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    लोकसभा चुनाव 2019 : चुनाव में उठे सवाल, छिन रहा किसानों का सहारा, क्‍यों पशु बेसहारा

    By Abhishek SharmaEdited By:
    Updated: Tue, 02 Apr 2019 08:45 AM (IST)

    अफसरों की लापरवाही और गांवों में चारागाह व सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जा से पशु आश्रय स्थल जरूरत के हिसाब से नहीं खोले जा सके। ...और पढ़ें

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    लोकसभा चुनाव 2019 : चुनाव में उठे सवाल, छिन रहा किसानों का सहारा, क्‍यों पशु बेसहारा

    वाराणसी [शक्तिशरण पंत]। बेसहारा पशुओं की समस्या कोई नई बात नहीं है लेकिन पशु तस्करी पर कड़ाई से रोक के बाद समस्या में इजाफा हुआ है। पहले किसान नीलगाय से परेशान थे लेकिन अब अन्य बेसहारा पशु उनका सहारा यानी फसल को नुकसान पहुंचा रहे हैं। दूसरी ओर सड़क पर झुंड में विचरण पर नगर निकाय की ओर से कोई ठोस प्रयास न होने के कारण हालत यह है कि आए दिन ये वाहनों से टकराकर दुर्घटना का कारण बन रहे हैं। लोगों की इनसे टकराने के कारण मौत तक हो गई। सरकार की ओर से पशु आश्रय स्थल खोले जाने की योजना शुरू की गई लेकिन अफसरों की लापरवाही और गांवों में चारागाह व सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जा से पशु आश्रय स्थल जरूरत के हिसाब से नहीं खोले जा सके।

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    पूर्वांचल में बेसहारा पशुओं के कारण शहर हो या गांव, हर तरफ लोग परेशान हैं। इन पर नियंत्रण की कोई ठोस व्यवस्था आज तक नहीं की जा सकी है। ग्रामीण क्षेत्रों में इस समस्या को लेकर किसानों में गुस्सा भी है और वे कहीं स्कूल तो कहीं अस्पताल में इन्हें बंद कर अपने गुस्से का इजहार भी कर चुके हैं लेकिन समस्या का स्थाई समाधान नहीं निकल पा रहा है।

    वाराणसी : बेसहारा मवेशियों की संख्या पिछले दो वर्षों में बढ़ी है। जिला पंचायत के आकलन में इनकी संख्या 2860 से अधिक है। इसी प्रकार नगर निगम क्षेत्र में 540, नगर पंचायत गंगापुर व नगर पालिका परिषद रामनगर क्षेत्र में 70 के होने का आकलन है। बीते पांच वर्षों में इनके हमले में तीन लोगों की जान जा चुकी है, जबकि करीब दो सौ लोग जख्मी हो चुके हैं। सभी तीन तहसीलों में करीब 45 हेक्टेयर फसलों का नुकसान हर वर्ष होता है।

    नियंत्रण के नाम पर सरकार की ओर से तीन कान्हा उपवन छितौनी कोट, शहंशाहपुर व सेवापुरी में बनाया जा रहा है जहां पर पांच सौ से अधिक बेसहारा पशुओं के रखने की सुविधा होगी। इसके अलावा ग्राम पंचायत स्तर पर भी कई गांवों में पशु आश्रय गृह बनाने का प्रस्ताव है। नगर निगम की ओर से शहर में भोजूबीर व नक्खी घाट में कांजी हाउस बनाया गया है। यहां बेसहारा पशुओं को रखा जाता है।

    आजमगढ़ : पिछले दो दशक से बेसहारा पशुओं के चलते समस्या पैदा हुई है। लोग अनुपयोगी मवेशियों को लावारिस छोड़ देते हैं। पिछले पांच वर्ष में किसी की जान तो नहीं गई लेकिन घायल हुए अनगिनत लोगों को अस्पताल पहुंचाया गया। हर साल 0.5 फीसद क्षेत्रफल की खेती की क्षति होती है। शहरी इलाकों में अक्सर जाम लग जाता है। 

    समस्या समाधान को सरकार से पंजीकृत 16 अस्थाई गो आश्रय केंद्र हैं। इसमें अब तक 1000 गो-वंश संरक्षित किए गए। नगर पालिका परिषद आजमगढ़ के मुजफ्फरपुर, मुबारकपुर के सराय फिरोज व निजामाबाद में कान्हा गोशाला के लिए जमीन चिह्रित किया गया है।

