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    MP Election Result: ये क्या 69 में से सिर्फ सात सीटें ही जिता पाए दिग्विजय सिंह, इस वजह से बिगड़ा पूरा समीकरण

    By Jagran NewsEdited By: Anurag Gupta
    Updated: Thu, 07 Dec 2023 08:29 PM (IST)

    विधानसभा चुनाव 2023 में दिग्विजय सिंह ने 69 सीटों की कमान संभाली। छह माह के भीतर एक-एक सीट का दौरा किया। कार्यकर्ताओं के साथ बैठक करके चुनाव की तैयारी की। आपसी मतभेद भुलाकर उनसे पार्टी के लिए काम में जुटने का संकल्प दिलाया पर यह सफल नहीं हुआ। भाजपा की तरह कांग्रेस ने भी कठिन मानी जाने वाली सीटों को चिह्नित किया।

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    कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ (बाएं) और पार्टी नेता दिग्विजय सिंह (दाएं) (फोटो: एएनआई)

    डिजिटल डेस्क, भोपाल। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में इस बार कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह की रणनीति विफल हो गई, क्योंकि उन्हें 69 सीटों की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। जिनमें से महज सात सीटें जीतने में ही पार्टी को कामयाबी मिली। बाकी की 62 सीटों पर कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा। हालांकि, पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सत्ता में वापसी के पीछे दिग्विजय सिंह के 'पंगत में संगत' कार्यक्रम को अहम माना गया था।

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    'पंगत में संगत' कार्यक्रम के तहत दिग्विजय सिंह ने कार्यकर्ताओं से सीधे बात की थी और इसका असर भी दिखाई दिया। तभी तो 15 साल बाद मध्य प्रदेश में कांग्रेस की वापसी हुई थी। वो बात अलग है कि 14 माह बाद सरकार गिर गई थी और शिवराज सिंह चौहान की फिर ताजपोशी हुई थी।

    दिग्विजय की रणनीति हुई विफल

    इस बार के चुनाव में दिग्विजय सिंह ने 69 सीटों की कमान संभाली और छह माह के भीतर एक-एक सीट का दौरा किया। कार्यकर्ताओं के साथ बैठक की और आपसी मतभेद भुलाकर कार्यकर्ताओं को कांग्रेस की सरकार बनाने का संकल्प दिलाया, लेकिन उनकी रणनीति बुरी तरह पिट गई। 

    कांग्रेस 69 सीटों में से महज दतिया, बालाघाट, ग्वालियर ग्रामीण, बीना, सेमरिया, टिमरनी और मंदसौर सीट ही जीत पाई। अन्य ऐसी सीटें भी हैं, जहां पार्टी अगर थोड़ा ज्यादा मेहनत करती तो जीत सकती थी, लेकिन कांग्रेस अति आत्मविश्वास से भरी पड़ी थी।

    दिग्विजय सिंह के पास थी कठिन सीटों को जिताने की जिम्मेदारी

    भाजपा की तरह कांग्रेस ने भी कठिन मानी जाने वाली सीटों को चिह्नित किया। इसमें वे सीटें शामिल की गईं, जिनमें लगातार तीन चुनाव से कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ रहा था। इन्हें जिताने की जिम्मेदारी दिग्विजय सिंह ने ली। पूर्व सांसद रामेश्वर नीखरा के साथ उन्होंने सभी सीटों पर पहुंचकर बूथ, सेक्टर और मंडलम स्तर की बैठक की।

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    नाराज कार्यकर्ताओं से अलग से संपर्क किया गया। कार्ययोजना यह थी कि इन सीटों पर भाजपा की घेराबंदी की जाए, पर ऐसा नहीं हुआ। न तो पार्टी की ओर से इन सीटों के प्रत्याशी पहले घोषित हो सके और न ही इन पर भाजपा प्रत्याशियों को घेर सके। यहां कांग्रेस प्रत्याशी भाजपा के मुकाबले में टिक तक नहीं सके। दरअसल, भाजपा ने इन सीटों पर तो कार्यकर्ताओं को सक्रिय किया और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की घेराबंदी उन्हीं के क्षेत्र में करने की कार्ययोजना पर काम किया। इसका परिणाम भी सामने है।

    कांग्रेस के डॉ. गोविंद सिंह, हुकुम सिंह कराड़ा, जीतू पटवारी, तरुण भनोत, कमलेश्वर पटेल, सज्जन सिंह वर्मा सहित अन्य कई दिग्गज नेता चुनाव हार गए। ये सभी नेता पहले दिन से ही यह मानकर चल रहे थे कि अपना चुनाव आसानी से जीत जाएंगे। यही अति आत्मविश्वास भारी पड़ गया। लगातार छह चुनाव से पिछोर विधानसभा सीट से जीत रहे केपी सिंह को शिवपुरी भेजा जाना भारी पड़ा। वे अपना चुनाव तो हारे ही पिछोर सीट भी कांग्रेस के हाथ से चली गई।

    दिग्गज नेता भी अपने क्षेत्र में नहीं दिखा पाए कमाल

    विंध्य अंचल में पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह और कमलेश्वर पटेल को पार्टी ने आगे किया था। टिकट वितरण में भी कुछ परख हुई। इसके बावजूद दोनों कोई कमाल नहीं दिखा पाए। अजय सिंह अपना चुनाव तो जीत गए, लेकिन कमलेश्वर पटेल स्वयं भी हार गए। यहां पर पार्टी इतनी बुरी तरह पिटी की पिछली बार की तुलना में भी कांग्रेस एक सीट गंवा बैठी।

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    इसी तरह डॉ. गोविंद सिंह को ग्वालियर अंचल में आगे किया गया था। उन्होंने अपने भांजे राहुल भदौरिया को मेहगांव से टिकट भी दिलाया, पर न तो वह उसे जिता सके और न ही खुद ही जीत पाए।

    चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया भी इसी तरह अपने बेटे डा. विक्रांत भूरिया के चुनाव में ही उलझ कर रह गए, जबकि उन्हें मालवांचल की आदिवासी सीटों पर सक्रिय किया गया था। पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव निमाड़ की कुछ सीटों पर ही गए, पर परिणाम अनुकूल नहीं रहे। उनके भाई सचिन यादव जरूर कसरावद सीट से चुनाव जीत गए।