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    मनोज सिन्हा मुख्यमंत्री बने तो जाति परंपरा की होगी हार

    By Ashish MishraEdited By:
    Updated: Sat, 18 Mar 2017 02:43 PM (IST)

    मनोज सिन्हा के लिए जिसे पहले नुकसान माना जा रहा था उनका भूमिहार जाति से होना, जिसकी पहुंच यूपी में सिमटी हुई है। वही उनके लिए फायदा साबित हुआ।

    मनोज सिन्हा मुख्यमंत्री बने तो जाति परंपरा की होगी हार

    लखनऊ (जेएनएन)। यूपी में मुख्यमंत्री पद पर अगर मनोज सिन्हा का चयन होता है तो प्रधानमंत्री मोदी उन परंपराओं को तोड़ते दिख सकते हैं कि मुख्यमंत्री जातिगत ताकत का प्रतिनिधि हो। पीएम उन्हें चुनना चाहते हैं है जो बेहतर नतीजे दे सकते हैं। शायद उन्होंने इसके लिए खुद से ही प्रेरणा ली है। मोदी की अपनी जाति का गुजरात में खास प्रतिनिधित्व नहीं है लेकिन फिर भी वह राज्य के और इसके बाद देश के सबसे प्रिय नेता बन गए। उन्होंने फिर दिखाया है कि वह साहसी फैसले लेने से पीछे नहीं हटते अगर उन्हें ये फैसले लोगों के लिए लंबी हित के फायदे में लगते हैं।

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    आपको बताते चलें कि मनोज सिन्हा के लिए जिसे पहले नुकसान माना जा रहा था उनका भूमिहार जाति से होना, जिसकी पहुंच यूपी में सिमटी हुई है। वही उनके लिए फायदा साबित हुआ। सिन्हा जातिगत समीकरणों के ऊपर के दावेदार के रूप में उभरे जैसे महाराष्ट्र में देवेंद्र फडनवीस, गुजरात में विजय रुपाणी, झारखंड में रघुबर दास, हरियाणा में मनोहरलाल खट्टर उभरे थे। मध्य प्रदेश में भी भले शिवराज सिंह चौहान ओबीसी कैटिगरी से आते हैं, उनकी जाति और जातिगत ताकत का कोई खास प्रचार नहीं होता।

    मनोज सिन्हा का हिंदी पट्टी के सबसे अहम और बड़े प्रदेश में सर्वोच्च पद पर पहुंचना फिर से दिखाता है कि मोदी व शाह किसी और मानक के बजाय मेरिट के आधार पर फैसले लेते हैं। आईआईटी बीएचयू से सिविल इंजिनियरिंग कर चुके मनोज सिन्हा तीसरी बार सांसद बने हैं। केंद्रीय संचार मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और रेल राज्य मंत्री के रूप में उनकी छवि जान बूझकर खबरों से दूर व लो-प्राइफल रहने वाले लेकिन अच्छा काम करने शख्स की है, जो बात से ज्यादा काम से बोलता है। 
    उनकी सबसे बड़ी खासियत संचार मंत्री के रूप में बड़े कॉरपोरेट से लेकर रेलवे में जमीनी कर्मचारी यूनियन के साथ समान सहजता से संवाद साधना है। वह बीएचयू के छात्र संघ अध्यक्ष रहे हैं। मृदुभाषी, शिष्ट और स्पष्ट हैं, धोती और लंबे कुर्ते में उनकी छवि जमीन के जुड़े शख्स की बनती है।
    चुनाव से पहले से लेकर नतीजों के आने पर मोदी और शाह की सोशल इंजिनियरिंग के बारे में काफी कुछ कहा गया है। लेकिन सिन्हा को चुनकर उन्होंने सीधा संदेश दिया है कि जाति और समुदाय की चिंताएं गवर्नेंस से जुड़े फैसलों पर असर नहीं करते, कमान किसके हाथ में है यह मायने नहीं रखता। वाराणसी में अपनी आखिरी सभा में पीएम मोदी ने रेल मंत्रालय में सिन्हा के काम की जमकर तारीफ की थी।

    सिन्हा को मोदी-शाह का भरोसा हासिल है और उनके गृह मंत्री राजनाथ सिंह से भी अच्छे रिश्ते हैं।
    सूत्रों का कहना है कि उत्तर प्रदेश में राजनाथ सिंह को सर्वमान्य रूप से सबसे बड़े नेता के रूप में देखा जा रहा था और उनमें 15 साल फिर से सीएम पद संभालने की सभी योग्यताएं भी थीं। लेकिन राजनाथ के कद और राजनीतिक फलक पर उनकी स्वीकार्यता को देखते हुए मोदी और शाह को लगता है कि उनकी दिल्ली में अधिक जरूरत है।

    मनोज सिंन्हा का प्रोफाइल एक नजर में 
    -1 जुलाई 1959 को गाजीपुर के मोहनपुरा में जन्म हुआ। बीएचयू से सिविल इंजीनियरिंग में बीटेक - एमटेक की पढ़ाई की।

    -आईआईटी बीएचयू से पढ़े मनोज सिन्हा की छवि काफी साफ सुथरी है।

    -मनोज सिन्हा छात्र राजनीति में भी सक्रिय रहे और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में छात्र संघ के अध्यक्ष थे

    -1989 में बीजेपी राष्ट्रीय परिषद के सदस्य बने
    -1996, 1999, 2014 में ग़ाज़ीपुर से सांसद बने

    -मनोज सिन्हा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के करीबी माने जाते हैं। पीएम मोदी और मनोज सिन्हा के बीच आरएसएस के दिनों से ही अच्छे संबंध हैं।

    -मनोज सिन्हा की 1, मई 1977 को सुलतानगंज, भागलपुर की नीलम सिन्हा से शादी हुई। उनकी एक बेटी है, जिसकी शादी हो चुकी है और एक बेटा है जो एक टेलीकॉम कम्पनी में काम कर रहा है।

    -वह पूर्वांचल से आते हैं इसलिए पार्टी को वहां और मजबूत करने का जिम्मा भी वह उठाएंगे।