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    फिल्म संगीत के अमर गायक मुकेश, जिनके स्वर में सजते थे शब्द

    By Jagran NewsEdited By: Vivek Bhatnagar
    Updated: Sat, 05 Nov 2022 09:24 PM (IST)

    यह पुस्तक गायक मुकेश की जीवनी है। मुकेश के साथ जिन-जिन गीतकारों संगीतकारों नायक-नायिकाओं ने काम किया है लेखक ने उनसे मिलकर जानकारी जुटाने का बहुत ही श्रमसाध्य कार्य किया है तभी यह पुस्तक इतनी रोचक बन पड़ी है।

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    मुकेश भारत के पहले ऐसे गायक हैं, जिनके सुमधुर स्वर ने विश्व पटल पर गीत-संगीत की सुरीली अलख जगाई थी।

     राजू मिश्र। एक पुस्तक विमोचन समारोह में फिल्म गीतकार योगेश से मुलाकात हुई। उनका मानना था कि उनका लिखा गीत कहीं दूर जब दिन ढल जाए, मुकेश का गाया सर्वश्रेष्ठ गीत है। जबकि मेरा मानना था कि रामचरितमानस का गायन उनकी अब तक की सबसे अनूठी और सशक्त पेशकश है। मैंने उनसे कहा कि उनके स्वर में मानस सुनते हुए लगता है मानो मुकेश तो निमित्त हैं, गायन तो प्रभु ही कर रहे हैं। इतना सुमधुर और सरस कि एक बार सुनने पर किसी का भी जी नहीं भरता और वह इसे बार-बार सुनना चाहता है। अंतत: उन्होंने मेरी बात पर सहमति व्यक्त कर दी।

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    सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के प्रचार विभाग ने जिन श्रेष्ठ कृतियों का प्रकाशन किया है, उनमें से एक है- भारत के प्रथम वैश्विक गायक मुकेश। राजीव श्रीवास्तव ने इसे लिखा भी बहुत मन से है। 15 अध्यायों वाली इस किताब की छपाई जितनी अच्छी है, कागज भी उतना ही बेहतरीन है। इन अध्यायों में कुछ ऐसे किस्से भी शामिल हैं, जिन्हें एक बार में पूरा पढ़े बिना रहा नहीं जा सकता। ये किस्से बताने के लिए काफी हैं कि मुकेश अपने काम के प्रति किस कदर निष्ठावान और समर्पित व्यक्ति थे।

    किताब के आमुख में संगीतकार खय्याम लिखते हैं कि मुकेश भाई बड़े समर्पण से गाने का अभ्यास करते थे, एक-एक शब्द का उच्चारण सफाई से करते थे, किस शब्द पर कितना वजन देना है, उसकी फील को कैसे बाहर लाना है, यह सब वह इतनी तन्मयता से करते थे मानो उन्हें गीत, नज्म, गजल या शायरी के बारे में सब कुछ पहले से ही पता हो। उन्हें शायरी की समझ थी। वह जानते थे कि किसी गीत को तरन्नुम में गाते हुए कैसे उसके साथ पेश आना है। मैं या कोई भी दूसरा संगीतकार जब उन्हें धुन बता देता था तो वह अपने हारमोनियम पर पूरी तरह डूबकर उसका रियाज करने लग जाते थे।

    किताब के लेखक राजीव श्रीवास्तव ने फिल्म संगीत में पीएचडी की है। यह अभी तक किया गया एकमात्र शोध है, जो फिल्मी गायकी के इतिहास, उसके सफर, साहित्य, बदलते ट्रेंड और उपलब्धियों पर आधारित है। मुकेश की जीवनी और उनकी गायकी के अलग-अलग पहलुओं पर जिस तरह से उन्होंने लिखा है, वह इनके इसी शोध की परिणति है। मुकेश के साथ जिन-जिन गीतकारों, संगीतकारों, नायक-नायिकाओं ने काम किया है, लेखक ने उनसे मिलकर जानकारी जुटाने का बहुत ही श्रमसाध्य कार्य किया है, तभी यह पुस्तक इतनी रोचक बन पड़ी है।

    वास्तव में मुकेश भारत के पहले ऐसे गायक हैं, जिनके सुमधुर स्वर ने विश्व पटल पर गीत-संगीत की सुरीली अलख जगाई थी। श्रीरामचरित मानस के आठों कांड गाकर मुकेश ने जो शोहरत पाई, गायकी के नए प्रतिमान गढ़े, वह उनके खाते की सबसे बड़ी और कालजयी उपलब्धि है। वर्ष 1976 में मुकेश के निधन के पश्चात एचएमवी ने जब तुलसी रामायण के आदि बालकांड को ध्वनि रूप में अंकित करने का निर्णय किया, तब पुन: उपयुक्त गायक के चयन की प्रक्रिया प्रारंभ की गई। निर्विवाद रूप से जिस नाम पर आम सहमति बनी, वह था-मन्ना डे का नाम। मुरली मनोहर के सुमधुर संगीत में मुकेश का रसभीना स्वर घर-घर तक पहुंच गया। लोग अपार श्रद्धा-भक्ति और स्वच्छ होकर रामचरित मानस कुछ यूं सुनते कि पूजा-पाठ कर रहे हों। वस्तुत: फिल्मी गीतों को एक तरफ रखकर यदि सिर्फ रामचरितमानस की दृष्टि से मुकेश के व्यक्तित्व और कृतित्व का आकलन किया जाए तो उनका यह गायन सर्वथा बेमिसाल और अनूठा है।

    इस पुस्तक की यह भी एक बड़ी विशेषता है कि लेखक ने मुकेश के चाहने वालों और उन पर शोध की इच्छा रखने वालों के लिए अंत में उनके गाए एक-गीतों एवं युगल-गीतों की सूची कुछ इस प्रकार दी है कि एक बार में ही फिल्म का नाम, रिलीज होने का वर्ष, गीतकार और संगीतकार का नाम पता चल सके। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस अनुपम सौगात को पाठक हाथोंहाथ लेंगे।

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    पुस्तक : भारत के प्रथम वैश्विक गायक मुकेश

    लेखक : राजीव श्रीवास्तव

    प्रकाशक : प्रकाशन विभाग सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, नई दिल्ली

    मूल्य : 710 रुपये

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