    गाजीपुर : बीते पांच वर्ष से बेसहारा पशुओं के हमले में दो लोगों की जान जा चुकी है। साथ ही डेढ़ सौ लोग घायल हो चुके हैं। सभी सात तहसीलों में इन पशुओं से करीब सौ हेक्टेयर फसलों का नुकसान हर वर्ष होता है। शहरी इलाके में भी आए दिन बेसहारा पशुओं के चलते जाम लग जाता है। सरकारी स्तर पर जिले में 70 गोवंश आश्रय स्थल बनाए गए हैं। रोज किसी न किसी स्थल पर भोजन व इलाज के अभाव में एक-दो पशुओं की मौत हो रही है।

    जौनपुर : दो साल से बेसहारा गाय, बछड़ों की तादाद काफी बढ़ी है। पांच साल में चार लोगों की मौत और करीब 225 लोग अपाहिज हो चुके हैं। पांच साल में लगभग 10 से 15 फसलें बर्बाद हुईं। आपस में लडऩे के कारण हाईवे पर हादसों का बनते हैं कारण। सरकार के आदेश पर तीन स्थाई गोशाला सहित 20 अस्थाई पशु आश्रय केंद्र खोलकर बेसहारा पशुओं को रखा जा रहा है।

    चंदौली : 1772 बेसहारा मवेशियों को प्रशासन ने चिह्नित किया है जो फसलों के लिए समस्या बने हैं।  विभाग 730 पशुओं को पकड़कर आश्रय स्थलों तक पहुंचा चुका है।

    मीरजापुर : बीते पांच वर्षों में 16 लोगों की जान जा चुकी है, 40 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। एक लाख हेक्टेयर से ज्यादा फसल को नुकसान पहुंचा। रात में हाईवे पर मवेशियों की वजह से औसतन रोज एक हादसा होता है। अभी तक 14 पशु आश्रय केंद्र बने हैं लेकिन दो सौ से ज्यादा की दरकार है।

    मऊ : पिछले पांच सालों में बेसहारा मवेशियों के चलते 17 लोगों की जान गई और 52 लोग घायल हुए। 12 फीसद फसलों का नुकसान हुआ। हाईवे पर ये मवेशी हादसों का सबब बन रहे हैं।

    सोनभद्र : करीब दस साल से यह समस्या है। आठ लोगों की जान गई और 60 घायल हुए। हाईवे पर अक्सर जाम लगता है, लोग गिरकर घायल होते हैं। समस्या से निजात के लिए 16 अस्थायी आश्रय स्थल बनाए गए हैं।

    बलिया : बेसहारा मवेशियों की हर साल इसकी संख्या में वृद्धि हो रही है। ऐसे पशुओं की वजह से मरने वालों की संख्या जहां दो दर्जन से अधिक है। साथ ही पचास से अधिक लोग घायल हो चुके हैं। प्रति वर्ष किसानों की एक चौथाई फसल बर्बाद हो जाती है।  

    भदोही : दो वर्ष से बेसहारा मवेशियों को लेकर समस्या बढ़ी है। मवेशियों के हमले से तीन लोगों की मौत हुई है जबकि दर्जनों लोग घायल हुए हैं। विशेषकर बाइक सवारों के लिए मवेशी ज्यादा घातक साबित हो रहे हैं। स्थाई व अस्थाई आश्रय स्थल के लिए एक करोड़ से अधिक बजट भी जारी किया गया है लेकिन अभी स्थाई आश्रय स्थल की व्यवस्था नहीं हो सकी है।

    जून तक बनाना है कान्हा पशु आश्रय : प्रदेश सरकार ने जिलों को कान्हा पशु आश्रय योजना के तहत करोड़ों रुपये उपलब्ध कराया है। सभी को निर्देश दिया गया है कि 30 जून तक प्राप्त धन का उपयोग कर आश्रय स्थल बना लिए जाएं। इस दिशा में पर्याप्त प्रगति नहीं है। आचार संहिता लागू होने के बाद से तो प्रशासनिक मशीनरी हाथ पर हाथ रख कर बैठ गई है। वैसे तो सरकार की तरफ से प्रत्येक गांव में सैकड़ों बीघा चारागाह आदि सरकारी जमीन होती है लेकिन प्रशासन उस पर अवैध कब्जा हटाने नाकाम है। उल्टे जमीन का रोना रोया जाता है। जबकि सरकार का स्पष्ट आदेश है कि जून के बाद समय सीमा नहीं बढ़ाई जाएगी।