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    Rajasthan Election 2023: पेपर लीक और पायलट फैक्टर बने कांग्रेस की हार का प्रमुख कारण, तुष्टिकरण की वजह से 'रिवाज' रहा कायम

    राजस्थान में रिवाज कायम रहा। एक बार फिर राज्य सत्ता परिवर्तन हुआ। कांग्रेस को राज्य में शिकस्त हासिल करनी पड़ी। गहलोत सरकार के प्रति मतदाताओं की नाराजगी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चुनाव से ठीक पहले वोट बैंक साधने के लिए बनाए गए 17 नये जिलों में से आठ में तो कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला।

    By Jagran NewsEdited By: Piyush KumarUpdated: Mon, 04 Dec 2023 04:19 PM (IST)
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    राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के ये प्रमुख वजह रहीं।(फोटो सोर्स: जागरण)

    नरेंद्र शर्मा, जयपुर। पेपर लीक,पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट फैक्टर,तुष्टिकरण और बिगड़ी कानून-व्यवस्था राजस्थान में हर पांच साल में सरकार बदलने का "रिवाज" कायम रखने के प्रमुख मुददे रहे। अशोक गहलोत सरकार की मुफ्त योजनाओं और सात गारंटियों को मतदाताओं ने नकार दिया।

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    गहलोत सरकार के प्रति मतदाताओं की नाराजगी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चुनाव से ठीक पहले वोट बैंक साधने के लिए बनाए गए 17 नये जिलों में से आठ में तो कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला।

    पायलट फैक्टर के कारण गुर्जर समाज ने इस बार कांग्रेस प्रत्याशियों के खिलाफ मतदान किया। गहलोत ने पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) लागू कर सात लाख सरकारी कर्मचारियों को साधने की कोशिश की थी। लेकिन गाइडलाइन में स्पष्टता नहीं होने के कारण कर्मचारियों को लगा कि यह भी अन्य की तरह एक लुभावनी योजना है।

    तुष्टिकरण और भाजपा के हिंदुत्व के एजेंडे को मतदाताओं ने काफी समर्थन दिया। साथ ही गहलोत ने पूरा चुनाव अपने स्तर पर लड़ा पायलट यहां तक की कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा को भी अधिक महत्व नहीं दिया। चुनाव से जुड़े सभी फैसले अपने स्तर पर किए।

    पेपर लीक बड़ा मुदद बना

    सरकारी भर्ती परीक्षाओं के पेपर लीक बड़ा चुनावी मुददा बना। पांच साल में 18 परीक्षाओं के पेपर लीक हुए। इससे युवाओं में गहलोत सरकार के प्रति नाराजगी बढ़ी । 22 लाख 71 हजार मतदाओं ने इस चुनाव में पहली बार मतदान किया। यह माना जा रहा है कि पेपर लीक के कारण युवाओं व उनके स्वजनों की नाराजगी का नुकसान कांग्रेस को हुआ है।

    पायलट फैक्टर से नुकसान हुआ

    पायलट को 2018 में मुख्यमंत्री नहीं बनाने और फिर गहलोत द्वारा उनके खिलाफ लगातार की जाने वाली बयानबाजी से गुर्जर समाज कांग्रेस विशेषकर सीएम से नाराज था। यही कारण है कि गुर्जर बहुल भरतपुर,करौली,सवाईमाधोपुर,दौसा व धौलपुर जिलों में भाजपा ने 13 सीटें जीती है। कांग्रेस के आठ विधायक चुने गए। एक-एक सीट पर राष्ट्रीय लोकदल व बसपा को सफलता मिली है।

    पिछले चुनाव में इन जिलों में कांग्रेस को 20 और भाजपा को मात्र एक सीट मिली थी। गुर्जर बहुल भीलवाड़ा,टोंक व अजमेर जिलों में भी कांग्रेस को कोई खास सफलता नहीं मिल सकी। पायलट के प्रभाव वाले पूर्वी राजस्थान की 39 में से भाजपा को 20 व कांग्रेस को मात्र 16 सीटें मिली है। पिछले चुनाव में पायलट के कारण पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों में गुर्जर और मीणा समाज में समझौता हुआ।

    दोनों जातियों ने एक-दूसरे के प्रत्याशियों की मदद की और उस समय कांग्रेस को 39 में से 25 व भाजपा को मात्र चार सीटें मिली थी। बसपा को पांच,एक राष्ट्रीय लोकदल व चार निर्दलियों के खाते में गई थी। भाजपा ने भी गहलोत व पायलट की खींचतान का पूरा फायदा उठाया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर प्रदेश स्तर तक के नेताओं ने अपने भाषण में सचिन पायलट और उनके पिता स्व.राजेश पायलट के साथ अन्याय होने की बात कहकर गुर्जरों के अंसतोष को और बढ़ाया।

    तुष्टिकरण और हिंदुत्व

    इस चुनाव में तुष्टिकरण और हिंदुत्व प्रमुख मुददा बने। भाजपा ने उदयपुर के कन्हैयालाल हत्याकांड को लगातार हवा देकर हिंदू वोटों का धुव्रीकरण किया। भाजपा ने एक भी मुस्लिम प्रत्याशी नहीं उतारा। चार संतों को टिकट दिया। चुनाव से कुछ दिन पहले आपसी विवाद में एक मुस्लिम युवक की मौत पर गहलोत सरकार द्वारा उसके स्वजनों को 50 लाख रूपये व संविदा पर नौकरी देना हिंदू समाज को एकजुट करने का बड़ा कारण रहा।

    कोटा में पापुलर फ्रंट आफ इंडिया की रैली को अनुमति एवं कुछ हिंदू पर्वों पर शोभायात्राओं को अनुमति नहीं देना भी हिंदू समाज की कांग्रेस से नाराजगी का प्रमुख कारण बना।

    नये जिले बनाने का नहीं मिला लाभ

    चुनाव आचार संहिता लागू होने से पहले गहलोत ने 17 नये जिले बनाकर वोट बैंक साधने की कोशिश की थी। लेकिन इनमें से आठ जिलों में तो कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला। शेष नौ जिलों एक से दो सीटें मिली है।

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