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    फिल्म उन्माद एकता और भाईचारे की कहानी है: इम्तियाज अहमद

    इम्तियाज बताते हैं कि, यह फिल्म आपसी भाईचारे को दर्शाती है और इस समय बिगड़ते हुए समाज का आइना किस तरह से हम साफ कर सकते हैं उसकी बात कहती है।

    By Rahul soniEdited By: Updated: Fri, 10 Aug 2018 03:07 PM (IST)
    फिल्म उन्माद एकता और भाईचारे की कहानी है: इम्तियाज अहमद

    मुंबई। उन्माद का मतलब होता है एक सनक या पागलपन जो कुछ भी गलत करने के लिए प्रेरित करता है। आज के समय में देखें तो मॉब लिंचिंग या फिर लव जेहाद जैसी समस्याएं सामने हैं जो समाज में परेशानी बढ़ा रही हैं। इसलिए आपसी सोहार्द और भाईचारे को लेकर या यूं कहे कि हिंदू मुस्लिम एकता को लेकर यह फिल्म बुनी गई है। यह कहना है फिल्म उन्माद में अहम भूमिका निभा रहे इम्तियाज अहमद का।

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    जागरण डॉट कॉम से खास बातचीत में इम्तियाज ने फिल्म के बारे में जानकारी दी। फिल्म उन्मान 10 अगस्त को रिलीज हो चुकी है। इम्तियाज ने फिल्म को देखने के बाद किसी एक वर्ग की नाराजगी होने के सवाल पर कहा कि, मुझे नहीं लगता कि कोई भी वर्ग नाराज होगा। जब वे इस फिल्म को देखेंगे तो समझ पाएंगे कि एक बड़ा तबका अमन, चैन और शांति चाहता है। इसमें एेसी कोई बात नहीं है कि एक तबका नाराज होगा या एक तबका खुश होगा। यह फिल्म सबको खुश करेगी। फिल्म का म्यूजिक देने वाले इश्तियाक ने बताया कि, फिल्म में बिल्कुल भी पक्षपात नहीं दिखाया गया है। इसको एेसे समझा जा सकता है कि, अगर एक बच्चा भूखा है और भूख से तड़प रहा है तो इंसानियत के नाते हर किसी का दिल पसीज जाएगा और वो उसकी मदद करेगा। इसमें किसी भी प्रकार से धर्म बीच में नहीं आता। इम्तियाज ने कहानी के बारे में बताया कि, यह एक पंडित और मुसलमान में दोस्ती की कहानी है। यह एेसे दोस्त हैं जो समय-समय पर एक दूसरे की मदद करते हैं। मेरा किरदार कल्लू कसाई का है जो कि इस फिल्म का सेंट्रल कैरेक्टर है। कल्लू एक गांव में रहता है जिसका दोस्त शंभू है। कल्लू के पास पैसो की कमी है और स्थित इतनी खराब है कि खाने के पैसे भी नहीं है। एेसे समय में कल्लू की पत्नी शंभू से मदद लेने के लिए कल्लू को कहती है। लेकिन कल्लू का जमीर गवार नहीं करता पर मजबूरन वह मदद मांगता है। शंभू की पत्नी कल्लू को उनका एक बैल देती है और कहती है कि इसे बेच कर जो भी पैसे आए वो रख लेना और बच जाए तो दे देना। शंभू के पत्नी उस बैल को दूसरे दिन देने का कहती है क्योंकि उसके यहां पूजा रहती है जिसमें ढोलक बजाने के लिए वो कल्लू को कहती है। कल्लू खुशी-शुखी पूजा में शामिल होता है जैसा कि वो हमेशा करता आया है। यही से असल कहानी की शुरूआत होती है। क्योंकि जब कल्लू सुबह-सुबह बैल बेेंचने के लिए निकलता है तो गांव के उन्मादी लोग उसे परेशान करने की वजह ढूंढने लगते हैं। एेसे में पुलिस आती है और फिर सियासी फायदे के लिए कुछ लोग इसे मुद्दा बना लेते हैं। बात अदालत तक पहुंच जाती है। बाकी कलाकारों की बात करें तो इस फिल्म में शंभू का किरदार ज्ञानप्रकाश ने, शंकर का अमित कुंडेल ने निभाया है।

    फिल्म में संदीप शर्मा, निकिता विजयवर्गीय, नीरज और मयंक की भी अहम भूमिका है। फिल्म का निर्देशन शाहिद कबीर ने किया है।

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    इम्तियाज बताते हैं कि, यह फिल्म आपसी भाईचारे को दर्शाती है और इस समय बिगड़ते हुए समाज का आइना किस तरह से हम साफ कर सकते हैं उसकी बात कहती है। इम्तियाज ने आगे बताया कि, मुझे दिलीप कुमार की बात याद आती है कि वे कहा करते थे कि, कलाकार में कुछ न कुछ तो सामाजिक सरोकार होना ही चाहिए। इससे उसकी कला और जीवन को गरहाई मिलती है।

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