बिहार की राजनीति में वंशवाद की लहराती बेल, फूलेगी-फलेगी और यूं ही बढ़ेगी
बिहार की राजनीति में वंशवाद शुरू से हावी रहा है। वंशवाद की लहराती बेल हमेशा से फली-फूली है। वो राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव हों या पूर्व मुख्यमंत्री सत्येंद्र प्रसाद सिन्हा...
पटना [अरुण अशेष]। वंशवाद और परिवारवाद को लेकर बड़ी चर्चा हो रही है। सबसे अधिक आलोचना पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद की होती है। उन्होंने पत्नी, बेटा-बेटी-सबको राजनीति में बढ़ा दिया। उनसे पहले बने मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिन्हा की राजनीतिक विरासत को लोग नहीं देख पा रहे हैं। आप देखिए-पत्नी,पुत्र, पुत्रवधु, सबके सब लोकसभा के सदस्य बने।
शिक्षा और संपन्नता को नजरअंदाज कर दीजिए तो राजनीतिक विरासत के मोर्चे पर दोनों परिवारों में बहुत साम्य दिखेगा। हां, एक फर्क स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी का है। छोटे साहब खुद और उनके पिता अनुग्रह नारायण सिंह स्वतंत्रता संग्राम में अगली पंक्ति के सेनानियों में रहे थे। लालू प्रसाद को इस कमी के लिए नहीं कोसा जा सकता है, क्योंकि उनका जन्म आजादी के दस महीने बाद हुआ था।
मुख्यमंत्रियों के परिवार की राजनीतिक कहानी
राज्य में मुख्यमंत्री का पद सबसे बड़ा होता है। इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि कितने पूर्व मुख्यमंत्रियों के परिजन आज भी राजनीति में सक्रिय हैं। विभाजन रेखा यह खींचनी होगी कि इनमें से किन महानुभावों ने अपने जीते जी परिजनों के लिए रास्ता बनाया।
दूसरा-किन लोगों को उनकी पार्टी के नेताओं ने अपने लाभ के लिए आगे बढ़ाया। पहले मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह के दो पुत्र शिवशंकर सिंह और बंदीशंकर सिंह राजनीति में आए। दोनों विधायक बने। बंदीशंकर सिंह मंत्री भी बने। विधानसभा के लिए दोनों की यात्रा डॉ.श्रीकृष्ण सिंह के निधन के बाद शुरू हुई।
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दोनों के गुजरने के बाद वह यात्रा खत्म भी हो गई। श्रीबाबू के पौत्र सुरेश शंकर सिंह उर्फ हीराजी जीवित हैं। उनके पुत्र यानी श्रीबाबू के प्रपौत्र 2015 में निर्दलीय चुनाव लड़कर हार चुके हैं। आज की तारीख में प्रथम मुख्यमंत्री के परिवार का कोई सदस्य किसी सदन में नहीं है।
दूसरे मुख्यमंत्री दीप नारायण सिंह को पुत्र नहीं था। उनकी पारिवारिक विरासत आगे नहीं बढ़ी। तीसरे मुख्यमंत्री विनोदानंद झा के पुत्र कृष्णानंदन झा बिहार सरकार में मंत्री थे। अभी झारखंड कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय हैं। केबी सहाय और महामाया प्रसाद सिंह के परिजनों ने राजनीति में सक्रिय होने की कोशिश की। पार्टी और मतदाताओं का सहयोग नहीं मिलने के कारण दूर तक नहीं चल पाए।
किसी के नाम पर राजनीतिक धारा और किसी के वंशज दरकिनार
