10th Jagran Film Festival: मैं फॉर्मूला फिल्में नहीं बनाती - अपर्णा सेन
10th Jagran Film Festival अपर्णा सेन ने कहा कि वे फॉर्मूला फिल्में नहीं बनाती अगर कोशिश करती भी हैं तो वह बीच में ही रुक जाती हैं।
प्रियंका दुबे मेहता, नई दिल्ली। जागरण फिल्म फेस्टिवल के दूसरे दिन फिल्मों पर चर्चा के सत्र में हिस्सा लेने पहुंची बांग्ला फिल्म अभिनेत्री व निर्देशक अपर्णा सेन ने बतौर निर्देशक अब तक सिर्फ 13 फिल्में ही बनाई हैं। इस बाबत उनका कहना है कि इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि वह फिल्में केवल बनाने के लिए नहीं, बल्कि समाज व देश तक संदेश पहुंचाने के लिए बनाती हैं।
उन्होंने कहा कि वे फॉर्मूला फिल्में नहीं बनाती, अगर कोशिश करती भी हैं तो वह बीच में ही रुक जाती है। फिल्में बनाने के लिए उनके दिमाग में कोई सशक्तक विषय यो स्टोरी आइडिया आना चाहिए। गुरुवार को जेएफएफ में उनकी फिल्म ‘घरे बायरे आज’का प्रीमियर हुआ था। यह फिल्मए रवींद्रनाथ टैगोर की अमर कृति घरे बायरे (घर और दुनिया) पर बनी है, जो गुरुदेव ने 1916 में लिखी थी। इस कृति पर सबसे पहले महान फिल्मकार सत्यजीत रे ने 1984 में इसी नाम से एक फिल्म बनाई थी। अर्पणा ने बताया कि इस फिल्म में उन्होंहने गौरी लंकेश के किरदार का पुट दिया गया है क्यों कि उस घटना से वह स्तेब्धक रह गईं थी। साथ ही इसके माध्यम से उन्होंने सत्यजीत रे को ट्रिब्यूट दिया है। उन्होंने कहा कि सत्यजीत रे उनके पिता के दोस्त थे इसलिए उन्हें काका कहती थी और मजाक करती थी कि वह उन्हें स्टेपनी के रूप में फिल्मों में इस्तेेमाल करते थे।
उन्होंने कहा कि फिल्म बनाने की कला और बारीकियां उन्होंने उनसे ही सीखी हैं। एक प्रश्न के जवाब में कहा कि वह पार्टी पॉलिटिक्स में विश्वास नहीं रखती बल्कि मुद्दों को लेकर सरकार की सराहना या आलोचना करती हैं। उन्होंने आज के परिदृश्य के बारे में बात करते हुए कहा कि राष्ट्रीयता व देशभक्ति में बहुत अंतर है और देशवासियों को इस अंतर को समझना होगा। राष्ट्रीयता में लोग पक्षपातपूर्ण हो जाते हैं।
उन्होंने आगे कहा कि उन्हें फिल्मों के कंटेंट को लेकर परेशानियां झेलनी पड़ी। इस दौरान उन्होंने कहा कि आज के दौर में फिल्मों को लेकर दर्शकों की पसंद बदल रही है और समानांतर सिनेमा और कमर्शियल सिनेमा के बीच की रेखा धुंधली पड़ रही है लेकिन ग्रामीण व शहरी सिनेमा के बीच की रेखा गहराती जा रही है। अपर्णा का कहना था कि वह बड़े सितारों को कास्ट नहीं करती बल्कि नए चेहरों को मौका देती हैं। इसकी वजह यह है कि वह किरदार में फिट होने वाले चेहरे तलाशती हैं।
अपर्णा सेन कहती हैं कि ‘क्लासिक फिल्मों का रीमेक होना चाहिए। रीमेक के जरिए उन फिल्मों की सशक्त कहानियों को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में ढालकर आज की पीढ़ी को दिखाया जाना चाहिए। क्लासिक फिल्में बहुत मजबूत स्टोरी लाइन देती हैं।'
महिला होने के नाते मांगी मदद
अपर्णा ने कहा मेरे लिए फेमिनिस्ट होने के मायने अलग हैं। मुझे महिला होने के नाते कभी चुनौती नहीं पेश आई। मेरे सामने चुनौतियां आई तो केवल कंटेंट को लेकर। इंडस्ट्री में महिला होने के फायदे ज्यादा हुए। मैंने कई बार महिला होने का हवाला देते हुए मदद मांगी और मिल गई।
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