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यूपी विधानसभा चुनावः कितना पास है मील का पत्थर

इस पर चर्चा भी तेज हो गई है कि आखिरी चरण का मतदान सरकार गठन के लिए कितना अहम है। क्या अब तक हुए 362 सीटों पर मतदान में कोई दल बहुमत के जादुई आंकड़े तक पहुंच पाया है?

By Ashish MishraEdited By: Wed, 08 Mar 2017 07:15 AM (IST)
यूपी विधानसभा चुनावः कितना पास है मील का पत्थर
यूपी विधानसभा चुनावः कितना पास है मील का पत्थर

वाराणसी [प्रशांत मिश्र]। बाबा की नगरी वाराणसी में राजनीतिक धूनी रमी है। रोड शो के जरिये ताकत दिखाने की होड़ रही, लेकिन इस पर यह चर्चा भी तेज हो गई है कि एक दिन बाद होने वाला आखिरी चरण का मतदान सरकार गठन के लिए कितना अहम है। क्या अब तक हुए 362 सीटों पर मतदान में कोई दल बहुमत के जादुई आंकड़े तक पहुंच पाया है? दावा हर दल का है कि दो तिहाई बहुमत उसके खाते में है, यानी छठे चरण तक ही हर दल अपना बहुमत आया मान रहा है। समय ही सबके दावे परखेगा। 

अब जरा उन क्षेत्रों की ओर चलते हैैं जहां वोटिंग हो चुकी है। दोपहर की धूप है। गोरखपुर विधानसभा क्षेत्र के श्याम निषाद दोस्तों के साथ चाय की एक दुकान से थोड़ी दूर पर बैठक जमाए हैैं। बता रहे हैैं इस बार घर वाली के कहने पर वोट डाला। घर में उज्ज्वला योजना से रसोई गैस मिली तो उनका टोला भाजपा के साथ हो लिया। श्याम कहते हैैं, 'जमाना बदल गए भइया, अब लुगाई तै करेंगी कि वोट केहका डाला जाए।
उत्तर प्रदेश के इस पूर्वी हिस्से से हर घर का कोई न कोई मुंबई जा बसा है। महाराष्ट्र नगर निगम चुनाव में वे एकजुट भाजपा के साथ थे और जब बात अपने प्रदेश की आई तो घर वालों पर भाजपा के पक्ष में उनका दबाव रहा। समाजवादी पार्टी के गढ़ कन्नौज, एटा, मैनपुरी और इटावा में भी इसकी झलक दिखी। हालांकि कानून व्यवस्था का मुद्दा छोड़ दें तो एक ऐसा तबका अवश्य है जो मानता है कि बसपा काल के मुकाबले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने काम किए। राज्य सरकार का मुकाबला केंद्र सरकार की कुछ ऐसी नीतियों से है जो निचले तबके में लोकप्रिय हुई हैं।

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वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रोड शो यूं तो जोश से लबरेज था लेकिन, मुस्लिम महिलाओं की मौजूदगी इसलिए ज्यादा रोचक हो गई क्योंकि अल्पसंख्यक वोटों को भाजपा के खिलाफ माना जाता रहा है। भाजपा मानती है कि तीन तलाक के मुद्दे पर केंद्र सरकार का रुख मुस्लिम महिलाओं को रास आया है। सवाल है कि क्या भाजपा को इनका वोट भी मिला है? जिस तरह श्याम की पत्नी ने दबाव बनाया, क्या वैसा ही मुस्लिम महिलाएं भी कर सकीं। बनारस के चौकाघाट के पास खड़े महिलाओं के एक झुंड में खड़ी प्रमिला सिंह कहती हैं, 'सबके देखले बानी, अबकी इनके देखल जाए।

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नतीजे जो भी हों, यह कहा जा सकता है कि चरणबद्ध तरीके से चुनाव प्रचार को चरम तक पहुंचाने में भाजपा की सफलता के पीछे उसकी पूर्व की तैयारियां हैं। हाल तक राजनीतिक विश्लेषक उत्तर प्रदेश के समाज का विभाजन सवर्ण, यादव, गैर यादव, पिछड़े, दलितों और मुसलमानों में करते आए हैं। इस चुनाव में गैर जाटव दलितों का नया वर्ग अलग से दिखा है। यह वर्ग बदलाव चाहता है। भाजपा इन्हें यह समझाने में सफल दिखी है कि वह चौदह साल से सत्ता में नहीं है और उनकी अपेक्षाएं वही पूरी करेगी। भाजपा के लिए नई सामाजिक गोलबंदी इसलिए भी आसान रही क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी खुद पिछड़े वर्ग से आते हैैं और पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष पद की कमान भी केशव प्रसाद मौर्य को दी।

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टिकट बंटवारे में 140 से अधिक पिछड़ों को चुना गया। जो आरक्षित सीटें हैैं उनमें तीन चौथाई टिकट गैर जाटवों को देना भी भाजपा के लिए लाभदायक साबित हो सकता है पर भाजपा के लिए सबसे बड़ा हथियार यह है कि सपा और बसपा जहां एक खास जाति की पार्टी के रूप में चिह्नित हो गईं, वहीं भाजपा इससे अपने को न केवल बचा ले गई बल्कि व्यापक फलक पर ले जाने में सफल रही। 

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