उत्तर प्रदेश चुनाव 2017 : कितनी परवान चढ़ेगी यह उड़ान
सत्ता में हिस्सेदारी और विधानसभा में उपस्थिति दर्ज कराने के लिए छोटे दलों के क्षत्रपों ने फिर कमर कस ली है। दलों से समझौता, गठबंधन व मोर्चा बनाकर कूदने को सेनाएं भी सजने लगी हैं।
लखनऊ (जेएनएन)। सियासत में इन्हें सतसैया की दोहरों की तरह देखा जाता है। देखने में छोटे हैं लेकिन बड़े राजनीतिक दलों पर गंभीर घाव करते हैं। कई चुनावों से ये छोटे दल बड़ों का समीकरण बनाते-बिगाड़ते चले आ रहे हैं। विशेष संवाददाता आनन्द राय की रिपोर्ट...
सत्ता में हिस्सेदारी और विधानसभा में उपस्थिति दर्ज कराने के लिए छोटे दलों के क्षत्रपों ने फिर कमर कस ली है। बड़े दलों से समझौता, आपसी गठबंधन व मोर्चा बनाकर विधानसभा के महासमर में कूदने के लिए इनकी सेनाएं भी सजने लगी हैं। मंजिल की ओर उड़ान के लिए सबकी तैयारी दिख रही है लेकिन, यह कितनी परवान चढ़ेगी कह पाना मुश्किल है।
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गोलबंदी तो इस बार भी खूब हो रही है लेकिन पाले बदल गए हैं। पिछली बार कौमी एकता दल (कौएद) और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) भासपा एक साथ जबकि अपना दल और पीस पार्टी एक गठबंधन से चुनाव में मुकाबिल थी। महान दल ने कांग्रेस के साथ साझेदारी की थी जबकि प्रगतिशील मानव समाज पार्टी (पीएमएसपी) ने भी चुनाव में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी। तब पीस पार्टी को चार, अपना दल को एक और कौमी एकता दल को दो सीटें मिली थीं। सुभासपा का खाता तक नहीं खुल पाया।
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इत्तेहाद-ए-मिल्लत कौंसिल (आइइएमसी) को एक सीट मिली थी। इस बार समीकरण पूरी तरह बदल गए हैं। सुभासपा भाजपा के पाले में चली गयी है तो कौएद ने समाजवादी छांव तलाश ली है। अपना दल का अनुप्रिया धड़ा भाजपा के साथ है। अपना दल के एक और सांसद अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के अध्यक्ष कुंवर हरिवंश सिंह भी अपने पुत्र के टिकट के लिए भाजपा का दरवाजा खटखटा रहे हैं जबकि अपना दल कृष्णा पटेल गुट दूसरे मोर्चे पर गठबंधन की संभावनाएं तलाश रहा है। जबकि पीस पार्टी ने निषादों की पार्टी और महान दल से नाता जोड़कर चुनावी बिगुल बजा दिया है। पीस पार्टी के अध्यक्ष डॉ. अयूब अहमद ने जातीय समीकरण दुरुस्त करने में हमेशा अपने हित पर ध्यान केन्द्रित किया है। अयूब ने निषादों के नेता डॉ. संजय निषाद तथा मौर्य, कोइरी और कुशवाहा को जोड़कर बनाये गये महान दल के केशव देव मौर्य को लेकर किला फतह करने की तैयारी है। इनके अलावा पंजीकृत दलों की लंबी फेहरिश्त है जो चुनाव घोषित होते ही सक्रिय दिखने लगे हैं।
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एआइएमआइएम का उभार : आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआइएमआइएम) की स्थापना तो बहुत पहले हुई लेकिन, उत्तर प्रदेश में इसका उभार 2014 के चुनाव में हुआ। पार्टी के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने यहां खूब दौरे किये हैं। अभी तक 11 उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। इस पार्टी ने मुसलमानों और दलितों को साथ लेकर चुनाव मैदान में उतरने की रणनीति बनाई है।
बिंद की अगुवाई में मोर्चा : पिछली बार 37 सीटों पर लड़ी प्रगतिशील मानव समाज पार्टी के प्रेमचंद बिंद ने बाहुबली एमएलसी बृजेश सिंह और पूर्व मंत्री राकेश धर त्रिपाठी को चुनाव मैदान में उतारा था और दोनों दूसरे स्थान पर रहे थे। इस बार ये शूरमा बिंद के साथ नहीं हैं लेकिन, बिंद का मोर्चा सक्रिय हो गया है। अब बिंद ने राष्ट्रीय क्रांति पार्टी के कुंवर देवेन्द्र सिंह लोधी, जनवादी सोशलिस्ट के डॉ. संजय सिंह चौहान, जय हिंद समाज पार्टी के नंदलाल निषाद और राष्ट्रीय समानता दल के मोतीलाल शास्त्री आदि का गठबंधन कर 403 सीटों पर लडऩे का एलान कर दिया है।
बसपा के बाद उभरे जातीय क्षत्रप : उत्तर प्रदेश में 1996 में बसपा की राजनीति में उभरे ज्यादातर नेताओं ने बाद में अलग होकर अपनी पार्टी का गठन किया। उसके पहले भी राजनीतिक दल गठित होते रहे लेकिन उसका पैमाना व्यापक था। सियासत में बसपा के उभार के बाद ही छोटे दलों की बाढ़ आयी। दरअसल, बहुजन समाज के नारे को चरितार्थ करने के लिए कांशीराम ने जातीय क्षत्रपों को आगे बढ़ाया। बाद में इन्हीं क्षत्रपों ने बसपा से बगावत कर अपने-अपने दलों की नींव डाली। इसके दो बड़े उदाहरण हैं। बसपा से अलग होने के बाद डॉ. सोनेलाल पटेल ने अपना दल और ओमप्रकाश राजभर ने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी बनाई और 2002 के चुनाव में इनकी भागीदारी ने राजनीतिक पंडितों को चौंका दिया था। इन्हें वोटकटवा के रूप में जरूर देखा गया लेकिन राजनीति के लिए फिर ये नजीर बन गये। फिर तो जातीय क्षत्रपों के दलों का सिलसिला शुरू हो गया।
2012 के चुनाव में छोटे दलों की स्थिति
दल - मत प्रतिशत - सीटों पर लड़े - जीते
1. कौएद - 0.55 - 43 02
2. पीस पार्टी- 2.35 - 208 04
3. अपना दल- 0.90 - 76 01
4. सुभासपा - 0.63 - 52 00
5. महान दल - 0.90 - 74 00
6. आइएमसी - 0.25 - 18 01
7. पीएमएसपी - 0.28 37 00।
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