सतीश प्रसाद सिंह जीवित हैं। उनकी पुत्री सुचित्रा सिन्हा राज्य सरकार में मंत्री रह चुकी हैं। उनकी राजनीतिक सक्रियता कायम है। वीपी मंडल भले ही कम दिनों के लिए मुख्यमंत्री रहे हों, लेकिन उनके नाम पर एक राजनीतिक धारा बन गई। उनके पुत्र मणिंद्र कुमार मंडल उर्फ ओम बाबू अल्पकाल के लिए राजनीति में आए।
पांच साल जदयू के विधायक रहे। सत्ता की राजनीति इस परिवार को रास नहीं आ रही है। यह अलग बात है कि उनके परिवार के कई लोग आज भी राजनीति में सक्रिय हैं। किसी सदस्य को संरक्षण नहीं मिल पाया। भोला पासवान शास्त्री, हरिहर सिंह, रामसुंदर दास, अब्दुल गफूर, चंद्रशेखर सिंह, केदार पांडेय और बिंदेश्वरी दुबे ऐसे मुख्यमंत्री रहे हैं, जिनके परिवार का कोई सदस्य आज की तारीख में किसी सदन का सदस्य नहीं है।
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किन्हीं लोगों में परंपरा को आगे बढ़ाने की ललक भी
रामसुंदर दास और अब्दुल गफूर के पुत्र विधायक रहे हैं। केदार पांडेय के पुत्र सांसद रहे हैं। चंद्रशेखर सिंह कीपत्नी सांसद रही हैं। भागवत झा आजाद के पुत्र कीर्ति आजाद इस समय भी सांसद हैं। भागवत झा आजाद ने अपने कार्यकाल में परिजनों को राजनीति में बढ़ावा नहीं दिया।
श्री बाबू की तरह कर्पूरी ठाकुर के परिजन भी उनके जीवन काल में राजनीति में नहीं आए। उनके पुत्र रामनाथ ठाकुर, विधायक और मंत्री के बाद इस समय राज्यसभा सदस्य हैं। पूर्व मुख्यमंत्री दरोगा प्रसाद राय के बाद उनकी पत्नी विधायक बनी थीं। इस समय उनके पुत्र विधायक हैं।
छपरा से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। बुराई नीचे से आई या ऊपर से कुल मिलाकर बात यह बनती है कि राजनीति में परिवार और वंश की परंपरा अगर गलत है तो इस गलती के लिए किसी एक को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। यह प्रवृत्ति सिर्फ मुख्यमंत्रियों तक सीमित नहीं है। अपवाद को छोड़ दें तो सांसद, मंत्री और विधायक तक में यही प्रवृत्ति है।
कोई सर्वेक्षण करा ले कि राज्य में मुखिया, प्रमुख और पंच पतियों का नया पद किस अलिखित नियम के तहत सृजित हुआ है। अगर यह बुराई है तो तय करना मुश्किल है कि यह नीचे से आई है या ऊपर से तेज रफ्तार में चलते हुए नीचे तक चली गई।
अपवाद निकले नीतीश कुमार, मिश्र परिवार अभी सक्रिय जीवित पूर्व मुख्यमंत्रियों में डॉ. जगन्नाथ मिश्र के पुत्र नीतीश मिश्र सक्रिय राजनीति में हैं। वे मंत्री भी रह चुके हैं। डॉ. मिश्र के परिवार का यह रिकार्ड अभी तक कायम है कि आजादी के पहले से लेकर आज तक उनके परिवार के सदस्य किसी सदन के सदस्य रहे हैं। उनके बड़े भाई ललित नारायण मिश्र के पुत्र विजय कुमार मिश्र बिहार विधान परिषद के सदस्य हैं। वे सांसद और विधायक भी रह चुके हैं।
यह रिकार्ड सत्येंद्र नारायण सिन्हा के परिवार का भी था। फिलहाल उस पर ब्रेक लग गया है। पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के पुत्र संतोष मांझी विधानसभा का पहला चुनाव हार गए। राजद की मदद से वे विधान परिषद के सदस्य बन गए। वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जरूर इस परिपाटी के अपवाद बने हुए हैं। उनके पुत्र या परिजन किसी चुनाव में शामिल नहीं हुए।