Election 2023: क्षत्रपों की मनमानी ने भी कांग्रेस को किया पस्त, नहीं मानी पार्टी हाईकमान की सलाह; जानें पीछे की कहानी
मध्य प्रदेश राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी को मिली करारी हार को भले ही पार्टी और उसके राष्ट्रीय नेतृत्व के लिए एक बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है। लेकिन इस हार की बड़ी वजह इन राज्यों के वह क्षत्रप भी रहे हैं जिन्होंने टिकट बंटवारे से लेकर पार्टी के चुनाव प्रचार तक में पार्टी हाईकमान की एक नहीं सुनी।
अरविंद पांडेय, नई दिल्ली। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी को मिली करारी हार को भले ही पार्टी और उसके राष्ट्रीय नेतृत्व के लिए एक बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है। लेकिन इस हार की बड़ी वजह इन राज्यों के वह क्षत्रप भी रहे है जो शुरू से ही खुद की जीत के प्रति इतने ज्यादा आश्वस्त थे कि उन्होंने टिकट बंटवारे से लेकर पार्टी के चुनाव प्रचार तक में पार्टी हाईकमान की एक नहीं सुनी।
हाईकमान कुछ कहता रहा और ये क्षत्रप अपनी मनमर्जी चलाते रहे। हद तो तब हो गई थी, जब पार्टी हाईकमान की ओर से आंतरिक सर्वे के आधार पर तीनों राज्यों में बड़ी संख्या में मौजूदा विधायकों और मंत्रियों के टिकट काटने का सुझाव देने के बाद भी उन्होंने इसे ज्यादा तवज्जो नहीं दी। बल्कि यह कहकर झिड़क दिया था, कि वह जिन्हें टिकट दे रहे है उन्हें अपने दम पर जिताकर भी लाएंगे।
कांग्रेस क्षत्रपों को अतिआत्मविश्वास ले डूबा
आखिरकार इन सभी का ये अतिआत्मविश्वास ही उन्हें ले डूबा। पांच राज्यों के इन विधानसभा चुनावों में सिर्फ तेलंगाना ही एक मात्र ऐसा राज्य रहा, जहां कांग्रेस पार्टी ने जीत दर्ज की। इसकी वजह वहां मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के कद के किसी क्षत्रप का न होना था। इसके चलते पार्टी हाईकमान जो भी कहता गया उसे तेलंगाना का राज्य नेतृत्व स्वीकार करता गया।
हाईकमान ने जिसे कहा उसे टिकट दिया गया
पार्टी हाईकमान ने सर्वे के आधार पर तेलंगाना में जिसे टिकट देने को कहा, स्थानीय नेतृत्व ने उसे ही मैदान में उतारा। इतना ही नहीं, पार्टी नेतृत्व ने पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों को लेकर रणनीतिकार के तौर जिन सुनील कानूगोलू को अपने साथ जोड़ा था उन्हें भी तेलंगाना में पूरा काम करने का मौका दिया गया, जबकि मध्य प्रदेश से तो उन्हें भगा दिया गया था।
इन राज्यों ने कानूगोलू को तवज्जो नहीं दिया
मध्य प्रदेश जैसी कुछ कमोबेश स्थिति राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी रही। जहां पार्टी के दिग्गजों ने उन्हें तवज्जो नहीं दी। पार्टी से जुड़े वरिष्ठ पदाधिकारियों के मुताबिक, कानूगोलू ने इसकी शिकायत भी पार्टी हाईकमान से की थी, लेकिन हाईकमान भी इन दिग्गजों के आईने में इतना उतर गया था, उनसे भी ध्यान नहीं दिया।
तेलंगाना में सामूहिक रूप से चुनाव लड़ने का लाभ मिला
जानकारों की मानें तो अब जब परिणाम सामने हैं तो साफ है कि तेलंगाना में पार्टी को सामूहिक रूप से चुनाव लड़ने का लाभ मिला। खास बात यह है कि पांच राज्यों के चुनाव में मध्य प्रदेश ही एक ऐसा राज्य था, जिसमें कांग्रेस पार्टी एक बड़ी जीत के प्रति आश्वस्त थी, लेकिन नतीजा इसके उल्टा आया। वहां उसे सबसे बड़ी हार का मुंह देखना पड़ा। इसकी एक बडी वजह कमलनाथ की मनमर्जी थी।
कमलनाथ ने किसी की नहीं सुनी
चुनाव के दौरान वह किसी की सुन ही नहीं रहे थे। समाजवादी पार्टी के साथ कुछ सीटों पर चुनावी तालमेल को उन्होंने झिड़कते हुए सिरे से खारिज कर दिया था। इसके साथ ही उन्होंने राज्य में विपक्षी गठबंधन की प्रस्तावित रैली को अंतिम समय में निरस्त कर दिया था। पार्टी ने सर्वे के आधार पर उन्हें कम से कम 40 से 50 विधायकों के टिकट काटने का सुझाव दिया था, जो उन्होंने नहीं माना।
हाईकमान ने 40 विधायकों के टिकट काटने को कहा
इसी तरह राजस्थान में भी पार्टी हाईकमान से अपने सर्वे के आधार पर करीब 40 विधायकों के टिकट काटने को कहा था, जो उन्होंने नहीं माना गया। साथ ही सचिन पायलट को दरकिनार करते दिखे। इससे गुर्जर समाज भी नाराज था। आखिरकार उसने चुपचाप ढंग से पार्टी के खिलाफ मतदान दिया।
इसी तरह छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल ने भी अपनी जीत के प्रति इतने ज्यादा आश्वस्त थे कि उन्होंने जमीनी लहर को पूरी तरह से नजरअंदाज किया। टिकट बंटवारे में भी उन्होंने काफी हद तक अपनी ही चलाई। पार्टी हाईकमान की बातों को ज्यादा ध्यान नहीं दिया।
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