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उत्‍तराखंड चुनाव: बनी रहेगी परिपाटी या लिखी जाएगी नई इबारत

उत्‍तराखंड विधानसभा चुनाव 2017 के लिए शनिवार सुबह राज्य की सभी 70 सीटों पर मतगणना आरंभ हो जाएगी और दोपहर तक नई विधानसभा की तस्वीर सामने होगी।

By Sunil NegiEdited By: Published: Fri, 10 Mar 2017 09:52 AM (IST)Updated: Sat, 11 Mar 2017 08:23 AM (IST)
उत्‍तराखंड चुनाव: बनी रहेगी परिपाटी या लिखी जाएगी नई इबारत
उत्‍तराखंड चुनाव: बनी रहेगी परिपाटी या लिखी जाएगी नई इबारत
देहरादून, [विकास धूलिया]: उत्तराखंड की चौथी विधानसभा के गठन के लिए अब काउंटडाउन आरंभ हो गया है। शनिवार सुबह राज्य की सभी 70 सीटों पर मतगणना आरंभ हो जाएगी और दोपहर तक नई विधानसभा की तस्वीर सामने होगी। हालांकि चुनावी समर में जीत के सभी के अपने-अपने दावे हैं मगर सबसे ज्यादा उत्सुकता इस बात को लेकर है कि क्या इस चुनाव का जनादेश भी पिछले तीन विधानसभा चुनावों की सत्ता परिवर्तन की परिपाटी को निभाते हुए भाजपा को सत्ता तक पहुंचाएगा, या फिर इस दफा वोटर नई इबारत लिखते हुए कांग्रेस की दोबारा सत्ता में वापसी कराएगा।
उत्तराखंड को अलग राज्य के रूप में वजूद में आए सोलह साल गुजर चुके हैं और यह राज्य गठन के बाद चौथा विधानसभा चुनाव है। उत्तराखंड गठन के वक्त 30 सदस्यीय अंतरिम विधानसभा में भाजपा का बहुमत था, लिहाजा तब पहली अंतरिम सरकार बनाने का मौका भी भाजपा को ही मिला। सवा साल बाद वर्ष 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में अलग राज्य गठन के श्रेय पर काबिज होने के बावजूद जनता ने भाजपा को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया। वर्ष 2007 के दूसरे विधानसभा चुनाव में यही हश्र कांग्रेस का हुआ, जब जनादेश हिस्से आया भाजपा के। भाजपा ने पांच साल बाद सत्ता में वापसी की।
साल 2012 में संपन्न तीसरे उत्‍तराखंड विधानसभा चुनाव में भी जनादेश ने अपना चरित्र नहीं बदला। इस चुनाव में मतदाता ने सत्तारूढ़ भाजपा को झटका देते हुए सत्ता सौंप दी कांग्रेस को। यानी, अब तक के तीनों विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड की जनता ने किसी भी पार्टी को रिपीट नहीं किया, बल्कि भाजपा और कांग्रेस को बारी बारी मौका दिया। इसीलिए सूबे के इस राजनैतिक चरित्र ने नतीजों को लेकर सबसे ज्यादा दिलचस्पी पैदा कर दी है। हर किसी की नजर इसी ओर टिकी है कि क्या यह परिपाटी चौथे विधानसभा चुनाव में भी कायम रहेगी और अगर ऐसा होता है तो नंबर लगेगा भाजपा का। यदि नई परंपरा जन्म लेती है तो कांग्रेस को फिर सत्ता का स्पर्श सुख हासिल हो सकता है।
उत्तराखंड में इस मत व्यवहार का सबसे बड़ा कारण यह माना जा सकता है कि सत्ता में भाजपा रही हो या फिर कांग्र्रेस, दोनों ही स्थिर सरकार देने में नाकाम साबित हुई हैं। लगभग सवा साल की पहली अंतरिम सरकार में भाजपा ने दो मुख्यमंत्री दिए। पहली निर्वाचित सरकार कांग्रेस की थी और पूरे पांच साल चली भी, मगर कांग्रेस के अंतर्कलह ने कभी स्थिरता का माहौल नहीं बनने दिया। दूसरी निर्वाचित सरकार भाजपा ने बनाई मगर पांच साल में तीन मुख्यमंत्री। तीसरी विधानसभा तो राजनैतिक अस्थिरता के लिहाज से ऐतिहासिक ही रही। कांग्रेस ने मुख्यमंत्री बदला तो इसकी परिणति बाद में पार्टी में बड़ी टूट के रूप में सामने आई।
साफ है कि लगभग अस्सी फीसद साक्षरता दर के साथ उत्तराखंड का पढ़ा लिखा मतदाता राजनैतिक अस्थिरता को कतई पसंद नहीं करता। पिछली विधानसभा में भी यही स्थिति रही, लिहाजा इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि सत्तारूढ़ पार्टी को सबक सिखाने का मतदाता का चरित्र इस बार भी अपना रंग दिखाए। अब तीसरी विधानसभा के दौरान सूबे में राजनैतिक अस्थिरता के लिए विपक्ष भाजपा को भी बराबर का जिम्मेदार माना जा सकता है, तो इस स्थिति में मतदाता किसे सबक सिखाने की ठाने हुए है, नतीजों से पहले कहा नहीं जा सकता। तो बस इंतजार कीजिए, महज 24 घंटों बाद आपके सामने होगी उत्तराखंड की चौथी विधानसभा की तस्वीर।
पिछली तीन विधानसभाओं की तस्वीर
विधानसभा चुनाव 2002
कांग्रेस--------36
भाजपा--------19
बसपा---------07
उक्रांद---------04
राकांपा--------01
निर्दलीय------03
विधानसभा चुनाव 2007
भाजपा--------34
कांग्रेस--------21
बसपा--------08
उक्रांद--------03
निर्दलीय--------03
विधानसभा चुनाव 2012
कांग्रेस--------32
भाजपा--------31
बसपा----------03
उक्रांद----------01
निर्दलीय--------03
विधानसभा चुनाव मतदान प्रतिशत
2002--------54.21 प्रतिशत
2007--------63.72 प्रतिशत
2012--------67.22 प्रतिशत
2017--------65.64 प्रतिशत

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