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MP Assembly Election: एमपी चुनाव में मुस्लिम वोटरों पर कांग्रेस की नजर, 22 सीटों पर मतदाता तय करेंगे हार-जीत का रुख

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। कांग्रेस और बीजेपी ने अपने-अपने उम्मीदवारों के नामों का भी एलान कर दिया है। हालांकि दोनों दलों की अपने-अपने वोट बैंक पर भी नजर है। ऐसे में बीजेपी को शिकस्त देने के लिए कांग्रेस पार्टी भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है। मध्य प्रदेश विधानसभा का चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस का फोकस मुस्लिम बहुल क्षेत्रों वाली सीटों पर है।

By AgencyEdited By: Mohd FaisalPublished: Sun, 22 Oct 2023 12:00 PM (IST)Updated: Sun, 22 Oct 2023 12:00 PM (IST)
MP Assembly एमपी चुनाव में मुस्लिम वोटरों पर कांग्रेस की नजर, 22 सीटें तय करेंगी हार-जीत का रुख (फाइल फोटो)

पीटीआई, भोपाल। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। कांग्रेस और बीजेपी ने अपने-अपने उम्मीदवारों के नामों का भी एलान कर दिया है। हालांकि, दोनों दलों की अपने-अपने वोट बैंक पर भी नजर है। ऐसे में बीजेपी को शिकस्त देने के लिए कांग्रेस पार्टी भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है।

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मध्य प्रदेश विधानसभा का चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस का फोकस मुस्लिम बहुल क्षेत्रों वाली सीटों पर है। एमपी में 22 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जिस पर मुस्लिम वोटर अहम भूमिका निभाता है।

2018 के चुनाव में बढ़ा था कांग्रेस का वोट प्रतिशत

कांग्रेस नेता और मध्य प्रदेश मुस्लिम विकास परिषद के संयोजक मोहम्मद माहिर के अनुसार, साल 2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का वोट शेयर करीब 3-4 प्रतिशत बढ़ा है। मोहम्मद माहिर ने एमपी कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के एक बयान का जिक्र करते हुए बताया कि उन्होंने साल 2018 में कहा था कि अगर 90 फीसदी अल्पसंख्यक वोट पार्टी के पक्ष में आते हैं तो कांग्रेस सरकार बना सकती है।

कमलनाथ की अपील पर बढ़ी कांग्रेस की सीटें

माहिर ने कहा कि कमलनाथ की अपील का ऐसा असर हुआ कि कांग्रेस के खाते में 10-12 सीटें और जुड़ गईं, जिन सीटों को साल 2008 और 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस जीतने में विफल रही थी। पिछले चुनाव में कांग्रेस को 40.89 प्रतिशत वोट मिले थे। जबकि बीजेपी का वोट प्रतिशत 41.02 था। कांग्रेस को 2018 के विधानसभा चुनाव में 230 में से 114 सीटें मिली थी और बीजेपी को 109 सीटों पर ही जीत मिल पाई थी।

हालांकि, कांग्रेस ने अन्य दलों को मिलाकर राज्य में सरकार तो बनाई, लेकिन कमलनाथ अपनी सरकार को बचाने में नाकामयाब रहे। करीब 15 महीने के बाद कांग्रेस विधायकों के दलबदल के कारण 15 महीने बाद सरकार गिर गई थी।

7 फीसदी है मध्य प्रदेश में मुस्लिम आबादी

कांग्रेस नेता माहिर ने समाचार एजेंसी पीटीआई से बातचीत में कहा कि मध्य प्रदेश में दो दलीय व्यवस्था कायम है और संतुलन बहुसंख्यकवाद के पक्ष में झुका हुआ है। उन्होंने दावा किया कि जब भी मतदाता भाजपा से नाराज होते हैं तो वे कांग्रेस की सरकार चुनते हैं। 2011 की जनगणना के मुताबिक, मध्य प्रदेश में मुस्लिम आबादी 7 फीसदी है जो अब 9-10 फीसदी हो सकती है। मुस्लिम वोट 47 विधानसभा सीटों पर प्रभावी हैं, जबकि वे 22 क्षेत्रों में निर्णायक भूमिका निभाता है।

कितनी सीटों पर है मुस्लिमों वोटरों का प्रभाव

माहिर के मुताबिक, इन 47 सीटों पर मुस्लिम वोटर 5,000 से 15,000 के बीच हैं, जबकि 22 विधानसभा क्षेत्रों में इनकी संख्या 15,000 से 35,000 के बीच है। उन्होंने कहा कि कांटे की टक्कर की स्थिति में 22 सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। इन सीटों में भोपाल की तीन, इंदौर की दो, बुरहानपुर, जावरा और जबलपुर समेत अन्य सीटें शामिल हैं।

