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MP Chunav 2018: मुकाबला कांटे का, यहां शहर से ज्यादा दिलचस्प होगी गांव की टक्कर

MP Chunav 2018: इंदौर जिले की ग्रामीण विधानसभा सीटों में इस वजह से दिलचस्प मुकाबले की उम्मीद है।

By Saurabh MishraEdited By: Published: Tue, 20 Nov 2018 10:31 AM (IST)Updated: Tue, 20 Nov 2018 10:31 AM (IST)
MP Chunav 2018: मुकाबला कांटे का, यहां शहर से ज्यादा दिलचस्प होगी गांव की टक्कर
MP Chunav 2018: मुकाबला कांटे का, यहां शहर से ज्यादा दिलचस्प होगी गांव की टक्कर

अभिषेक चेंडके, इंदौर। जिले में भाजपा अपना पुराना स्कोर बरकरार रखने और कांग्रेस अपनी सीटों के नंबर बढ़ाने की कवायद में जुटी हैं। दोनों दलों ने इसके लिए गांवों पर फोकस कर रखा है। जिले की तीन में से दो ग्रामीण सीटों पर भाजपा ने विधायकों को ही दोहराया है, जबकि महू विधानसभा में पिछले चुनाव में तीन नंबर विधानसभा से जीती विधायक को मौका दिया है।

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ग्रामीण सीटों के मुकाबले इसलिए भी दिलचस्प हैं, क्योंकि पिछला चुनाव हारने के बाद प्रतिद्वंद्वियों ने मैदानी पकड़ जमाने के लिए ज्यादा मेहनत की और जिन्होंने पिछले चुनाव जीते, उन्होंने भी सक्रियता में कोई कसर नहीं छोड़ी और काम खूब कराए।

महू विधानसभा में होगी कांटे की टक्कर

इस ग्रामीण विधानसभा को लेकर शहर में सबसे ज्यादा चर्चा है। यहां सीधा मुकाबला भाजपा प्रत्याशी उषा ठाकुर और कांग्रेस प्रत्याशी अंतरसिंह दरबार के बीच है। चुनाव चेहरे, विकास और जातिगत समीकरणों पर टिका है। विधानसभा में 12 हजार से ज्यादा ठाकुरों के वोट हैं। दरबार और ठाकुर दोनों ही इस वोट बैंक को अपना बनाने में जुटे हैं।

कांग्रेसी मानते हैं कि लगातार सक्रियता उनका सबसे प्लस पॉइंट है, जबकि भाजपाई मानते हैं कि 10 सालों में विधानसभा क्षेत्र में हुए विकास के काम इस चुनाव में उनकी सबसे बड़ी ताकत है। दोनों ही पार्टियां जातिगत वोट बैंक को साधने में जुटी हुई है। इस विधानसभा में 2.27 लाख मतदाता हैं। कहा जाता है कि जिसका गांव में दबदबा, उसकी राह ज्यादा आसान। यहां गांव भी दलों में बंटे हैं।

इंदौर-खंडवा रोड पट्टी के गांवों का मिजाज अलग है तो भीतर के छोटे गांवों की अलग कहानी। भाजपा के बड़े नेता लगातार इस विधानसभा में आमद दे रहे हैं और संघ ने भी कमान संभाल रखी है, जबकि कांग्रेस को अपने पुराने और जमे हुए नेटवर्क पर भरोसा है।

सांवेर विधानसभा

परंपरागत किरदार, कौन दमदार ?

सांवेर विधानसभा भौगोलिक रूप से जितनी बिखरी हुई है, यहां के मतदाता राजनीतिक रूप से उतने ही एकजुट हैं। चुनाव में ज्यादातर परंपरागत किरदार रहते हैं। सोनकर और सिलावट परिवार के बीच ही टिकट बंटते रहे हैं और मतदाता भी दोनों को काम करने का मौका देते रहे। इस बार परंपरागत किरदार में कौन दमदार होगा, इसे मतदाता तौल रहा है।

पिछला चुनाव जीतने के बाद भाजपा प्रत्याशी राजेश सोनकर ने सबसे ज्यादा फोकस ग्रामीण क्षेत्रों में रोड नेटवर्क को जोड़ने पर रखा तो कांग्रेस प्रत्याशी तुलसी सिलावट ने किसानों से जुड़े मुद्दे लगातार उठाए और मांगों के लिए आंदोलन भी किए।

कांग्रेस प्रत्याशी सिंधिया गुट से जुड़े हैं और उनके लिए सिंधिया सभाएं ले चुके हैं, जबकि भाजपा प्रत्याशी सोनकर ताई खेमे से जुड़े हैं। दो दिन पहले उनके विधानसभा क्षेत्र में पीएम सभा करके गए। यहां नर्मदा के पानी का मुद्दा वर्षों से जिंदा है, लेकिन नलों से नर्मदा दूर है। दूषित खान नदी के कारण बोरिंगों में भी गंदा पानी आता है।

देपालपुर विधानसभा

जातिगत समीकरणों पर टिका चुनाव

2.27 लाख मतदाताओं वाले देपालपुर विधानसभा क्षेत्र में इस बार भी चुनाव में जातिगत समीकरण हावी रहे हैं। यहां कलौता समाज का वोट बैंक 60 हजार से ज्यादा है। यही कारण है कि दोनों ही पार्टियां ज्यादातर चुनावों में कलौता समाज से जुड़े नेताओं को ही टिकट देती रही हैं।

समाज का मिजाज भी 'कभी इसको, कभी उसको' के हिसाब से चलता रहा है। भाजपा ने पिछला चुनाव जीते मनोज पटेल को फिर मौका दिया है। पटेल के पिता निर्भयसिंह पटेल क्षेत्र के कद्दावर नेता थे और इसी विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे हैं। कांग्रेस ने पहली बार विशाल पटेल को मौका दिया है, उनके पिता जगदीश पटेल भी इसी विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे हैं। यहां से सत्यनारायण पटेल तगड़े दावेदार थे, लेकिन कांग्रेस ने उन्हें पांच नंबर विधानसभा का टिकट दे दिया।

ऐसा कर पार्टी ने उन्हें दूसरे क्षेत्र में व्यस्त कर दिया, ताकि चुनाव में सबोटेज का खतरा न रहे। दूसरी तरफ बगावत पर उतरे मोतीसिंह पटेल भी कांग्रेस के लिए सिरदर्द बन गए थे, लेकिन वे भी मान गए हैं।

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