दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक चुनाव, USA की आबादी से तीन गुना अधिक मतदाता, जानिए क्यों ऐतिहासिक है भारत की चुनावी व्यवस्था
Lok Sabha Election 2024 भारत का आम चुनाव कई मायनों में खास है और यह लोकतंत्रिक प्रक्रिया का एक वैश्विक प्रदर्शन है। अमेरिका की आबादी से तीन गुना एवं यूरोपीय संघ की आबादी से दोगुने मतदाता इस चुनाव में पंजीकृत हैं। ऑस्ट्रेलिया के सिडनी स्थित एक थिंक टैंक के लेख में भी इसकी महत्ता पर प्रकाश डाला गया है ।
एजेंसी, सिडनी। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में इस वक्त आम चुनाव चल रहा है। कई मायनों में यह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक चुनाव भी है, जहां अमेरिका की आबादी से तीन गुना और यूरोपीय संघ की आबादी से दोगुने से अधिक पंजीकृत मतदाता हैं।
गौरतलब है कि चुनाव सात चरणों में आयोजित किए जा रहे हैं, जिसका आखिरी चरण 1 जून को है और 4 जून को मतगणना होगी। लोकतंत्र के इस महापर्व की चर्चा देश ही नहीं दुनियाभर में हो रही है। इसके महत्व को लेकर रिपोर्ट्स और लेख लिखे जा रहे हैं।
एक अरब मतदाताओं का पंजीकरण
पॉलिटिया रिसर्च फाउंडेशन के चेयरपर्सन संजय पुलिपका ने भी एक लेख में भारतीय आम चुनाव को ऐतिहासिक बताया और इसके लिए लगने वाले असाधारण लॉजिस्टिक्स की जरूरत पर प्रकाश डाला। ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में स्थित एक स्वतंत्र थिंक टैंक, लोवी इंस्टीट्यूट के लिए एक लेख में संजय ने लिखा कि भाषाई और शैक्षिक रूप से विविध देश में भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) के निरंतर प्रयासों के माध्यम से लगभग एक अरब मतदाताओं का पंजीकरण किया गया है।
उन्होंने 'आधार' की उपयोगिता का भी जिक्र किया और कहा कि विशिष्ट पहचान पत्र के उपयोग से समर्पित पोर्टल पर मतदाताओं को रजिस्ट्रेशन की सुविधा मिली। उन्होंने चुनाव आयोग के प्रयासों की प्रशंसा करते हुए लिखा कि विशेष आउटरीच प्रयासों के माध्यम से आदिवासी समुदायों और दिव्यांगों समेत हाशिए पर रहने वाले समूहों तक पहुंचने में मदद मिली। महिला मतदाताओं के नामांकन में हुई उल्लेखनीय वृद्धि का भी उन्होंने जिक्र किया।
दलों के लिए भी चुनौतियां
संजय पुलिपका ने राजनीतिक दलों की चुनौतियों को भी हाइलाइट करते हुए लिखा कि सभी दलों को भी बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, जहां राष्ट्रीय पार्टी को सभी निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव लड़ने के लिए कम से कम तीस लाख कार्यकर्ता जुटाने की आवश्यकता होगी।
संजय पुलिपका ने ईवीएम पर लिखा कि यह एक उल्लेखनीय अविष्कार है। 2004 के आम चुनाव के बाद से पूरी तरह से लागू किए गए ईवीएम ने बूथ कैप्चरिंग की घटनाओं को पूरी तरह से कम कर दिया है। साथ ही बैटरी से चलने वाली ये मशीनें, प्रति मिनट चार वोट तक रिकॉर्ड करने में सक्षम हैं। पारदर्शिता बढ़ाने के लिए वीडियो निगरानी और वेबकास्टिंग भी की जा रही है।
नहीं मिली ईवीएम में गड़बड़ी
उन्होंने लिखा कि ईवीएम की डिजिटल छेड़छाड़ के बारे में चिंताओं के कारण ईसीआई ने एक हैकथॉन का आयोजन किया, जिसमें कमजोरियां साबित करने की चुनौती दी गई, हालांकि, कोई भी कमजोरी नहीं पाई गईं। विश्वास को और अधिक सुनिश्चित करने के लिए, वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) प्रणाली शुरू की गई, जिससे मतदाताओं को अपने वोट का प्रिंटआउट देखने की अनुमति मिली।
ये भी पढ़ें- Lok Sabha Election 2024: 'मैं केवल सांसद नहीं...', पीएम मोदी ने काशी के दो हजार लोगों को लिखा पत्र, की ये खास अपील
उन्होंने लिखा कि कड़े सुरक्षा उपायों के बावजूद, कुछ याचिकाओं में ईवीएम सुरक्षा पर सवाल उठाए गए। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी अखंडता को बरकरार रखा और उन्हें सरल, सुरक्षित एवं उपयोगकर्ता के अनुकूल बताया। हालांकि उन्होंने चुनाव में फंडिंग की चुनौती का भी जिक्र किया और कहा कि राजनीतिक दल निजी दान पर ही निर्भर रहते हैं।
पारदर्शी फंडिंग सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने व्यापक कानून बनाने की वकालत की। उन्होंने लिखा कि भारत के आम चुनावों का सफल क्रियान्वयन राज्य की क्षमता को दर्शाता है। पोलियो और कोविड-19 टीकाकरण अभियान में भी ऐसी ही दक्षता देखी गई है।