कांग्रेस उम्मीदवारों को ट्रांसफर नहीं हो रहा वोट- माहिर

माहिर ने दावा किया कि कांग्रेस का पारंपरिक वोट, जिसमें गैर-मुस्लिम भी शामिल हैं। उनके उम्मीदवारों को ट्रांसफर नहीं हो पा रहा है और अल्पसंख्यक समुदाय से उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करने के लिए ऐसे मतदाताओं को मतदान केंद्रों पर ले जाना पार्टी की जिम्मेदारी है। माहिर के मुताबिक, मध्य प्रदेश विधानसभा में मुस्लिम प्रतिनिधित्व पिछले कुछ सालों में उत्तर भोपाल और मध्य भोपाल की सीटों तक ही सीमित रहा है।

पिछले चार दशकों से भोपाल उत्तर सीट पर रहा कांग्रेस का कब्जा

बता दें कि लगभग दो दशकों के अंतराल के बाद एमपी विधानसभा में मुस्लिम समुदाय के दो विधायक आरिफ अकील और आरिफ मसूद साल 2018 के चुनावों में जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। इससे पहले 2003 में हमीद काजी बुरहानपुर से विधायक चुने गए थे। भोपाल उत्तर सीट की बात करें तो 1993 को छोड़कर पिछले चार दशकों में कांग्रेस के पक्ष में मुस्लिम विधायकों का चुनाव करती रही है। कांग्रेस के दिग्गज नेता 71 वर्षीय आरिफ अकील 1993 को छोड़कर 1990 से भोपाल उत्तर सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

MP में BJP का प्रयोग रहा विफल

माहिर ने बताया कि साल 2013 और 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में भोपाल उत्तर विधानसभा क्षेत्र से मुस्लिम समुदाय के नेताओं को मैदान में उतारने का भाजपा का प्रयोग विफल रहा है। बता दें कि आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने आरिफ अकील के बेटे आतिफ अकील को टिकट दिया है। आतिफ शहर के पूर्व मेयर और भाजपा उम्मीदवार आलोक शर्मा को चुनौती देंगे। जबकि आरिफ मसूद एक बार फिर भोपाल मध्य से चुनावी ताल ठोकेंगे। माहिर का दावा है कि भोपाल उत्तर मुस्लिम बहुल सीट नहीं है और आरिफ अकील गैर-मुस्लिम मतदाताओं के समर्थन के कारण ही विजयी हो सके हैं, जो पारंपरिक रूप से कांग्रेस के प्रति वफादार हैं।

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कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों को दिया धोखा- BJP

वहीं, मध्य प्रदेश वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष और भाजपा प्रवक्ता सांवर पटेल ने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों को धोखा दिया है। उन्होंने पीटीआई से बातचीत में कहा कि कांग्रेस राज्य में दो उम्मीदवार उतारकर 90-100 प्रतिशत वोट शेयर चाहती है। भले ही कांग्रेस ने राज्य में 2003 तक अपने शासन के 53 सालों के दौरान मुस्लिम समुदाय के लिए कुछ नहीं किया है। पटेल ने कहा कि भाजपा ने न केवल अल्पसंख्यक समुदाय के उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं बल्कि मुसलमानों के सामाजिक-आर्थिक विकास को भी सुनिश्चित किया है।

क्या बोले वरिष्ठ पत्रकार गिरजा शंकर?

वरिष्ठ पत्रकार गिरजा शंकर ने बताया कि अल्पसंख्यक मध्य प्रदेश की राजनीति को ज्यादा प्रभावित नहीं कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि कुछ सीटें जैसे बुरहानपुर, आष्टा, रतलाम और इंदौर में अल्पसंख्यक मतदाता प्रभावशाली हैं, लेकिन जहां तक उनके वोट की एकाग्रता का सवाल है, यह अपवाद है। उन्होंने कहा कि यूपी और बिहार के विपरीत मुस्लिम वोटरों का मध्य प्रदेश की राजनीति में कोई प्रभाव नहीं है। उन्होंने कहा कि भाजपा पिछले चुनावों में भोपाल में मजबूत विभाजन के कारण मुस्लिम वोट हासिल करने में विफल रही है।

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