MP Election 2023: बहुमत के बावजूद एक दिन के लिए सीएम बने थे अर्जुन सिंह, राजीव गांधी के कहने पर छोड़ी कुर्सी
कॉलेज के दिनों में पढ़ाई के दौरान ही अर्जुन सिंह की शादी हो चुकी थी। डॉ. जोशी अपनी किताब में अर्जुन सिंह के हवाले से बताते हैं कि वाइफ से पूछने की बात कहकर पिता जी ने मेरे साथ डिप्लोमेसी कर दी और मेरी बंबई जाने और फिल्मों में काम करने की योजना शुरू होने से पहले ही फेल हो गई।

ऑनलाइन डेस्क, भोपाल: देश की राजनीति में अपनी अलग पहचान रखने वाले अर्जुन सिंह से आज की पीढ़ी लगभग अनजान है। उनके जीवन से जुड़े कई दिलचस्प किस्से हैं जिनकी बहुत कम लोगों को जानकारी है। वरिष्ठ पत्रकार डॉ. रामशरण जोशी अपनी किताब 'अर्जुन सिंह : एक सहयात्री का इतिहास' में बताया है कि मध्यप्रदेश में सत्ता की कमान दो बार संभाल चुके अर्जुन सिंह राजनीति में नहीं आना चाहते थे। वो फिल्मों में काम करना चाहते थे, उनकी दिलचस्पी अभिनय की दुनिया में नाम कमाने की थी।
कॉलेज के दिनों में अर्जुन सिंह के एक गहरे दोस्त हुए करते थे, जिनका नाम था प्रेमनाथ। ये वही प्रेमनाथ हैं जो आगे चलकर बॉलीवुड के मशहूर फिल्म अभिनेता बने। जिस वक्त अर्जुन सिंह और प्रेमनाथ कॉलेज में थे तब प्रेमनाथ के पिता रीवा में आईजी हुआ करते थे। बॉलीवुड के शोमैन राजकपूर की शादी भी रीवा में प्रेमनाथ की बहन से हुई थी। कॉलेज में भी फिल्मों को लेकर चर्चाओं का बाजार खूब गर्म हुआ करता था। जिसके चलते अर्जुन सिंह के मन में भी बंबई (अब मुंबई) जाकर फिल्मों अभिनय करने की बात घर कर गई, लेकिन उनकी यह चाहत पूरी न हो सकी।
मेरे साथ डिप्लोमेसी की गई
डॉ. जोशी ने अपनी किताब में लिखा है कि जब उन्होंने अपने पिता से बंबई जाने और फिल्मों में काम करने की इच्छा जताई, तो उनके पिता ने कहा अपनी 'वाइफ' से तो पूछ लो। पिता शिव बहादुर सिंह की बात सुन अर्जुन सिंह के फिल्मों में नाम कमाने की हसरत पस्त पड़ गई। दरअसल कॉलेज के दिनों में पढ़ाई के दौरान ही अर्जुन सिंह की शादी हो चुकी थी। डॉ. जोशी अपनी किताब में अर्जुन सिंह के हवाले से बताते हैं कि वाइफ से पूछने की बात कहकर पिता जी ने मेरे साथ डिप्लोमेसी कर दी और मेरी बंबई जाने और फिल्मों में काम करने की योजना शुरू होने से पहले ही फेल हो गई।
एक झटके में झोड़ दी थी सीएम की कुर्सी
अर्जुन सिंह साल 1980 में पहली बार मध्यप्रदेश की सत्ता की कमान संभाली, उन्होंने प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की। जिसके बाद साल 1985 में हुए विधानसभा चुनावों में अर्जुन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस को फिर से बहुमत हासिल हुआ। चुनावी जीत के बाद उन्हें विधायक दल की नेता चुन लिया गया और 15 मार्च 1985 को उन्होंने सीएम पद की शपथ भी ले ली। लेकिन, जब वो अपने मंत्रिमंडल की लिस्ट लेकर दिल्ली पहुंचे तो वहां कुछ ऐसा नाटकीय घटनाक्रम हुआ जिसके बारे में उन्होंने सोचा भी नहीं था।
ये उन दिनों की बात है जब पंजाब में हालात काफी अशांत हुआ करते थे। ऐसे में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अर्जुन सिंह पर भरोसा जताते हुए उन्हें पंजाब भेज दिया। राजीव गांधी ने अर्जुन सिंह को पंजाब के राज्यपाल का कार्यभार सौंपा, जिसके बाद मोतीलाल वोरा ने मध्यप्रदेश की सत्ता संभाली।
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