमिलीमैन' में मनोज बाजपेयी सीक्रेट एजेंट बने हैं। वह ऐसे शख्स की तलाश में हैं, जो 26/11 से बड़े आतंकी हमले को अंजाम देने वाला है। 'द फैमिलीमैन 2' का ट्रेलर हाल ही में जारी किया गया है। 'स्पेशल आप्स' वेब सीरीज में के के मेनन, करण टैकर जैसे कई कलाकारों ने काम किया था। शो में संसद पर हुए आतंकी हमले का जिक्र है। इसके दूसरे सीजन की घोषणा भी हो गई है। 'अवरोध- द सीज विदइन' उरी हमले के बाद भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान में किए गए सर्जिकल स्ट्राइक पर आधारित है। शो में अमित साध, दर्शन कुमार हैं।